Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Part 02
Author(s): Kunvarji Anandji Shah
Publisher: Kunvarji Anandji Shah Bhavnagar
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अर्थ-( तेसिं ) तेमनी (संखा उ) संख्या (कमसो) अनुक्रमे ( इइ ) या प्रमाणे (एसा) आ (विभाहिआ) कहीं छ.( पारसतीसईविहा ) कर्मभूमिना पंदर प्रकार, अकर्मभूमिना त्रीश प्रकार, (य) अने अंतरद्वीपना ( अट्ठवीसई ) अट्टावीश ||
भेषा) भेद छे. अहीं पांच भरत, पांच ऐस्वत अने पांच महाविदेहना मळी पंदर भेद कर्मभूमिना छे. हैमवत, हरिवर्ष, । रम्यक, हैरण्यवत, देवकुरु अने उत्तरकुरु ए छ अकर्मभूमि प्रत्येके पांच पांच होवाथी त्रीश थाय छे. जो के अहीं अनुक्रम लेतां तो प्रथम अकर्मभूमिना कहेवा जोइए. तोपण कर्मभूमिना मनुष्याने मुक्तिनुं साधन होवाथी तेमनुं प्रधानपणुं जगाववा माटे तेमनी संख्या प्रथम गणावी छे. तथा अठ्ठावीश अंतरद्वीपो मा प्रमाणे छे.-हिमवान पर्वतना पूर्व पश्चिमने छेडे जंबूद्वीपनी ! वेदिकानी बहार न दाटायो विदिशा तरफ नीकळेली छे, तेमा पूर्वनी ये दाढाभोमांथी एक ईशान तरफ अने बीजी । अग्निखूण तरफ लांची जाय छ, अने पश्चिमनी वे दाढामाथी एक नैर्ऋत्य तरफ अने चीजी वायव्य तरफ जाय छे. ते
दरेक दाढामां जगतीना कोटी त्रणसो त्रणसो योजन जइए त्यारे त्यां त्रणसो त्रणसो योजन लांबा अने पहोळा एकेक | एटले कुल चार अंतरद्वीपो आवे छे. त्यारपछी त्यांची चारसो चारसो योजन जहए त्यारे चारसो चारसो योजन लांचा पहोछा बीजा चार अंतरद्वीपो आवे छे, ए प्रमाणे सो सो योजननी वृद्धि करतां तेटला ज योजनना लांबा पहोळा चार चार अंतरद्वीपो आवे छे. एवी रीते दरेक दाढा उपर सात सात अंतरद्वीपो होवाधी कुल अठ्ठावीश अंतरद्वीपो छे. तेमनां नाम प्रदक्षिणाने क्रमे ा प्रमाणे छे.-पहेला चतुष्कमा एकोरुक १, आभाषिक २, वैषाणिक ३ अने लांगुलिक ४. बीजामां हयकर्ण १, गजकर्ण २, गोकर्ण ३ अने शकुलीकर्ष ४. त्रीजामा श्रादर्शमुख १, मेपमुख २, हयमुख ३ अने