Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Part 02
Author(s): Kunvarji Anandji Shah
Publisher: Kunvarji Anandji Shah Bhavnagar

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Page 770
________________ अर्थ-मही नष अवेयकना प्रण विभाग पाडवाथी ऋण त्रिक थाय छे. तेथी ते नवनी संज्ञा मा प्रमाणे के.(हिद्विमा हिडिमा चेव ) नीचला त्रिका नीचेना १, (हिडिमा मझिमा ) नीचला त्रिकमा मध्यमना २, (तहा) तथा (हिडिमा उवरिमा चेत्र ) नीचला त्रिकमा उपरना ३, ( मज्झिमा हिट्ठिमा ) वचला त्रिका नीचेना ४, (तहा ) तथा (मझिमा मज्झिमा चेव ) वचला त्रिकमां मध्यना ५, (मझिमा उवरिमा ) वचला त्रिकमां उपरना ६, (तहा ) तथा ( उवरिमा हिडिमा चेव ) उपला त्रिका नीचेना ७, ( उवरिमा मज्झिमा) उपला त्रिकमां मध्यना ८, ( तहा ) तथा ( उवरिमा उवरिमा चेव ) उपला त्रिका उपरना है, (इइ) आ प्रमाणे ( गेविजगा सुरा) नव ग्रैवेयकमा रहेला देवो जाणवा. तथा ( विजया) विजय १. (वेजयंता य ) वैजयंत २, ( जयंता ) जयंत ३, (अपराजिश्रा) अपराजित ४, ( सन्वसिद्धिगा चेव ) तथा सर्वार्थसिद्ध ५ आ पाँचमा रहेला (पंचहा ) पांच प्रकारना ( अणुत्तरा सुरा) अनुचर देवो जासावा. (ड) भा प्रमाणे (एए वेमाणिश्रा) या वैमानिक देवो ( एवमायो) एविगेरे (अणेगहा) भनेक प्रकारना जाणवा. २११-२१४. लोगस्स एगदेसम्मि, ते सव्वे परिकित्तिआ। इत्तो कालविभागं तु, तेसिं वोच्छं चउब्विहं ॥ २१५ ॥ संतई पप्पऽणाईआ, अपज्जवसिआवि अ । ठिई पड्डुच साईआ, सपजवसिआवि अ ।। २१६ ।। साहिअं सायरं इकं, उक्कोसेण ठिई भवे । भोमेजाणं जहन्नेणं, दसवाससहस्सिआ ॥ २१७ ॥

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