Book Title: Agam 14 Jivajivabhigam Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र १४, उपांगसूत्र-३, 'जीवाजीवाभिगम'
प्रतिपत्ति/उद्देश-/सूत्र इसी प्रकार धातकीखण्ड के सूर्यद्वीपों के विषय में भी कहना चाहिए । विशेषता यह है कि धातकीखण्डद्वीप की पश्चिमी वेदिकान्त से कालोदधिसमुद्र में बारह हजार योजन जाने पर ये द्वीप आते हैं । इन सूर्यों की राजधानीयाँ सूर्यद्वीपों के पश्चिम में असंख्य द्वीपसमुद्रों के बाद अन्य धातकीखण्डद्वीप में हैं, आदि सब वक्तव्यता पूर्ववत् जाननी चाहिए। सूत्र - २१२
हे भगवन् ! कालोदधिसमुद्रगत चन्द्रों के चन्द्रद्वीप कहाँ हैं ? हे गौतम ! कालोदधिसमुद्र के पूर्वीय वेदिकांत से कालोदधिसमुद्र के पश्चिम में १२००० योजन आगे जाने पर हैं । ये सब ओर से जलांत से दो कोस ऊंचे हैं । शेष सब पूर्ववत् । इसी प्रकार कालोदधिसमुद्र के सूर्यद्वीपों के संबंध में भी जानना । विशेषता यह है कि कालोदधिसमुद्र के पूर्व में १२००० योजन आगे पर हैं । इसी प्रकार पुष्करवरद्वीप के पूर्वी वेदिकान्त से पुष्करवरसमुद्र में १२००० योजन आगे जाने पर चन्द्रद्वीप हैं, इत्यादि पूर्ववत् । इसी तरह से पुष्करवरद्वीपगत सूर्यों के सूर्यद्वीप पुष्करवरद्वीप के पश्चिमी वेदिकान्त से पुष्करवरसमुद्र में १२००० योजन ने पर स्थित हैं, आदि पूर्ववत् ! पुष्करवरसमुद्र-गत सूर्यों के सूर्यद्वीप पुष्करवरसमुद्र के पूर्वी वेदिकान्त से पश्चिम दिशा में बारह हजार योजन आगे जाने पर स्थित हैं।
___ इसी प्रकार शेष द्वीपगत चन्द्रों की राजधानीयाँ चन्द्रद्वीपगत पूर्वदिशा की वेदिकान्त से अनन्तर समुद्र में १२००० योजन जाने पर कहना । शेष द्वीपगत सूर्यों के सूर्यद्वीप अपने द्वीपगत पश्चिम वेदिकान्त से अनन्तर समुद्र में हैं । शेष समुद्रगत चन्द्रों के चन्द्रद्वीप अपने-अपने समुद्र के पूर्व वेदिकान्त से पश्चिम दिशा में १२००० योजन के बाद हैं । सूर्यों के सूर्यद्वीप अपने-अपने समुद्र के पश्चिमी वेदिकान्त से पूर्वदिशा में १२००० योजन के बाद हैं । सूत्र - २१३-२१६
द्वीप और समुद्रों में से कितनेक द्वीपों और समुद्रों के नाम इस प्रकार हैं- जम्बूद्वीप, लवणसमुद्र, धातकीखण्डद्वीप, कालोदसमुद्र, पुष्करवरद्वीप, पुष्करवरसमुद्र, वारुणिवरद्वीप, वारुणिवरसमुद्र, क्षीरवरद्वीप, क्षीरवरसमुद्र, घृतवरद्वीप, घृतवरसमुद्र, इक्षुवरद्वीप, इक्षुवरसमुद्र, नंदीश्वरद्वीप, नंदीश्वर समुद्र, अरुणवरद्वीप, अरुणवरसमुद्र, कुण्डलद्वीप, कुण्डलसमुद्र, रुचकद्वीप, रुचकसमुद्र । तथा- आभरणद्वीप, आभरणसमुद्र, वस्त्रद्वीप, वस्त्रसमुद्र, गन्धद्वीप, गन्धसमुद्र, उत्पलद्वीप, उत्पलसमुद्र, तिलक द्वीप, तिलकसमुद्र, पृथ्वीद्वीप, पृथ्वीसमुद्र, निधिद्वीप, निधिसमुद्र, रत्नद्वीप, रत्नसमुद्र, वर्षधरद्वीप, वर्षधरसमुद्र, द्रहद्वीप, द्रहसमुद्र, नंदीद्वीप, नंदीसमुद्र, विजयद्वीप, विजयसमुद्र, वक्षस्कारद्वीप, वक्षस्कारसमुद्र, कपिद्वीप, कपि-समुद्र, इन्द्रद्वीप, इन्द्रसमुद्र । तथापुरद्वीप, पुरसमुद्र, मन्दरद्वीप, मन्दरसमुद्र, आवासद्वीप, आवाससमुद्र, कूटद्वीप, कूटसमुद्र, नक्षत्रद्वीप, नक्षत्रसमुद्र, चन्द्रद्वीप, चन्द्रसमुद्र, सूर्यद्वीप, सूर्यसमुद्र, इत्यादि अनेक नाम वाले द्वीप और समुद्र हैं। सूत्र - २१७
हे भगवन् ! देवद्वीपगत चन्द्रों के चन्द्रद्वीप कहाँ है ? गौतम ! देवद्वीप की पूर्वदिशा के वेदिकान्त से देवोदसमुद्र में १२००० योजन आगे जाने पर हैं, इत्यादि पूर्ववत् । अपने ही चन्द्रद्वीपों की पश्चिमदिशा में उसी देवद्वीप में असंख्यात हजार योजन जाने पर वहाँ देवद्वीप के चन्द्रों की चन्द्रा नामक राजधानीयाँ हैं । हे भगवन् ! देवद्वीप के सूर्यों के सूर्यद्वीप कहाँ हैं ? गौतम ! देवद्वीप के पश्चिमी वेदिकान्त से देवोदसमुद्र में १२००० योजन जाने पर हैं। अपने-अपने ही सूर्यद्वीपों की पूर्वदिशा में उसी देवद्वीप में असंख्यात हजार योजन जाने पर उनकी राजधानीयाँ हैं ।
हे भगवन् ! देवसमुद्रगत चन्द्रों के चन्द्रद्वीप कहाँ हैं ? गौतम ! देवोदकसमुद्र के पूर्वी वेदिकान्त से देवोदकसमुद्र में पश्चिमदिशा में १२००० योजन जाने पर हैं, उनकी राजधानीयाँ अपने-अपने द्वीपों के पश्चिम में देवोदकसमुद्र में असंख्यात हजार योजन जाने पर स्थित हैं । शेष वर्णन विजया राजधानी के समान कहना चाहिए । देवसमुद्रगत सूर्यों के विषय में भी ऐसा ही कहना । विशेषता यह है कि देवोदकसमुद्र के पश्चिमी वेदिकान्त से देवोदक समुद्र में पूर्वदिशा में १२००० योजन जाने पर ये स्थित हैं । इनकी राजधानीयाँ अपने-अपने द्वीपों के पूर्व में देवोक समुद्र में असंख्यात हजार योजन आगे जाने पर आती हैं । इसी प्रकार नाग, यक्ष, भूत और स्वयंभूरमण चारों द्वीपों मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (जीवाजीवाभिगम) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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