Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Part 02
Author(s): Kunvarji Anandji Shah
Publisher: Kunvarji Anandji Shah Bhavnagar
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कृशानुं रक्षण करता बने जाने जीवा जनुं छे. " ते सांभळी पार्श्वकुमारे कछु के-" घासने विवे परशुनी जेम ते मनुष्यरूपी कीटने विषे सुरासुरने जीतनारा आपे आ उद्यम करो योग्य नथी, तेथी आप मने ज श्रज्ञा आपने आप था महलने ज शोभावो. हुं पण तेना गर्वनो नाश करी शकीश. " ते सांभळी पुत्रतुं बळ त्रण जगत करतां अधिक छे एम जाणता राजाए तेनुं वचन अंगीकार कर्तुं अने सैन्य सहित तेने जवानी रजा आपी.
श्रीपार्श्वकुमार सैन्य सहित चान्या, त्यारे पहेला प्रयाणमांज इंद्रना सारथि मातलिए आवी रथमाथी उतरी प्रभुने नमस्कार करी विनंति करी के "हे प्रभु ! क्रीडावडे पण संग्राममा उद्यमवंत धयेला आपने जाणीने शक्रइंद्रे भक्तिधी आ रथ अपने माटे मोकल्यो छे, तेनो स्वीकार करो. " ते सांभळी विविध प्रकारनां शस्त्रोथी भरेला अने पृथ्वीने नहीं स्पर्श करता ते रथ उपर आरूढ थह सूर्यनी जेम प्रभु आकाशमार्गे चाल्या. पाछळ पृथ्वी पर चाली आवती सेनापरनी कृपाने ली नाना प्रयाणोवडे चालता प्रभु अनुक्रमे केटलेक दिवसे कुशस्थळ नगर पासे यात्री पहोंच्या. त्यां एक उद्यानम देवो करेला प्रासादमां प्रभु सुखेथी रह्या. पक्षी प्रभुए एक दूत यवनराजा पासे मोकल्यो. वेणे जड़ यवनराजाने क के" हे राजा ! श्रीपार्श्वनाथ तमने आज्ञा करे छे के था प्रसेनजित राजा श्रमारा पिताने शरणे रह्या छे. तेथी तेना नगरनो रोध की द्यो. कारण के पिता पोते ज यहीं आवता हता, तेमने या कारणथी ज निषेध करीने हुं अहीं भाग्यो हुं, तेथी जो तुमने सुखनी इच्छा होय तो तमे तमारे स्थान जता रहो. " श्रावुं दृतनुं वचन सांभळी क्रोध पामेलो यवन बन्यो के“रे दूत 1 तुं आशुं बोले छे ? मारी पासे अश्वसेन के पार्श्वक गणतरीमा थे ? तो ते पार्श्व न पोताने स्थाने जाय धने
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