Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Part 02
Author(s): Kunvarji Anandji Shah
Publisher: Kunvarji Anandji Shah Bhavnagar
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पलिओन मेगं तु, उक्कोसेण ठिई भवे । अंतराणं जहन्नेणं, दसवाससहस्सि ॥ २९८ ॥ पलिओ सं तु एगं, वासलकरण साहिअं । पलिओमट्टभागो, जोईसेसु जहन्निआ ॥ २१९ ॥
अर्थ-वे गाथानो पूर्ववत्-पछी भूमिमा रहेला भुवनवासी धोनी स्थिति उत्कृष्टी एक सागरोपम झाझेरी जाणवी. अने तेमनी जघन्य दश हजार घनी वा व्यंतरांनी अष्ट स्थिति एक पन्योपमनी जाणवी अने जघन्य दश हजार वर्षनी जागवी. ज्योतिषीनी लाख वर्ष अधिक एक पल्योपमनी उत्कृष्ट स्थिति जागवी, ते चंद्रविमानना देवोनी छे भने जघन्य स्थिति पल्यांपमना आठमा भागनी थे, ते ताराविमानना देवोनी जावी. २१५-२१६.
दो चेव सागराई, उक्कोसेण त्रिआहिआ । सोहम्मम्मि जहस्रेणं, एगं च पलिओनं ॥ २२० ॥
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अर्थ – सौधर्म देवलोकमा उत्कृष्ट स्थिति चे सागरोपमनी अने जघन्य स्थिति एक पल्योपमनी कही छे. २२०० सागरा साहिआ दुनि, उक्कोसेण विहिआ । ईसाराम्मि जहोणं, साहिअं पलिओ मं ॥ २२९ ॥ अर्थ - ईशान देवलोकमा उत्कृष्ट स्थिति कांइक अधिक एवा वे सागरोपमनी ने जघन्य स्थिति कोहक अधिक एवा एक पल्योषमनी कहेली छे. २२१. सागराणि अ सत्तेव, उकोसेण ठिई भवे । सर्णकुमारे जहोणं, दुलि उ सागरोवमा ॥ २२२ ॥
अर्थ - श्रीजा सनत्कुमार देवलोकमां उत्कृष्ट स्थिति सात सागरोपमनी अने जघन्य स्थिति चे सागरोपमनी कहेली थे. २२२.
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