Book Title: Agam 14 Jivajivabhigam Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 117
________________ आगम सूत्र १४, उपांगसूत्र-३, 'जीवाजीवाभिगम' प्रतिपत्ति/उद्देश-/सूत्र भगवन् ! इन पृथ्वीकायिकों यावत् त्रसकायिकों के पर्याप्तों और अपर्याप्तों में समुदित रूप में कौन किससे अल्प, बहुत, सम या विशेषाधिक हैं ? गौतम ! सबसे थोड़े त्रसकायिक पर्याप्तक, उनसे त्रसकायिक अपर्याप्त असंख्येयगुण, उनसे तेजस्कायिक अपर्याप्त असंख्येयगुण, पृथ्वीकायिक, अप्कायिक, वायुकायिक अपर्याप्त विशेषाधिक, उनसे तेजस्कायिक पर्याप्त संख्येयगुण, उनसे पृथ्वी-अप्-वायुकाय पर्याप्तक विशेषाधिक, उनसे वनस्पतिकायिक अपर्याप्त अनन्तगुण, उनसे सकायिक अपर्याप्तक विशेषाधिक, उनसे वनस्पतिकायिक पर्याप्तक संख्येयगुण, उनसे सकायिक पर्याप्तक विशेषाधिक हैं। सूत्र - ३५२ __ भगवन् ! सूक्ष्म जीवों की स्थिति कितनी है? गौतम! जघन्य व उत्कृष्ट से भी अन्तर्मुहूर्त्त । इसी प्रकार सूक्ष्म निगोदपर्यन्त कहना । इस प्रकार सूक्ष्मों के पर्याप्त-अपर्याप्तकों की जघन्य-उत्कृष्ट स्थिति अन्तर्मुहूर्त प्रमाण ही है। सूत्र-३५३ भगवन् ! सूक्ष्म, सूक्ष्मरूप में कितने काल तक रहता है ? गौतम ! जघन्य अन्तर्महर्त्त तक और उत्कष्ट असंख्यातकाल तक रहता है । यह असंख्यातकाल असंख्येय उत्सर्पिणी-अवसर्पिणी रूप हैं तथा असंख्येय लोककाश के प्रदेशों के अपहारकाल के तुल्य है । इसी तरह सूक्ष्म पृथ्वीकाय अप्काय तेजस्काय वायुकाय वनस्पति काय की संचिट्ठणा का काल पृथ्वीकाल अर्थात् असंख्येयकाल है यावत् सूक्ष्म-निगोद की कायस्थिति भी पृथ्वी-काल है । सब अपर्याप्त सूक्ष्मों की कायस्थिति जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त प्रमाण ही है। सूत्र - ३५४ भगवन् ! सूक्ष्म, सूक्ष्म से नीकलने के बाद फिर कितने समय में सूक्ष्मरूप से पैदा होता है ? यह अन्तराल कितना है ? गौतम ! जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्ष से असंख्येयकाल-असंख्यात उत्सर्पिणी-अवसर्पिणी काल रूप है तथा क्षेत्र से अंगुलासंख्येय भाग क्षेत्र में जितने आकाशप्रदेश हैं उन्हें प्रति समय एक-एक का अपहार करने पर जितने काल में वे निर्लेप हो जायें, वह काल असंख्येयकाल समझना चाहिए । सूक्ष्म वनस्पतिकायिक और सूक्ष्मनिगोद का अन्तर असंख्येय काल (पृथ्वीकाल) है । सूक्ष्म अपर्याप्तों और सूक्ष्म पर्याप्तों का अन्तर औधिक-सूत्र के समान है। सूत्र-३५५ __अल्पबहुत्वद्वार इस प्रकार है-सबसे थोड़े सूक्ष्म तेजस्कायिक, सूक्ष्म पृथ्वीकायिक विशेषाधिक, सूक्ष्म अप्कायिक, सूक्ष्म वायुकायिक क्रमशः विशेषाधिक, सूक्ष्म-निगोद असंख्येयगुण, सूक्ष्म वनस्पतिकायिक अनन्तगुण और सूक्ष्म विशेषाधिक हैं । सूक्ष्म अपर्याप्तों और सूक्ष्म पर्याप्तों का अल्पबहुत्व भी इसी क्रम से है । भगवन् ! सूक्ष्म पर्याप्तों और सूक्ष्म अपर्याप्तों में कौन किससे अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक हैं ? गौतम ! सबसे थोड़े सूक्ष्म अपर्याप्तक हैं, सूक्ष्म पर्याप्तक उनसे संख्येयगुणे हैं । इसी प्रकार सूक्ष्म-निगोद पर्यन्त कहना । भगवन् ! सूक्ष्मों में सूक्ष्मपृथ्वीकायिक यावत् सूक्ष्म-निगोदों में पर्याप्तों और अपर्याप्तों में समुदित अल्पबहुत्व का क्रम क्या है ? गौतम ! सबसे थोड़े सूक्ष्म तेजस्काय अपर्याप्तक, उनसे सूक्ष्म पृथ्वीकायिक अपर्याप्त विशेषाधिक, उनसे सूक्ष्म अप्कायिक अपर्याप्त विशेषाधिक, उनसे सूक्ष्म वायुकायिक अपर्याप्त विशेषाधिक, उनसे सूक्ष्म तेजस्कायिक पर्याप्त संख्येयगुण, उनसे सूक्ष्म पृथ्वी-अप्-वायुकायिक पर्याप्त क्रमशः विशेषाधिक, उनसे सूक्ष्मनिगोद अपर्याप्तक असंख्येयगुण, उनसे सूक्ष्मनिगोद पर्याप्तक संख्येयगुण, उनसे सूक्ष्म वनस्पतिकायिक अपर्याप्तक अनन्तगुण, उनसे सूक्ष्म अपर्याप्त विशेषाधिक, उनसे सूक्ष्म वनस्पति पर्याप्तक संख्येयगुण, उनसे सूक्ष्म पर्याप्त विशेषाधिक हैं। सूत्र-३५६ भगवन् ! बादर की स्थिति कितनी है ? गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट तेंतीस सागरोपम । बादर मुनि दीपरत्नसागर कृत् । (जीवाजीवाभिगम) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 117

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