Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Part 02
Author(s): Kunvarji Anandji Shah
Publisher: Kunvarji Anandji Shah Bhavnagar
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प्रतिमा वहन करता पूर्वनी दशे प्रतिमानी क्रिया करवानी छे, सेमां पहेली प्रतिमामा दोष रहित, प्रशमादिक गुण सहित अनेकदाग्रह रहित बुं समकित धारण करवानुं छे. १. बीनीमां अतिचार रहित असुव्रतादिक बारे बतो पाळवानां छे. २. त्रीजीमां ने संध्याए अवश्य सामायिक करवानुं वे. ३. चोथीम चौदश, आठम विगेरे पर्व तिथिए प्रतिचार रहित परिपूर्ण पौषध करवानो छे ४. पांचनीमां घठम विगेरे पर्व तिथिए पौषध लइ रात्रे कायोत्सर्ग करवानो छे. बीजा दिवसोम दिवसेज भोजन कर रात्रिभोजन कर नहीं, दिवसे पण प्रकाशमां ज भोजन कर, पाइळ धोतीयानो कच्छ a नहीं, दिवसे ब्रह्मचर्य राखवु अनं रात्रे पण स्त्रीओनुं तथा तेमना भोगनुं परिमाण कर. कायोत्सर्गमां जिनेश्वरना गुणोनुं सने कामादिक दोषनो नाश करवाना उपायोनुं चितवन करवुं. ५ हीमां ब्रह्मचर्य ने शृंगारकथादिकनो सर्वथा त्याग करवो. ६. सातमीमां सचित्ताहारनो त्याग करवो. ७. आठमीमा पोते जाते आरंभ न करवो. ८. नवमीमां बीजा पासे पण आरंभ न कराववो है. दशमीमां पोताने माटे भातपाणी करावयां नहीं. या वखते चुरथी मुंडन करावं अथवा शिखाधारी थj. १०. तथा खेन्ली श्रम्यारमी प्रतिमाने विषे पात्रां श्रादिक साधुनां उपकरण धारण करी लोच अथवा चुरमुंडन करावी साधुनी जेवी सर्व क्रिया करवी अने गोचरी बखते गृहस्थीने घेर जह " प्रतिमा प्रतिपन्नाय श्रमणोपासकाय भिक्षां दस "" प्रतिमा वहन करता एवा मने श्रावकने भिक्षा आपो. " ए प्रमाणे बोली भिक्षा ग्रहण करवी, भने सुनिनी जेम मासकल्पादिक विधिए ग्रामादिकमां विहार करवो.
भिक्षुनी बार प्रतिमा या प्रमाणे के.
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