Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Part 02
Author(s): Kunvarji Anandji Shah
Publisher: Kunvarji Anandji Shah Bhavnagar
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माठ मद वर्जवाना छे, बसति १, कथा २, निषिधा ३, इंद्रिय ४, भियंतर ५, पूर्वक्रीडित स्मरण ६, प्रणीत भाहार ७, * अति आहार - असे विभूषा ९ ए नय अवर्थनी गुति पाळपानी छे, तथा क्षांति १, मार्दव २, आर्जव ३, मुक्ति | (निर्लोभता) ४, तप ५, संयम ६, सत्य ७, शौच ८, आकिंचन्य ६ अने ब्रह्मचर्य १० ए दश प्रकारना साधुधर्मनी आराधना करयानी छे. १०. उवासगाणं पडिमासु, भिक्खूणं पडिमासु श्र। जे भिक्खू जयई निच्चं, से न अच्छइ मंडले ॥११॥ ___अर्थ-( उवासगाणं ) श्रायकोनी (पडिमासु ) अन्यार प्रतिमाने विष तथा ( भिक्खूणं ) साधुनी (पडिमासु अ) चार प्रतिमाने विषे (जे मिक्स् ) जे साधु (निचं जयई ) निरंतर यत्न करे, ( से ) ते ( मंडले न अच्छइ ) संसारमा । रहेतो नथी. ११. अहीं श्रावकनी अग्यार प्रतिमा आ प्रमाणे छे.-दर्शन १, व्रत २, सामायिक ३, पौषध ४, प्रतिमा (कायोत्सगे) ५, अब्रह्म त्याग ६, सचित्त त्याग ७, आरंम त्याग ८, प्रेष्य त्याग ६, उद्दिष्ट त्याग १०, अने श्रमणभूत ११. |T नहीं पहेली प्रतिमा उत्कृष्टधी एक मासनी, बीजी वे मासनी, श्रीजी त्रण मासनी ए रीते चड़ता छेल्ली अग्यारमी अग्यार मासनी छे, अने जघन्यथी तो सर्व प्रतिमानो एकादिक अग्यार दिवसनी जाणवी. केमके प्रतिमा ग्रहण कयों पछी एक बे | प्रादि दिवसे चारित्र ग्रहण करे अथया आयुष्यनो क्षय थाय तो ते प्रतिमा जेटला दिवस वहन करी होय तेटला दिवसनी। कहेयाय छे. यहीं उत्तरोतर प्रतिमा वहन करतां पूर्व पूर्वनी प्रतिमानुं सर्व कार्य साथे करवानुं ज छे, तेथी अग्यारमी