________________
3৭
३२
33
३४
૩૫
३६
३७
३८
३८
४०
૪૧
४२
४३
४४
૪૫
૪૬
४७
४८
४८
५०
૫૧
પર
૫૩
૫૪
पप
પદ
५७
पट
उससमय में डिम् उपद्रवसम्जन्धी प्रश्नोतर सात मनुष्योंडी लवस्थित्याहि प्रा नि३पा
दुसरा आर
सुषभानाम दूसरे जारेडा नि३पा सुषभानाभडे सारेमें लर्वा स्थतिका नि३पा
तीसरा आर
तीसरे आर स्व३पडा थन
सुषमहुष्षभाडात अन्तिम त्रिभागमें लोड व्यवस्था डा प्रथन
डुलकरता प्रकारडा प्रथन
ऋषलस्वामी त्रिभग ४नपूरनीयता
ऋषभस्वाभी घीक्षागृह के अनन्तरीय प्रर्तव्या प्रथन
भगवान श्री श्रामाएयावस्थामा एन
लगवाना ठेवलज्ञान प्राप्तिडा प्रथन
ऋषभस्वामी प्रो डेवलज्ञानोत्पत्ति अनन्तरीय प्रार्था नि३पा
भगवान भल्याएाहिका नि३पा
भगवान निर्वाए जाह हेवडत्या निउपा
भगवान निर्वाडे अनन्तर ईशानेन्द्र र्तव्या प्रथन ६४ न्द्रों के आगमनानन्तर हेवेन्द्र शार्यान भगवान जाहिलेवर रनपनाहि डा नि३पा
भगवान जाहिलेवर चिंतामें रजने जाडा शाहिडे प्रार्य डा नि३पा अस्थिसंयय जाडी विधी का नि३पा
थर्तुथ आर
पांचवा खारा
थर्तुथ र स्व३ કે
पंथम खार के स्व३पडा थन
छठे खारेडा स्व३पनि३पा
કે
उत्सर्पिष्षमा आरमें अवसर्पिणी हुष्षमा आरसे विशिष्टता मनुष्यों के उर्तव्य जेवं आडार लावप्रत्यवतारा न
तीसरा वक्षस्डार
उत्सर्पिणी हुष्षभाडा ष्षभसुषमा डाडा वन
छठ्ठा जार
भरतवर्ष नाम होने से प्राथन उत्पत्याहिना निपा
भरत यवर्ती
भरत यवर्ती हिग्वियाहिा निश्पा
જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર
८४
८६
८८
૯૩
૯૫
८७
EE
१००
१०८
૧૧૨
૧૧૪
११७
१२२
१२२
१२६
१२८
૧૨૯
१३०
१३२
૧૩૫
१३७
१३८
१४७
૧૫૦
૧૫૨
૧૫૬
१५७
૧૬૦