Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Part 02
Author(s): Kunvarji Anandji Shah
Publisher: Kunvarji Anandji Shah Bhavnagar

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Page 784
________________ ॥ अथ श्री उदयविजयकृतोत्तराध्ययनषट्त्रिंशत्स्वाध्यायाः प्रारभ्यन्ते ।। प्रथम विनयाध्ययन सज्झाय. १ श्री नेमीसरजिनतणुं जी ।। ए देशी ॥ पवयण देवी चित्तधरी जी, विनय वखाणीश सार । बंधूने पूछ कहाँ जी, श्रीसोहम गणधार ॥ १ ॥ भविक जनविनय वहो सुखकार || ए आंकणी ॥ पहेले अध्ययने कझो जी, उत्तराध्ययन मझार ॥ सपळा गुणमां मूळगो जी, जे || जिनशासन सार ।। भवि० ॥ २ ॥ नाणे विनयथी पामीए जी, नाणे दर्शन शुद्ध || चारित्र दर्शनथी हुवे जी, चारित्रथी पुण सिद्ध । भवि० ॥ ३ ॥ गुरुनी आज्ञा सदा घरे जी, जाणे गुरुनो भाव ॥ विनयवंत गुणरागीयो जी, ते मुनि सरळ || स्वभाव । भवि० ॥ ४॥ कण- कुंड़े परहरी जी, विष्टा शुं मन राग | गुरु द्रोही ते जाणवा जी, सूअर उपम लाग ॥ ॥ भवि० ॥ ५ ॥ कोह्या काननी कूतरी जी, ठाम न पामे रे जेम ॥ शीलहीन भ्रकह्यागरा जी, आदर न लहे तेम ॥ || || भवि० ॥६|| चंदतणी पेरे उजली जी, कीर्ति तेह लहंत ॥ विषय कषाय जीती करी जी, जे नर विनय वहंत ॥ भवि० ॥ ॥७॥ विजयदेव गुरु पाटवी जी, श्रीविजयसिंह सुरींद्र ॥ शिष्य उदय वाचक भणे जी, विनय सकल सुखकंद ॥ भविः ।। ॥८॥ इति ।।

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