Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 14
________________ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे टीका-'जंबूद्दीवेणमित्यादि-'जंबूद्दीवेणं भंते ! दीवे' जम्बूद्वीपे खलु भदन्त ! द्वीपे हे भदन्त जम्बूद्वीपनामके द्वीपे मध्य जम्बूद्वीपे इत्यर्थः यद्यपि सन्ति असंख्याता द्वीपा: सर्वज्ञागमप्रसिद्धास्तत्र द्वीपेषु मध्ये योऽयं जम्बू नामको मध्य जम्बूद्वीप विशेषः तस्मिन् जम्बूद्वीपे 'कइ चंदा पभासिसु' कति चन्द्राः कियत्संख्यकाः चन्द्रमसः प्रभासितवन्तः अतीतकाले प्रकाशनीयं स्पर्शादि विशिष्टवस्तु जातं प्रकाशितवन्तः 'पभासंति' प्रभासयंति तथा वर्तमानकाले प्रकाशनीयं वस्तुजातं प्रकाशयंति उद्योतयन्तीत्यर्थः, 'पभासिस्संति' प्रभासयिष्यन्ति अनागतकाले प्रकाशनीयं प्रकाशजातं प्रकाशयिष्यन्ति, प्रकाशननामकर्मोदयात् चन्द्रमंडलगतजीवानाम् अनुष्णस्पर्श हि तेजोलोके प्रकाशशब्देन व्यवहियते तेन तथा रूपको हि प्रश्नः। अनाद्यनन्तं जगतः स्थितिरिति जानतः शिष्यस्य तथा प्रश्न इति। तथा 'कइ सरिया तवइंसु' कति कियत्संख्यकाः सूर्या तापितवन्तः अतीतकाले स्वात्मव्यतिरिक्तं पदार्थजातं स्वतापेन तापितवन्तः तेषु वस्तुषु तापं जनितवन्त इत्यर्थः 'तवेंति' तापयंति तथा 'तविस्संति' ॥ सप्तमवक्षस्कार का प्रारम्भ ॥ जम्बुद्वीप नामके द्वीप में ज्योतिष्क देव रहते हैं वे चर हैं इस अभिप्राय से सूत्रकार ज्योतिष्काधिकार का प्रतिपादन करते हैं । इसमें सर्वप्रथम वे प्रस्तावना के निमित्त चन्द्र सूर्य, नक्षत्र महाग्रह और तारा इनकी संख्या के विषय का प्रश्नोत्तररूप सूत्र कहते हैं-'जंबुद्दीवेणं भंते ! दीवे कइ चंदा पभासिंसु पभासंति' इत्यादि ___टीकार्थ-इस सूत्रद्वारा गौतमस्वामी ने प्रभु से ऐसा पूछा है-'जम्बूद्दीवेणं भंते! दीवे कइ चंदा पभासिंसु पभासंति पभासिस्संति' हे भदन्त ! इस जम्बूद्वीप नामके मध्यद्वीप में कितने चन्द्र पहिले भूत काल में उद्योत देनेवाले हए हैं ? वर्तमानकाल में कितने चन्द्रमा उद्योत देते हैं ? और भविष्यत्काल में कितने चन्द्र उद्योत देंगें? इसी तरह 'कइसरिया तवइंसु, तवेंति तविस्संति' कितने सूर्य भूतकाल में आतप प्रदान करने वाले हुए हैं ? वर्तमान में कितने સમવક્ષસ્કાર નો પ્રારંભ જંબુદ્વીપ નામક દ્વીપમાં તિષ્ક દે રહે છે. તેઓ ચર છે. આ અભિપ્રાયથી સૂત્રકાર જ્યોતિકાધિકારનું પ્રતિપાદન કરે છે. તેઓશ્રી આમાં સર્વપ્રથમ પ્રસ્તાવના નિમિત્તે ચન્દ્ર, સૂર્ય, નક્ષત્ર, મહાગ્રહ અને તારા એ સર્વની સંખ્યા-વિષયક પ્રશનેત્તર રૂપસૂત્ર કહે છે'जंबुद्दीवेणं भंते ! दीवे कइ चंदा पभासिसु पभासंति' इत्यादि। -20 सूत्र 43 गौतमस्वामी प्रभुने PAL तन प्रश्न ये छ, 'जंबुद्दीवेणं भंते ! दीवे कइचंदा पभासिसु पभासंति पभासिस्संति' लत ! मादी५ नाम मध्य દ્વીપમાં કેટલા ચન્દ્રો પહેલાં ભૂતકાળમાં ઉદ્યોત આપનારા થયા છે ! વર્તમાનકાળમાં કેટલા ચન્દ્રમાએ ઉદ્યોત આપે છે અને ભવિષ્યન્ત કાલમાં કેટલા ચન્દ્રો ઉદ્યોત આપશે? આ प्रभारी 'कइसरिया तवइंसु, तवेंति तविस्संति' है। सूयो भूतभा मात५महान ४२ना। જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્રા

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