Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Part 02
Author(s): Kunvarji Anandji Shah
Publisher: Kunvarji Anandji Shah Bhavnagar
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अर्थ-(एमाओ) पा (पंच ) पांच ( समिईयो) समितिओ (समासेण) संक्षेपे करीने (विभाहिया) कही थे. (इत्तो अ) हवे (तो) त्रण ( गुत्ती) गुलियोने ( अणुपुब्बसो) अनुक्रमे ( वोच्छामि ) ९ कहुं छु. १६.
हवे पहेली गुप्ति कहे छ.-- सच्चा १ तहेब मोसार य, सच्चामोसा ३ तहेव य। चउत्थी असञ्चमोसा ४ अ, मणगुती चउब्धिहा ॥२०॥
अर्थ- (सच्चा) मनमा छता पदार्थ- जे चितवq ते सत्य मनोयोग कहेवाय छे ते संबंधी मनोगुप्ति पण उपचारथी * सत्या कहेवाय छे. १. (तहेब) ते ज प्रमाणे (भोसा य) मृषा मनोगुप्ति. २. (सच्चामोसा) सत्यामृपा मनोगुप्ति. ३. (तहेव य) तथा वळी ( चउत्थी ) चौथी (असञ्चमोसा य) असत्यामृषा मनोगुप्ति. ४. ए प्रमाणे ( मणगुत्ती ) मनोगुप्ति ( चउन्विहा) चार प्रकारनी छे. जगतमां जीवतत्व छ एम सत्य पदार्थy चितवन ते सत्या १, जीवतत्व नथी एम सत्नु असत्पणे चितवन करवू ते मृषा एटले असत्या २, अाम्रादिक विविध वृक्षोनुं वन जोह तेने आम्रनुं ज वन छ एम चितवq ते सत्यामृषा ३, तथा जे चितवन सत्य पण न होय अने असत्य पण न होय, जेम " हे देवदत्त ! घडो लाव." " मारे माटे अमुक वस्तु लाव" इत्यादि आदेश निर्देशादिक वचन- मनमा चितवन करवू ते असत्याऽमृषा मनोगुप्ति छे. २०.
मनोगुप्तिना ज स्वरूपने कहेता सता उपदेश श्रापे छे.--- संरंभसमारंभे, आरंभम्मि तहेव य । मणं पंवत्तमाणं तु, निमत्तिज जयं जेई ॥ २१ ॥