Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Part 02
Author(s): Kunvarji Anandji Shah
Publisher: Kunvarji Anandji Shah Bhavnagar
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अर्थ - ( खधाय ) स्कंधो अने ( परमाणुणो ) परमाणुओं ( एगत्ते ) एकपणाए करीने स्टलें वे, त्रण, चार शादि परमाणुना संघातथी द्विप्रदेशिक, क्रिप्रदेशिक, चतुःप्रदेशिक विगेरे सरखा परिणामे करीने तथा ( पुहते ) पृथ करीने एटले जूदापणाए करीने अर्थात् बीजा परमाणुओनी साथ नहीं मळवाए करीने जगाय के एटले के एक ने पू क्त् स्कंध ने परमाणुनुं लक्षण बे-छुटा रहे ते परमाणु कहेवाय के ने मेगा मळे ते स्कंध कहेवाय के. हवे तेने क्षेत्री कहे थे- (ते उ ) ते एटले स्कंध अने परमाणुओं ( खेत्तओ ) क्षेत्रथी ( लोएगदे से ) लोकना एक देशाने विषे ( लोए) ने लोकने विषे ( भइअन्वा ) भजनाए करीने जागना लायक छे. अहीं सामान्य रीते कधुं वे तो पण परमाओ एक एक जाकाशप्रदेशमा रहेला होय के तेथी स्कंधने विष ज अवगाहनानी भजना जाणवी. कारण के स्कंधो विचित्र परिणामवाळा होवाथी घणा प्रदेशोवडे वृद्धि पामेला होय तोपय केटलाक एक आकाशप्रदेशमां जा रहे छे, अने केटला संख्याता प्रदेशमा रहे थे, केटलाक असंख्यात प्रदेशमां रहे थे, यावत् केटलाक तथा कारना अचित्त महारुकंघनी जेम समग्र लोकने व्यापीने पण रहे थे. तेथी स्कंधने भाश्रीने भजना जाणवी ( इत्तो ) हवे एटले क्षेत्र प्ररूपणा कर्या पछी ( तेसिं ) ते स्कंध अने परमाणुओना ( चउब्विहं ) चार प्रकारना ( कालविभागं तु ) काळविभागने (बोच्ं ) हुं कहीश. ( आ गाथासूत्र छ पादवा छे. ) ११.
तं ज चार प्रकार कहे छे.
संतई पप्प तेऽणाई अपज्जवसिआवि अ । टिई पडुख साईआ, सपज्जयसिश्राऽवि अ ||१२||
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