Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Part 02
Author(s): Kunvarji Anandji Shah
Publisher: Kunvarji Anandji Shah Bhavnagar

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Page 758
________________ ********-- माँ ( हयमाई ) अश्वादिक एक खरीवाळा थे, ( गोयामाई ) बळद बिगेरे वे खरीवाळा थे, ( गयमाई ) हाथी विगेरे istपद थे, ने (सीइमाइयो ) सिंहादिक सनख पद - नख सहित पगवाळा छे. १७६. हवे परिसर्पने कहे छे.- ओरपरिसप्पा उ. परिसप्पा दुविहा भवे । गोहाई अहिमाई . एकेकाऽरोगहा भवे ॥ १८० ॥ अर्थ – ( भुझोरपरिसप्पा उ ) सृजपरिसर्प अने उरपरिसर्प एम (परिसप्पा ) परिसर्प ( दुबिहा ) वे प्रकारना ( भवे ) छे. तेमां ( गोहाई ) गोधा - गरोळी विगेरे अजपरिसर्प एटले जावडे गमन करनारा होय छे अने ( अहिमाई अ ) सर्प विगेरे उरपरिसर्प एटले उरवडे गमन करनारा होय . तेमां ( एकेका ) ते दरेक ( अगहा ) अनेक प्रकारना ( भवे ) छे. १८० लोएगदेसे ते सब्बे, न सव्वत्थ समाहिया । एतो कालविभागं तु, तेर्सि वोच्छं चउत्रिहं ॥ १८९ ॥ संतई पप्पऽणाईश्रा, अपज्जवसिच्या विअ । ठिङ्गं पडुच्च साईश्रा, सपजवासिया विश्र ॥ १८२ ॥ अर्थ - पूर्ववत् १८१ - १८२. पॅलियोमाइ तिएिँ उ, उसेण विश्राहिया । ब्राउटिई लयराणं, अंतोमुत्तं जहमिया ॥१८३॥ अर्थ - (थलयरां) स्थळचरनी ( आउटिई) आयुस्थिति ( उक्कोसेण ) उत्कृष्टथी ( तिमि उ ) ऋण (पलिओन

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