Book Title: Agam 14 Jivajivabhigam Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र १४, उपांगसूत्र-३, 'जीवाजीवाभिगम'
प्रतिपत्ति/उद्देश- सूत्र जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट साधिक छियासठ सागरोपम है ।
अल्पबहुत्व में सबसे थोड़े ज्ञानी, उनसे अज्ञानी अनन्तगुण हैं । अथवा दो प्रकार के सब जीव हैं-साकार और अनाकार-उपयोग वाले । इनकी संचिट्ठणा और अन्तर जघन्य और उत्कृष्ट से अन्तर्मुहूर्त है । अल्पबहुत्व में अनाकार-उपयोग वाले थोड़े हैं, उनसे साकार-उपयोग वाले संख्येयगुण हैं । सूत्र-३७२
अथवा सर्व जीव दो प्रकार के हैं-आहारक और अनाहारक | भगवन् ! आहारक, आहारक के रूप में कितने समय तक रहता है ? गौतम ! आहारक दो प्रकार के हैं-छद्मस्थ-आहारक और केवलि-आहारक । छद्मस्थआहारक, आहारक के रूप में ? गौतम ! जघन्य दो समय कम क्षुल्लकभव और उत्कृष्ट से असंख्येय काल तक यावत् क्षेत्र की अपेक्षा अंगुल का असंख्यातवाँ भाग रहता है । केवलि-आहारक यावत् काल से कितने समय तक रहता है ? गौतम ! जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट से देशोन पूर्वकोटि ।
भगवन् ! अनाहारक यावत् काल से कितने समय तक रहता है ? गौतम ! अनाहारक दो प्रकार के हैंछद्मस्थ-अनाहारक और केवलि-अनाहारक । छद्मस्थ-अनाहारक उसी रूप में जघन्य से एक समय, उत्कृष्ट दो समय तक रहता है । केवलि-अनाहारक दो प्रकार के हैं सिद्धकेवलि-अनाहारक और भवस्थकेवलि-अनाहारक | सिद्धकेवलि-अनाहारक गौतम ! सादि-अपर्यवसित है । भवस्थकेवलि-अनाहारक दो प्रकार के हैं-सयोगिभवस्थकेवलि-अनाहारक और अयोगि-भवस्थकेवलि-अनाहारक ।
भगवन् ! सयोगिभवस्थकेवलि-अनाहारक उसी रूप में कितने समय तक रहता है ? जघन्य उत्कृष्ट सहित तीन समय तक | अयोगिभवस्थकेवलि-अनाहारक जघन्य अन्तर्मुहुर्त्त और उत्कृष्ट से भी अन्तर्मुहूर्त्त । भगवन् ! छद्मस्थ-आहारक का अन्तर कितना कहा गया है ? गौतम ! जघन्य एक समय और उत्कृष्ट दो समय । केवलिआहारक का अन्तर जघन्य-उत्कृष्ट रहित तीन समय । अनाहारक का अंतर जघन्य दो समय कम क्षुल्लकभवग्रहण और उत्कर्ष से असंख्यात काल यावत् अंगुल का असंख्यातभाग । सिद्धकेवलि-अनाहारक सादि-अपर्यवसित है अतः अन्तर नहीं है । सयोगिभवस्थकेवलि-अनाहारक का जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट से भी यही है । अयोगिभवस्थकेवलि-अनाहारक का अन्तर नहीं है । भगवन् ! इन आहारकों और अनाहारकों में कौन किससे अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक हैं? गौतम ! सबसे थोड़े अनाहारक हैं, उनसे आहारक असंख्येयगुण हैं। सूत्र-३७३ __अथवा सर्व जीव दो प्रकार के हैं-सभाषक और अभाषक । भगवन् ! सभाषक, सभाषक के रूप में कितने काल तक रहता है ? गौतम ! जघन्य से एक समय, उत्कृष्ट से अन्तर्मुहर्त्त । गौतम ! अभाषक दो प्रकार के हैं-सादिअपर्यवसित और सादि-सपर्यवसित । इनमें जो सादि-सपर्यवसित अभाषक हैं, वह जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट में अनन्त काल तक अर्थात् अनन्त उत्सर्पिणी-अवसर्पिणीकाल तक रहता है।
भगवन् ! भाषक का अन्तर कितना है ? गौतम ! जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट से अनन्तकाल अर्थात् वनस्पतिकाल | सादि-अपर्यवसित अभाषक का अन्तर नहीं है । सादि-सपर्यवसित का अन्तर जघन्य एक समय, उत्कृष्ट अन्तर्मुहर्त है । अल्पबहत्व में सबसे थोड़े भाषक हैं, अभाषक उनसे अनन्तगुण हैं । अथवा सब जीव दो प्रकार के हैं-सशरीरी और अशरीरी । अशरीरी की संचिटणा आदि सिद्धों की तरह तथा सशरीरी की असिद्धों की तरह कहना यावत् अशरीरी थोड़े हैं और सशरीरी अनन्तगुण हैं। सूत्र-३७४
अथवा सर्व जीव दो प्रकार के हैं-चरम और अचरम । चरम अनादि-सपर्यवसित हैं । अचरम दो प्रकार के हैं-अनादि-अपर्यवसित और सादि-अपर्यवसित । दोनों का अन्तर नहीं है । अल्पबहुत्व में सबसे थोड़े अचरम हैं, उनसे चरम अनन्तगुण हैं।
मुनि दीपरत्नसागर कृत्- (जीवाजीवाभिगम) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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