Book Title: Agam 14 Jivajivabhigam Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र १४, उपांगसूत्र-३, 'जीवाजीवाभिगम'
प्रतिपत्ति/उद्देश-/सूत्र सूत्र -८६
भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी का खरकाण्ड कितनी मोटाई वाला है ? गौतम ! सोलह हजार योजन की मोटाई वाला । रत्नकाण्ड एक हजार योजन की मोटाई वाला है । इसी प्रकार रिष्टकाण्ड तक की मोटाई जानना । इस रत्नप्रभापृथ्वी का पंकबहुल कांड चौरासी हजार योजन की मोटाई वाला है, अपबहुलकाण्ड अस्सी हजार योजन की मोटाई का, घनोदधि बीस हजार योजन की मोटाई का, घनवात असंख्यात हजार योजन का मोटा, इसी प्रकार तनुवात भी और आकाश भी असंख्यात हजार योजन की मोटाई वाले हैं।
भगवन् ! शर्कराप्रभापृथ्वी का घनोदधि कितना मोटा है ? गौतम ! बीस हजार योजन का है । शर्कराप्रभा का घनवात असंख्यात हजार योजन की मोटाई वाला है । जैसी शर्कराप्रभा के घनोदधि, घनवात, तनुवात और आकाश की मोटाई कही है, वही शेष सब पृथ्वीयों की जानना । सूत्र-८७
भगवन् ! एक लाख अस्सी हजार योजन बाहल्य वाली और प्रतर-काण्डादि रूप में विभक्त इस रत्नप्रभापृथ्वी में वर्ण से काले-नीले-लाल-पीले और सफेद, गंध से सुरभिगंध वाले और दुर्गन्ध वाले, रस से तिक्त-कटुककसैले-खट्टे-मीठे तथा स्पर्श से कठोर-कोमल-भारी-हल्के-शीत-उष्ण-स्निग्ध और रूक्ष, संस्थान से परिमंडल, वृत्त, त्रिकोण, चतुष्कोण और आयात रूप में परिणत द्रव्य एक-दूसरे से बँधे हुए, एक दूसरे से स्पृष्ट-हुए, एक दूसरे में अवगाढ़, एक दूसरे से स्नेह द्वारा प्रतिबद्ध और एक दूसरे से सम्बद्ध है क्या ? हाँ, गौतम ! हैं । भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के सोलह हजार योजन बाहल्य वाले और बुद्धि द्वारा प्रतरादि रूप में विभक्त खरकांड में वर्ण-गंधरस-स्पर्श और संस्थान रूप में परिणत द्रव्य यावत् एक दूसरे से सम्बद्ध हैं क्या ? हाँ, गौतम ! हैं । हे भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के एक हजार योजन बाहल्य वाले और प्रतरादि रूप में बुद्धि द्वारा विभक्त रत्न नामक काण्ड में पूर्व विशेषणों से विशिष्ट द्रव्य हैं क्या ? हाँ, गौतम ! हैं । इसी प्रकार रिष्ट नामक काण्ड तक कहना।
भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के पंकबहुल काण्ड में जो चौरासी हजार योजन बाहल्य वाला और बुद्धि द्वारा प्रतरादि रूप में विभक्त है, (उसमें) पूर्ववर्णित द्रव्यादि है क्या ? हाँ, गौतम ! है । इसी प्रकार अस्सी हजार योजन बाहल्य वाले अपबहुल काण्ड में भी पूर्वविशिष्ट द्रव्यादि हैं | भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के बीस हजार योजन बाहल्य वाले घनोदधि में पूर्व विशेषण वाले द्रव्य हैं? हाँ, गौतम ! हैं। इसी प्रकार असंख्यात हजार योजन बाहल्य वाले घनवात और तनुवात में तथा आकाश में भी उसी प्रकार द्रव्य हैं । हे भगवन् ! एक लाख बत्तीस हजार योजन बाहल्य वाली शर्कराप्रभा पृथ्वी में पूर्व विशेषणों से विशिष्ट द्रव्य यावत् परस्पर सम्बद्ध हैं क्या ? हाँ, गौतम ! हैं । इसी तरह बीस हजार योजन बाहल्य वाले घनोदधि, असंख्यात हजार योजन बाहल्य वाले घनवात और आकाश के विषय में भी समझना । शर्कराप्रभा की तरह इसी क्रम से सप्तम पृथ्वी तक समझना। सूत्र-८८
हे भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी का आकार कैसा है ? गौतम ! झालर के आकार का है । भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के खरकांड का कैसा आकार है ? गौतम ! झालर के आकार का है । इसी प्रकार रिष्टकाण्ड तक कहना । इसी तरह पंकबहुलकांड, अपबहुलकांड, घनोदधि, घनवात, तनुवात और अवकाशान्तर भी सब झालर के आकार के हैं । भगवन् ! शर्कराप्रभापृथ्वी का आकार कैसा है ? गौतम ! झालर के आकार का है । इसी प्रकार अवकाशान्तर तक कहना । शर्कराप्रभा की वक्तव्यता के अनुसार शेष पृथ्वीयों की वक्तव्यता जाननी चाहिए। सूत्र-८९
हे भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के पूर्वदिशा के उपरिमान्त से कितने अपान्तराल के बाद लोकान्त कहा है ? गौतम ! १२ योजन के बाद । इसी प्रकार दक्षिण, पश्चिम और उत्तरदिशा के उपरिमान्त से बारह योजन अपान्तराल के बाद लोकान्त कहा गया है । शर्कराप्रभा पृथ्वी के पूर्वदिशा के चरमांत से त्रिभाग कम तेरह योजन के अपान्तराल
मुनि दीपरत्नसागर कृत् । (जीवाजीवाभिगम)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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