Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi Gujarati
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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पट
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वर्ती गमन के जाट उनके अनुयर वर्ग प्रार्था नि३पा अष्टाएिडा समाप्त रहे आगे प्रार्य डा नि३पा
भरतयडी स्नानाहिसे निवृत होनेडे अनन्तर प्रार्था नि३पा भागधतीर्थाधिपतिष्ठा भरतयडी हो लेटप्रधान का नि३पा भरतीडा वरामतीर्थ के प्रतिगमना नि३पा
जडीरत्नो आवसथाहिजनानेडी खाज्ञा पुरनेपर वर्द्धडीरत्न या वर्षान रथवन पूर्व भरत महाराष्ट्र स्थावरोहाडा नि३पा सिंधूवी साधने डा निपा
वैतादयगिरिभारहेव साधने न सुषेासेनापति विभ्या वर्षान
तभिस्त्रा गुहा के द्वार हो उ६धाटन डरने प्रा निपा उम्भग्न निमग्ननाम श्री महानही डे साशया नि३पा वं उत्तरार्धलरत तिनेा नि३पा
भरत महाराष्डे सैन्यही स्थितिडा प्रथन
आपातयितात हेवों के उपासना प्रा निपा
वर्षा हो भने भरतमहाराष् ट्ठे प्रार्थ डावन भरत महाराभाडे सैन्य डी स्थिति प्रा वर्शन
सातरात्रि जाडा वृत्तांत वन
उत्तरहिशाडे निष्ठुरभितनेा जेवं षडुटो तिने वन नभी जेवं विनभी नाभट्ठे विद्याधरों से विभ्या वर्षान
भरत महाराष्ट्र हिग्यात्रा तथा हक्षिशार्ध में भरत प्रार्या वर्षान राष्ट्र्यो तिने जाघ्छा भरतमहाराष्भ प्रार्थ वन
अपनी राधानी में जाये हुये भरत महाराष्ट्र अर्थ का नि३पाएा भरत महाराष्ट्र के राष्ट्र्यालिषेऽ विषयमा नि३पा
भरत महाराष्भ के रत्नोत्पति के स्थान प्रा नि३पा
छोडों पालन उरते हुये भरतमहाराष्भ डी प्रवृति डरने का नि३पा प्रकारान्तर से लरतनाभडी अन्वर्थतामा प्रथन
જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર
सभाप्त
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