Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Part 02
Author(s): Kunvarji Anandji Shah
Publisher: Kunvarji Anandji Shah Bhavnagar
View full book text ________________
एएसिं वामो चेव, गंधओ रसफासो । संठाणादेसओ वावि, विहाणाई सहस्ससो ॥१२॥ अर्थ--पूर्ववत्. १६२.
हवे मनुष्योना मेद कहे छे.मणुआ दुविहभेा उ, ते मे कित्तयओ सुण । समुच्छिममणुस्सा य, गब्भवतिआ तहा ॥१६॥
अर्थ-(माया) मनुष्य ( दुविभेला उ ) चे प्रकारना छ, (ते ) तेने (किचयो ) कहेता एवा ( मे ) मारी || पासे (सुण ) सामळो.-(संमुच्छिममणुस्सा य ) संमूर्छिम मनुष्य ( तहा) तथा (गम्भवकंतित्रा) गर्भव्युत्क्रांत एटले | गर्भज. अहीं जे मन रहित अने गर्भज मनुष्यना वांतादिकमा उत्पब थह अंतर्मुहूर्त्तना आयुष्यवाळा अपर्याप्ता सता ज मरण पामे छे ते संमूर्छिम मनुष्य जाणवा. १६३. गैन्भवतिआ जे उ, तिविही ते विआहिया। अकम्मकम्मभूमा य, अंतरदीवया तहा ॥ १९४॥ ___ अर्थ (जे उ ) जे ( गम्भवकंतित्रा ) गर्भज मनुष्यो छे, (ते ) ते (तिविहा ) त्रण प्रकारना ( विभाहिश्रा), कहेला छे. ते आ प्रमाणे-(अकम्मकम्मभूमा य ) अकर्मभूमिमा उत्पन्न थयेला एटले युगलीया, कर्मभूमिमा एटले भरता- | दिक क्षेत्रमा उत्पन्न थयेला, (तहा) तथा ( अंतरद्दीवया ) अंतरद्वीपमा उत्पन्न थयेला युगलिक मनुष्यो. १६४.
पामरसतीसईविहा, भेआ यं अट्ठवीसई । सखा उ कैमसो 'तेसिं, ईइ ऐसा विहिआ ॥१९५॥
Loading... Page Navigation 1 ... 760 761 762 763 764 765 766 767 768 769 770 771 772 773 774 775 776 777 778 779 780 781 782 783 784 785 786 787 788 789 790 791 792 793 794 795 796 797 798 799 800 801 802 803 804 805 806 807 808 809