Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Part 02
Author(s): Kunvarji Anandji Shah
Publisher: Kunvarji Anandji Shah Bhavnagar

View full book text
Previous | Next

Page 753
________________ सागरोवममेगं तु, उक्कोसेणे विआहिआ । पढमाएं जहँपणेणं, दसवाससहस्सिा ॥ १६ ॥ ___अर्थ-पूर्ववत्. १५८-१५६. ( पढमाए ) पहेली नरक पृथ्वीमा नारकीनी स्थिति ( उकासेण ) उत्कृष्टी ( सागरो- /* वममेगं तु) एक सागरोपमनी अने (जहमेणं) जघन्यथी (दसवाससहस्सिा ) दश हजार वर्षनी (विवाहिया) कही छे. १६०. 1 तिपणेवे सागराऊ, उक्कोसेण विनाहिआ। दोच्चाए जहणणेणं, एंगं तु सागरोवमं ॥ १६१ ॥ | सत्तेव सागैराऊ, उक्कोसेण विश्राहिआ । तइपाए जहन्नणं, तिपणेव उ साँगरोक्मा ॥ १२ ॥ __ अर्थ (दोच्चाए ) बीजी पृथ्वीमा ( उक्कोसेण ) उत्कृष्टयी (तिमेव ) त्रण ज ( सागराऊ ) सागरोपमर्नु श्रायुप्प अ. । थवा स्थिति ( विवाहिया) कही छे अने ( जहोणं ) जघन्यथी (एर्ग तु) एक ( सागरोवमं) सागरोपमनी कही है. १६१. (सइआए ) त्रीजी पृथ्वीमा ( उक्कोसण) उत्कृष्टथी (सत्तेव ) सात ज ( सागराऊ ) सागरोपमनुं आयुष्य अने | (जहन्नेणं ) जघन्यथी (तिमेव उत्रण ज ( सागरोवमा) सागरोपमनुं आयुष्य अथवा स्थिति विश्राहिमा कही छे. १६२. देस सागरोवमाऊ, उक्कोसेण विहिआ। चउत्थीए जहन्नणं, सत्तेव उ सागरोवमा ॥ १६३ ॥ अर्थ-(चउत्थीए) चोथी पृथ्वीमा ( उक्कोसेण ) उत्कृष्टथी (दस ) दश ( सागरोवमाऊ ) सागरोपमर्नु आयुष्य है तथा (जहमेणं) जघन्यथी ( सत्तेव उ ) सात ज (सागरोत्रमा ) सागरोपमनुं आयुष्य अथवा स्थिति (विश्राहिमा) कही के. १६३.

Loading...

Page Navigation
1 ... 751 752 753 754 755 756 757 758 759 760 761 762 763 764 765 766 767 768 769 770 771 772 773 774 775 776 777 778 779 780 781 782 783 784 785 786 787 788 789 790 791 792 793 794 795 796 797 798 799 800 801 802 803 804 805 806 807 808 809