Book Title: Agam 14 Jivajivabhigam Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र १४, उपांगसूत्र - ३, 'जीवाजीवाभिगम'
प्रतिपत्ति / उद्देश / सूत्र
उनमें तीन दृष्टियाँ, तीन दर्शन होते हैं ।
वे ज्ञानी भी होते हैं और अज्ञानी भी । जो ज्ञानी हैं वे नियम से तीन ज्ञानवाले हैं और अज्ञानी हैं वे भजना से तीन अज्ञानवाले हैं । उनमें साकार अनाकार दोनों उपयोग पाये जाते हैं। तीनों योग होते हैं । आहार नियम से छहों दिशाओं के पुद्गलों को ग्रहण करता है । प्रायः करके पीले और सफेद शुभ वर्ण के यावत् शुभगंध, शुभरस, शुभस्पर्श वाले पुद्गलों का आहार करते हैं । वे तिर्यंच और मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं । उनकी स्थिति जघन्य से १०००० वर्ष और उत्कृष्ट तेंतीस सागरोपम की है । वे मारणान्तिकसमुद्घात से समवहत और असमवहत होकर भी मरते हैं । वहाँ से च्युत होकर तिर्यंचों और मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं । वे दो गतिवाले, दो आगतिवाले, प्रत्येकशरीरी और असंख्यात हैं ।
सूत्र - ५१
भगवन् ! स्थावर की कालस्थिति कितने समय की है ? गौतम ! जघन्य से अन्तमुहूर्त्त और उत्कृष्ट से बाईस हजार वर्ष की है । भगवन् ! त्रस की भवस्थिति ? गौतम ! जघन्य से अन्तमुहूर्त्त और उत्कृष्ट से तेंतीस सागरोपम की । भन्ते ! स्थावर जीव स्थावर के रूप में कितने काल तक रहता है ? गौतम ! जघन्य से अन्तमुहूर्त्त और उत्कृष्ट से अनंतकाल तक—अनन्त उत्सर्पिणी अवसर्पिणियों तक । क्षेत्र से अनन्त लोक, असंख्येय पुद्गलपरावर्त तक । आवलिका के असंख्यातवें भाग में जितने समय होते हैं उतने पुद्गलपरावर्त तक स्थावर स्थावररूप में रह सकता है । भन्ते ! त्रस जीव त्रस के रूप में कितने काल तक रहता है ? गौतम ! जघन्य से अन्तमुहूर्त्त और उत्कृष्ट से असंख्यात उत्सर्पिणी-अवसर्पिणियों तक । क्षेत्र से असंख्यात लोक ।
भगवन् ! स्थावर का अन्तर कितना है ? गौतम ! जितना उनका संचिट्ठणकाल है, क्षेत्र से असंख्येय लोक है । त्रस का अन्तर कितना है ? गौतम ! जघन्य से अन्तमुहूर्त्त और उत्कृष्ट से वनस्पतिकाल । भगवन् ! इन त्रसों और स्थावरों में कौन किससे अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक है ? गौतम ! सबसे थोड़े त्रस हैं। स्थावर जीव उनसे अनन्तगुण हैं।
प्रतिपत्ति-१ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (जीवाजीवाभिगम)" आगमसूत्र - हिन्द- अनुवाद”
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