Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Part 02
Author(s): Kunvarji Anandji Shah
Publisher: Kunvarji Anandji Shah Bhavnagar
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करी नहीं ज रहेजो." ते सांभळी प्राचार्य महाराजे कधु के-" हे राजकुमार! तमारो विचार योग्य छे. माटे आ बाबसमां विलंब करवो नहीं. " पछी हमारे घर जड़ मातापिताने प्रणाम करी कयु के---"धर्मघोष गुरुनी धर्मदेशना सांभळी पानंद पाम्यो छु. तेथी आप पूज्योनी भनुज्ञाथी हुँ तेमनी पासे दोचा लेवा इच्छु ए. वहाण मळ्या पछी कयो * माणस समुद्रमा डुबतो रहे ?" मा प्रमाणे कुमारनु वचन सांभळी प्रभावती राणी पृथ्वीपर मूर्खा खाइने पडी गइ. पछी | शीतोपचारथी सावधान थइ सती ते रुदन करती बोली के-" हे पुत्र ! अमे तारा वियोगने सहन करवा शक्तिमान नथी. तेथी ज्यांसुधी अमे जीवीए छीए त्यांसुधी तुं गृहस्थाश्रममा ज रहे. पछी दीक्षा ग्रहण करजे." कुमारे कधू-"मा जगतमा सर्व संयोगो स्वप्ननी जेवा चणिक अने असत् छ, तथा मनुष्यतुं आयुष्य वायुथी हलता दर्भना अग्रभागपर रहेला जळना बिंदु जेवू चंचळ छे. तेथी हुँ नधी जाणतो के पहेलु कोण जशे ? माटे मने आजे ज प्रव्रज्या लेवानी आज्ञा आपो, " माताए कह्यु" हे वत्स! आ तारुं यौवन वयवाळं शरीर अति मनोहर अने कोमळ छे, माटे हमणां सुख भोगव अने पछी वृद्धावस्थामा दीक्षा ग्रहण करजे." कुमारे कयु-" हे माता! आ शरीर रोगोथी व्याप्त थे, अशुचिथी * भरेलुं छे, मळथी मलिन छे, अने कारागृहनी जेवू असार छे. आवा शरीरथी मनुष्यने शुं सुख के ? वळी शरीरमा शक्ति होय त्यारे ज चारित्र लेवू योग्य छ, वृद्धावस्थामां शरीर अशक्त बाथी चारित्र घरावर पाळी शकातुं नथी, अथवा ते वस्त्रते मन न होय तो पण ब्रत जेधुंज छे, माटे युवावस्थामाज दीक्षा सफळ थाय छे." प्रमावती माता बोली-"समग्र | गुणना स्थानरूप आ आठ स्त्रीमोनी साथे हममा तुं भोग भोगव. हमो प्रत लेवाथी शुं?" महाबळ कुमार बोन्यो