Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Part 02
Author(s): Kunvarji Anandji Shah
Publisher: Kunvarji Anandji Shah Bhavnagar
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अर्थ--(तिरियाणं ) तिर्यच ( नरामं वा ) अने मनुष्यमा ( जहि जहिं ) ज्या ज्या एटले जे जे पृथिव्यादिकने विषे के संमूर्छिम मनुष्यादिकने विषे ( केवलं लसं ) एक शुक्ल लेश्याने ( वञ्जिता ) वर्जीने बीजी (जाउ) जे कृष्णादिक लेश्या संभवे छे, ते ( लेसाण ) लेश्याोनी (ठिई ) जघन्य अने उत्कृष्ट स्थिति ( अंतोमुहुत्तमद्धं ) अंतर्मुहूर्तकाळनी ज छे, तेमा पृथ्वीकाय, अप्काय अने वनस्पतिकायने विषे पहेली चार लेश्याओ संभवे छे, तेजस्काय, वायुकाय, विकलेंद्रिय अने संमूर्छिमने विषे पहेली त्रण लेश्याओ संभवे छे भने चीजाने विषे छए लेश्या संभवे छे. तेथी करीने भा छए लेश्यानी स्थिति तियच अने मनुष्यने विषे अंतर्मुहूतकाळनी ज प्राप्त थइ. तमा एक शुक्ल लेश्याने बाद करी छे. ४५.
हवे शुक्ल लेश्यानी स्थिति कहे छे. मुहुँत्तद्धं तु जहन्ना, उक्कोसा होई पुषकोडी उ। नवहिं वैरिसेहिं ऊंणा नायव्वा सुक्कलेसाए॥४६॥
अर्थ-(सुक्कलेसाए ) शुक्ल लेश्यानी (जहाना ) जघन्य स्थिति ( मुहुत्तद्धं तु ) अंतर्मुहूर्तनी छे, अने (उकोसा ) उत्कृष्ट स्थिति ( नहिं वरिसेहिं ऊणा ) नव वर्ष अोछा एवा ( पुवकोडी उ ) पूर्वकोटी-करोड पूर्व वर्षनी ( होइ) छे. एम ( नायव्वा ) जाणवू. कोइ पूर्वकोटिना आयुष्यवालो मनुष्य पाठमे वर्षे चारित्र ग्रहण करे, ते पोधामा ओछो एक चर्पनो चारित्र पर्याय थाय स्थारे तेने शक्ल लेश्यानो भने केवलज्ञान पामवानो संभव छ, पछी जीवित पर्यंत ते लेश्या रहे छ. तेथी नव वर्ष प्रोछा पूर्वकोटि वर्ष कला छे. ४६.