Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 01  Sthanakvasi Gujarati
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 11
________________ 3৭ ३२ 33 ३४ ૩૫ ३६ ३७ ३८ ३८ ४० ૪૧ ४२ ४३ ४४ ૪૫ ૪૬ ४७ ४८ ४८ ५० ૫૧ પર ૫૩ ૫૪ पप પદ ५७ पट उससमय में डिम् उपद्रवसम्जन्धी प्रश्नोतर सात मनुष्योंडी लवस्थित्याहि प्रा नि३पा दुसरा आर सुषभानाम दूसरे जारेडा नि३पा सुषभानाभडे सारेमें लर्वा स्थतिका नि३पा तीसरा आर तीसरे आर स्व३पडा थन सुषमहुष्षभाडात अन्तिम त्रिभागमें लोड व्यवस्था डा प्रथन डुलकरता प्रकारडा प्रथन ऋषलस्वामी त्रिभग ४नपूरनीयता ऋषभस्वाभी घीक्षागृह के अनन्तरीय प्रर्तव्या प्रथन भगवान श्री श्रामाएयावस्थामा एन लगवाना ठेवलज्ञान प्राप्तिडा प्रथन ऋषभस्वामी प्रो डेवलज्ञानोत्पत्ति अनन्तरीय प्रार्था नि३पा भगवान भल्याएाहिका नि३पा भगवान निर्वाए जाह हेवडत्या निउपा भगवान निर्वाडे अनन्तर ईशानेन्द्र र्तव्या प्रथन ६४ न्द्रों के आगमनानन्तर हेवेन्द्र शार्यान भगवान जाहिलेवर रनपनाहि डा नि३पा भगवान जाहिलेवर चिंतामें रजने जाडा शाहिडे प्रार्य डा नि३पा अस्थिसंयय जाडी विधी का नि३पा थर्तुथ आर पांचवा खारा थर्तुथ र स्व३ કે पंथम खार के स्व३पडा थन छठे खारेडा स्व३पनि३पा કે उत्सर्पिष्षमा आरमें अवसर्पिणी हुष्षमा आरसे विशिष्टता मनुष्यों के उर्तव्य जेवं आडार लावप्रत्यवतारा न तीसरा वक्षस्डार उत्सर्पिणी हुष्षभाडा ष्षभसुषमा डाडा वन छठ्ठा जार भरतवर्ष नाम होने से प्राथन उत्पत्याहिना निपा भरत यवर्ती भरत यवर्ती हिग्वियाहिा निश्पा જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર ८४ ८६ ८८ ૯૩ ૯૫ ८७ EE १०० १०८ ૧૧૨ ૧૧૪ ११७ १२२ १२२ १२६ १२८ ૧૨૯ १३० १३२ ૧૩૫ १३७ १३८ १४७ ૧૫૦ ૧૫૨ ૧૫૬ १५७ ૧૬૦

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