Book Title: Agam 14 Jivajivabhigam Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
View full book text
________________
आगम सूत्र १४, उपांगसूत्र-३, 'जीवाजीवाभिगम'
प्रतिपत्ति/उद्देश-/सूत्र अन्तर्मुहर्त और उत्कृष्ट साधिक सागरोपम शतपृथक्त्व तक रह सकता है । नपुंसकवेदक जघन्य एक समय और उत्कृष्ट अनन्तकाल तक रह सकता है । अवेदक दो प्रकार के हैं-सादि-अपर्यवसित और सादि-सपर्यवसित । सादिसपर्यवसित अवेदक जघन्य एक समय और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त तक रह सकता है । स्त्रीवेदक का अन्तर जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट वनस्पतिकाल है । पुरुषवेदक का अन्तर जघन्य एक समय और उत्कृष्ट वनस्पतिकाल है । नपुंसकवेदक का अन्तर जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट साधिक सागरोपम शतपृथक्त्व है । अवेदक का अन्तर नहीं है । अल्पबहुत्व में सबसे थोड़े पुरुषवेदक, उनसे स्त्रीवेदक संख्येयगुण, उनसे अवेदक अनन्तगुण और उनसे नपुंसकवेदक अनन्तगुण हैं। सूत्र - ३८४
अथवा सर्व जीव चार प्रकार के हैं-चक्षुर्दर्शनी, अचक्षुर्दर्शनी, अवधिदर्शनी और केवलीदर्शनी । चक्षुर्दर्शनी काल से जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट साधिक एक हजार सागरोपम तक रह सकता है । अचक्षुर्दर्शनी दो प्रकार के हैं-अनादि-अपर्यवसित और अनादि-सपर्यवसित । अवधिदर्शनी जघन्य से एक समय और उत्कर्ष से साधिक दो छियासठ सागरोपम तक रह सकता है । केवलदर्शनी सादि-अपर्यवसित है । चक्षुर्दर्शनी का अन्तर जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट वनस्पतिकाल है । दोनों प्रकार के अचक्षुर्दर्शनी का अन्तर नहीं है । अवधिदर्शनी का जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्ष वनस्पतिकाल है । केवलदर्शनी का अन्तर नहीं है । अल्पबहुत्व में सबसे थोड़े अवधि दर्शनी, उनसे चक्षुर्दर्शनी असंख्येयगुण हैं, उनसे केवलदर्शनी अनन्तगुण हैं और उनसे अचक्षुर्दर्शनी भी अनन्तगुण हैं सूत्र - ३८५
अथवा सर्व जीव चार प्रकार के हैं-संयत, असंयत, संयतासंयत और नोसंयत-नोअसंयत-नोसंयतासंयत । संयत, संयतरूप में जघन्य एक समय और उत्कृष्ट देशोन पूर्वकोटि तक रहता है । असंयत का कथन अज्ञानी की तरह कहना । संयतासंयत जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट देशोन पूर्वकोटि । नोसंयत-नोअसंयत-नोसंयतासंयत सादि-अपर्यवसित है । संयत और संयतासंयत का अन्तर जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट देशोन अपार्धपुद्गलपरावर्त है । असंयतों में आदि के दो प्रकारों में अन्तर नहीं है । सादि-सपर्यवसित असंयत का अन्तर जघन्य एक समय और उत्कृष्ट देशोन पूर्वकोटि है । चौथे नोसंयत-नोअसंयत-नोसंयतासंयत का अन्तर नहीं है । अल्पबहुत्व में सबसे थोड़े संयत हैं, उनसे संयतासंयत असंख्येयगुण हैं, उनसे नोसंयत-नोअसंयत-नोसंयतासंयत अनन्तगुण हैं और उनसे असंयत अनन्तगुण हैं।
प्रतिपत्ति-१०-सर्वजीव-४ सूत्र - ३८६
जो ऐसा कहते हैं कि पाँच प्रकार के सर्व जीव हैं, उनके अनुसार वे पाँच भेद इस प्रकार हैं-क्रोधकषायी, मानकषायी, मायाकषायी, लोभकषायी और अकषायी । क्रोध यावत् मायाकषायी जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट से भी अन्तर्मुहूर्त तक उस रूप में रहते हैं । लोभकषायी जघन्य एक समय तक और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त तक उस रूप में रह सकता है । अकषायी दो प्रकार के हैं सादि-अपर्यवसित और सादि-सपर्यवसित । सादि-सपर्यवसित जघन्य एक समय, उत्कर्ष से फ उस रूप में रह सकता है । क्रोध यावत् मायाकषायी का अन्तर जघन्य एक समय और उत्कर्ष से अन्तर्मुहूर्त है । लोभकषायी का अंतर जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्ष से अन्तर्मुहूर्त है । अकषायी में अंतर नहीं है। सूत्र-३८७
___ अल्पबहुत्व में सबसे थोड़े अकषायी हैं, उनसे मानकषायी अनन्तगुण हैं, उनसे क्रोधकषायी, मायाकषायी और लोभकषायी क्रमशः विशेषाधिक जानना चाहिए।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् । (जीवाजीवाभिगम)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
Page 130