Book Title: Agam 14 Jivajivabhigam Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र १४, उपांगसूत्र-३, 'जीवाजीवाभिगम'
प्रतिपत्ति/उद्देश-/सूत्र शुक्लपक्ष में धीरे-धीरे चन्द्रमा को प्रकट करता है और कृष्णपक्ष में धीरे-धीरे उसे ढंक लेता है । शुक्लपक्षमें चन्द्रमा प्रतिदिन चन्द्रविमान के ६२ भागप्रमाण बढ़ता है और कृष्णपक्ष में ६२ भागप्रभाण घटता है । चन्द्रविमान के पन्द्रहवें भाग को कृष्णपक्ष में राहविमान अपने पन्द्रहवें भाग को मुक्त कर देता है । इस प्रकार चन्द्रमा की वृद्धि और हानि होती है और इसी कारण कृष्णपक्ष और शुक्लपक्ष होते हैं । सूत्र-२७५
मनुष्यक्षेत्र के भीतर चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र एवं तारा-ये पाँच प्रकार के ज्योतिष्क गतिशील हैं। सूत्र - २७६
अढ़ाई द्वीप से आगे जो पाँच प्रकार के चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र और तारा हैं वे गति नहीं करते, विचरण नहीं करते, अत एव स्थित हैं। सूत्र - २७७-२८०
इस जम्बूद्वीप में दो चन्द्र और दो सूर्य हैं । लवणसमुद्र में चार चन्द्र और चार सूर्य हैं । धातकीखण्ड में बारह चन्द्र और बारह सूर्य हैं । जम्बूद्वीप में दो चन्द्र और दो सूर्य हैं । इनसे दुगुने लवणसमुद्र में हैं और लवणसमुद्र के चन्द्रसूर्यों के तिगुने धातकीखण्ड में हैं । धातकीखण्ड के आगे के समुद्र और द्वीपों में चन्द्रों और सूर्यों का प्रमाण पूर्व के द्वीप या समुद्र के प्रमाण से तिगुना करके उसमें पूर्व-पूर्व के सब चन्द्रों और सूर्यों को जोड़ देना चाहिए । जिन द्वीपों और समुद्रों में नक्षत्र, ग्रह एवं तारा का प्रमाण जानने की इच्छा हो तो उन द्वीपों और समुद्रों के चन्द्र सूर्यों के साथ-एक-एक चन्द्र-सूर्य परिवार से गुणा करना चाहिए। सूत्र- २८१,२८२
मनुष्यक्षेत्र के बाहर जो चन्द्र और सूर्य हैं, उनका अन्तर पचास-पचास हजार योजन का है। यह अन्तर चन्द्र से सूर्य का और सूर्य से चन्द्र का जानना । सूर्य से सूर्य का और चन्द्र से चन्द्र का अन्तर मानुषोत्तरपर्वत के बाहर एक लाख योजन का है। सूत्र - २८३
(मनुष्यलोक से बाहर अवस्थित) सूर्यान्तरित चन्द्र और चन्दान्तरित सूर्य अपने अपने तेज:पुंज से प्रकाशित होते हैं। इनका अन्तर और प्रकाशरूप लेश्या विचित्र प्रकार की है। सूत्र- २८४, २८५
एक चन्द्रमा के परिवारमें ८८ ग्रह और २८ नक्षत्र होते हैं । ताराओं का प्रमाण आगे की गाथाओंमें कहते हैं। एक चन्द्र के परिवार में ६६९७५ कोडाकोड़ी तारे हैं। सूत्र- २८६
मनुष्यक्षेत्र के बाहर के चन्द्र और सूर्य अवस्थित योग वाले हैं । चन्द्र अभिजित नक्षत्र से और सूर्य पुष्य नक्षत्र से युक्त रहते हैं। सूत्र - २८७
हे भगवन् ! मानुषोत्तरपर्वत की ऊंचाई कितनी है ? उसकी जमीन में गहराई कितनी है ? इत्यादि प्रश्न । गौतम ! मानुषोत्तरपर्वत १७२१ योजन पृथ्वी से ऊंचा है । ४३० योजन और एक कोस पृथ्वी में गहरा है । यह मूल में १०२२ योजन चौड़ा है, मध्य में ७२३ योजन चौड़ा और ऊपर ४२४ योजन चौड़ा है । पृथ्वी के भीतर की इसकी परिधि १,४२,३०,२४९ योजन है । बाह्यभाग में नीचे की परिधि १,४२,३६,७१४ योजन है । मध्य में १,४२,३४,८२३ योजन की है । ऊपर की परिधि १,४२,३२,९३२ योजन की है । यह पर्वत मूल में विस्तीर्ण, मध्यमें संक्षिप्त, ऊपर पतला है । यह भीतर से चिकना है, मध्यमें प्रधान, बाहर से दर्शनीय है । यह पर्वत जैसे सिंह अपने आगे के दोनों
मुनि दीपरत्नसागर कृत्- (जीवाजीवाभिगम) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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