Book Title: Agam 14 Jivajivabhigam Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र १४, उपांगसूत्र-३, 'जीवाजीवाभिगम'
प्रतिपत्ति/उद्देश-/सूत्र सूत्र - ३७८
अथवा सर्व जीव तीन प्रकार के हैं-सूक्ष्म, बादर और नोसूक्ष्म-नोबादर । सूक्ष्म, सूक्ष्म के रूप में जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्ष से असंख्येय काल अर्थात् पृथ्वीकाल तक रहता है । बादर, बादर के रूप में जघन्य अन्तमूहुर्त और उत्कृष्ट असंख्येयकाल-असंख्येय उत्सर्पिणी-अवसर्पिणी रूप है कालमार्गणा से । क्षेत्रमार्गणा से अंगुल का असंख्येयभाग है। सूत्र - ३७९
अथवा सर्व जीव तीन प्रकार के हैं-संज्ञी, असंज्ञी, नोसंज्ञी-नोअसंज्ञी । संज्ञी, संज्ञी रूप में जघन्य से अन्तमूहुर्त और उत्कृष्ट से सागरोपमशतपृथक्त्व से कुछ अधिक समय तक रहता है । असंज्ञी जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट से वनस्पतिकाल | नोसंज्ञी-नोअसंज्ञी सादि-अपर्यवसित है । संज्ञी का अन्तर जघन्य अन्तर्मुहर्त्त और उत्कृष्ट वनस्पतिकाल है । असंज्ञी का अन्तर जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट साधिक सागरोपम शतपृथक्त्व है । नोसंज्ञीनोअसंज्ञी का अन्तर नहीं है । अल्पबहुत्व में सबसे थोड़े संज्ञी हैं, उनसे नोसंज्ञी-नोअसंज्ञी अनन्तगुण हैं और उनसे असंज्ञी अनन्तगुण हैं। सूत्र-३८० ___अथवा सर्व जीव तीन प्रकार के हैं-भवसिद्धिक, अभवसिद्धिक और नोभवसिद्धिक-नोअभवसिद्धिक । भवसिद्धिक जीव अनादि-सपर्यवसित हैं । अभवसिद्धिक अनादि-अपर्यवसित हैं और उभयप्रतिषेधरूप सिद्ध जीव सादि-अपर्यवसित हैं । अल्पबहुत्व में सबसे थोड़े अभवसिद्धिक हैं, उभयप्रतिषेधरूप सिद्ध उनसे अनन्तगुण हैं और भवसिद्धिक उनसे अनन्तगुण हैं । सूत्र- ३८१
अथवा सर्व जीव तीन प्रकार के हैं-त्रस, स्थावर और नोत्रस-नोस्थावर । त्रस, त्रस के रूप में जघन्य अन्तमुहर्त और उत्कृष्ट साधिक दो हजार सागरोपम तक रहता है । स्थावर, स्थावर के रूप में वनस्पतिकाल पर्यन्त रहता है । नोत्रस-नोस्थावर सादि-अपर्यवसित हैं । त्रस का अन्तर वनस्पतिकाल है और स्थावर का अन्तर साधिक दो हजार सागरोपम है। नोत्रस-नोस्थावर का अन्तर नहीं है। अल्पबहत्व में सबसे थोडे त्रस हैं, उनसे नोत्रस-नोस्थावर अनन्तगुण हैं और उनसे स्थावर अनन्तगुण हैं ।
प्रतिपत्ति-१०-सर्वजीव-३ सूत्र-३८२
जो ऐसा कहते हैं कि सर्व जीव चार प्रकार के हैं वे चार प्रकार ये हैं-मनोयोगी, वचनयोगी, काययोगी और अयोगी । मनोयोगी, मनोयोगी रूप में जघन्य एक समय और उत्कष्ट अन्तर्महर्त्त तक रहता है । वचनयोगी का भी अन्तर यही है। काययोगी जघन्य से अन्तर्महर्त्त और उत्कष्ट से वनस्पतिकाल तक रहता है। अयोगी सादि-अपर्यवसित है । मनोयोगी का अन्तर जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट वनस्पतिकाल है । वचनयोगी का भी यही है । काययोगी का जघन्य अन्तर एक समय का है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहर्त है । अयोगी का अन्तर नहीं है। अल्पबहत्व में सबसे थोडे मनोयोगी, उनसे वचनयोगी असंख्यातगुण, उनसे अयोगी अनन्तगुण और उनसे काययोगी अनन्तगुण हैं। सूत्र- ३८३
अथवा सर्व जीव चार प्रकार के हैं-स्त्रीवेदक, पुरुषवेदक, नपुंसकवेदक और अवेदक । स्त्रीवेदक, स्त्रीवेदक के रूप में विभिन्न अपेक्षा से (पूर्वकोटिपृथक्त्व अधिक) एक सौ दस, एक सौ, अठारह, चौदह पल्योपम तक अथवा पल्योपम पृथक्त्व रह सकता है । जघन्य से एक समय तक रह सकता है । पुरुषवेदक, पुरुषवेदक के रूप में जघन्य
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (जीवाजीवाभिगम)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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