Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Part 02
Author(s): Kunvarji Anandji Shah
Publisher: Kunvarji Anandji Shah Bhavnagar
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शके तेम जन्मथी आरंभीने स्वेच्छाए फरनारा तमे पण बघूनो निर्वाह करी शको तेम नहीं होय, तेथी ज विवाइने अंगीकार करता नथी एम हुं धारुं हुं. जो ए ज कारण होय तो ते पण अयुक्त छे. केमके तमारा भाइ बासुदेव जेम अमारो ( १६ हजारो ) निर्वाह करे छे, तेम तेनो पण निर्वाह करशे. समग्र पृथ्वीनो भार धारण करनार शेषनागने कोइ लवानो भार वीजतो नथी. वही निर्वाणनी प्राप्ति नहीं थवाना भयथी जो भोगनो त्याग करता हो, तो ते पण खोटुं छे. केमके ऋषभादिक जिनेश्वरो भोग भोगवीने पण सिद्ध थया के. धृष्टण्णाधी मंगा थयेला तमे जवाब आप के न भायो; परंतु विवाह अंगीकार कर्या विना श्रमाराधी तमे छुटी शकशो नहीं. "
या प्रमाणे ते कृष्णनी प्रियाओ प्रार्थना करती हती. ते वखते बळराम भने कृष्ण विगरेए आवीने तेज प्रमाणे प्रार्थना करी बंधुश्री मनोहर वचनो वडे अत्यंत आग्रह कर्यो, त्यारे भाविभावने विचारता स्वामी विवाहनी संमति आपी थी हर्ष पामता वासुदेवे समुद्रविजय पासे जह से वृत्तांत को, पटले ते पण अत्यंत हर्षित थया, अने तेणे कृष्णने क के - " हे महाबुद्धिमान 1 तुं ज नेमिकुमार माटे योग्य कन्यानी शोध कर." त्यारे वासुदेव पोते योग्य कन्वानी शोध करवा लाग्या, तेटलामां सत्यभामाए तेने कछु के-" हे प्रिय ! कमळना सरखा नेत्रपाळी मारी बेन राजीमती ज नेमकुमारने योग्य थे. " ते सांभळी श्रीकृष्ण हर्ष पानी पोते ज उग्रसेन राजाने घेर गया. वासुदेवने पोताने घेर श्रावेला जोइ उग्रसेन वर्ष पासी, उभा थह आसन आपी हाथ जोडीने बोल्या के" आजे स्वामीए जाते अहीं श्राववानो प्रयास शा माटे कर्यो ? पोताना सेवकने मोकली मने ज क्रेम न बोलायो ? आ मारुं घर, धन, शरीर अने पुत्री विगेरे सर्व आपनुं ज