Book Title: Agam 14 Jivajivabhigam Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
View full book text
________________
आगम सूत्र १४, उपांगसूत्र-३, 'जीवाजीवाभिगम'
प्रतिपत्ति/उद्देश-/सूत्र प्रतिपत्ति-९-दशविध सूत्र - ३६८
जो आचार्यादि दस प्रकार के संसारसमापन्नक जीवों का प्रतिपादन करते हैं, वे कहते हैं-१. प्रथमसमयएकेन्द्रिय, २. अप्रथमसमयएकेन्द्रिय, ३. प्रथमसमयद्वीन्द्रिय, ४. अप्रथमसमयद्वीन्द्रिय, ५. प्रथमसमयत्रीन्द्रिय, ६. अप्रथमसमयत्रीन्द्रिय, ७. प्रथमसमयचतुरिन्द्रिय, ८. अप्रथमसमयचतुरिन्द्रिय, ९. प्रथमसमयपंचेन्द्रिय और १०. अप्रथमसमयपंचेन्द्रिय ।
भगवन् ! प्रथमसमयएकेन्द्रिय की स्थिति कितनी है ? गौतम ! जघन्य और उत्कृष्ट भी एक समय । अप्रथमसमयएकेन्द्रिय की जघन्य एक समय कम क्षुल्लक-भवग्रहण और उत्कर्ष से एक समय कम बाईस हजार वर्ष । इस प्रकार सब प्रथमसमयिकों की जघन्य और उत्कर्ष से भी एक समय की स्थिति कहना । अप्रथमसमय वालों की स्थिति जघन्य से एक समय कम क्षुल्लकभव और उत्कर्ष से जिसकी जो स्थिति है, उसमें एक समय कम करके कथन करना यावत् पंचेन्द्रिय की एक समय कम तेंतीस सागरोपम की स्थिति है।।
प्रथमसमय वालों की संचिट्ठणा जघन्य और उत्कर्ष से भी एक समय है । अप्रथमसमय वालों की जघन्य से एक समय कम क्षुल्लकभवग्रहण और उत्कर्ष से एकेन्द्रियों की वनस्पतिकाल और द्वीन्द्रिय-त्रीन्द्रिय-चतुरिन्द्रियों की संख्येयकाल एवं पंचेन्द्रियों की साधिक हजार सागरोपम पर्यन्त संचिट्ठणा है । भगवन् ! प्रथमसमयएकेन्द्रियों का अन्तर कितना होता है ? गौतम ! जघन्य से एक समय कम दो क्षुल्लकभवग्रहण और उत्कृष्ट वनस्पतिकाल है । अप्रथमसमयएकेन्द्रिय का जघन्य अन्तर एक समय अधिक एक क्षुल्लकभव है और उत्कर्ष से संख्यात वर्ष अधिक दो हजार सागरोपम है । शेष सब प्रथमसमयिकों का अन्तर जघन्य से एक समय कम दो क्षुल्लकभवग्रहण है और उत्कर्ष से वनस्पतिकाल है । शेष अप्रथमसमयिकों का जघन्य अन्तर समयाधिक एक क्षुल्लकभवग्रहण है और उत्कर्ष से वनस्पतिकाल है।
सब प्रथमसमयिकों में सब से थोड़े प्रथमसमय पंचेन्द्रिय हैं, उन से प्रथमसमयचतुरिन्द्रिय विशेषाधिक हैं, उन से प्रथमसमयत्रीन्द्रिय विशेषाधिक हैं, उन से प्रथमसमयद्वीन्द्रिय विशेषाधिक हैं और उन से प्रथमसमयएकेन्द्रिय विशेषाधिक हैं । इसी प्रकार अप्रथमसमयिकों का अल्पबहत्व भी जानना । विशेषता यह है कि अप्रथमसमयएकेन्द्रिय अनन्तगुण हैं।
दोनों का अल्पबहुत्व-सबसे थोड़े प्रथमसमयएकेन्द्रिय, उनसे अप्रथमसमयएकेन्द्रिय अनन्तगुण हैं । शेष में सबसे थोड़े प्रथमसमयवाले हैं और अप्रथमसमयवाले असंख्येयगुण हैं।
भगवन् ! इन प्रथमसमयएकेन्द्रिय, यावत् अप्रथमसमयपंचेन्द्रियों में ? गौतम ! सबसे थोड़े प्रथमसमयपंचेन्द्रिय, उनसे प्रथमसमयचतुरिन्द्रिय विशेषाधिक, उनसे प्रथमसमयत्रीन्द्रिय विशेषाधिक, उनसे प्रथमसमयद्वीन्द्रिय विशेषाधिक, उनसे प्रथमसमयएकेन्द्रिय विशेषाधिक, उनसे अप्रथमसमयपंचेन्द्रिय असंख्येयगुण, उनसे अप्रथमसमयचतुरिन्द्रिय विशेषाधिक, उनसे अप्रथमसमयत्रीन्द्रिय विशेषाधिक, उनसे अप्रथमसमयद्वीन्द्रिय विशेषाधिक, उनसे अप्रथमसमय एकेन्द्रिय अनन्तगुण हैं।
प्रतिपत्ति-९-का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत् । (जीवाजीवाभिगम)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
Page 125