Book Title: Agam 14 Jivajivabhigam Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र १४, उपांगसूत्र-३, 'जीवाजीवाभिगम'
प्रतिपत्ति/उद्देश-/सूत्र शोभित होते हैं और शोभित होंगे। सूत्र - २५५
इस प्रकार मनुष्यलोक में तारापिण्ड पूर्वोक्त संख्याप्रमाण हैं । मनुष्यलोक में बाहर तारापिण्डों का प्रमाण जिनेश्वर देवों ने असंख्यात कहा है। सूत्र-२५६
मनुष्यलोक में जो पूर्वोक्त तारागणों का प्रमाण है वे ज्योतिष्क देवविमानरूप हैं, वे कदम्ब के फूल के आकार के हैं तथाविध जगत्-स्वभाव से गतिशील हैं । सूत्र - २५७
सूर्य, चन्द्र, ग्रह ,नक्षत्र, तारागण का प्रमाण मनुष्यलोक में इतना ही कहा गया है । इनके नाम-गोत्र अनतिशायी सामान्य व्यक्ति कदापि नहीं कह सकते । सूत्र - २५८-२६३
मनुष्यलोक में चन्द्रों और सूर्यों के ६६-६६ पिटक हैं । एक-एक पिटक में दो चंद्र और दो सूर्य होते हैं । मनुष्यलोक में नक्षत्रों में ६६ पिटक हैं । एक-एक पिटक में छप्पन छप्पन नक्षत्र हैं । मनुष्यलोक में महाग्रहों के ६६ पिटक हैं । एक-एक पिटक में १७६-१७६ महाग्रह हैं । मनुष्यलोक में चन्द्र और सूर्यों की चार-चार पंक्तियाँ हैं । एकएक पंक्ति में ६६-६६ चन्द्र और सूर्य हैं । मनुष्यलोक में नक्षत्रों की ५६ पंक्तियाँ हैं । प्रत्येक पंक्ति में ६६-६६ नक्षत्र हैं । इस मनुष्यलोक में ग्रहों की १७६ पंक्तियाँ हैं । प्रत्येक पंक्ति में ६६-६६ ग्रह हैं। सूत्र - २६४, २६५
ये चन्द्र-सूर्यादि सब ज्योतिष्क मण्डल मेरुपर्वत के चारों ओर प्रदक्षिणा करते हैं। प्रदक्षिणा करते हुए इन चन्द्रादि के दक्षिणमें ही मेरु होता है, अत एव इन्हें प्रदक्षिणावर्तमण्डल कहा है । चन्द्र, सूर्य और ग्रहों के मण्डल अनवस्थित हैं । नक्षत्र और ताराओं के मण्डल अवस्थित हैं। ये भी मेरुपर्वत के चारों ओर प्रदक्षिणावर्तमण्डल गति से परिभ्रमण करते हैं। सूत्र-२६६
चन्द्र और सूर्य का ऊपर और नीचे संक्रम नहीं होता, इनका विचरण तिर्यक दिशा में सर्वआभ्यन्तरमण्डल से सर्वबाह्यमण्डल तक होता रहता है । सूत्र - २६७
चन्द्र, सूर्य, नक्षत्र, महाग्रह और ताराओं की गतिविशेष से मनुष्यों के सुख-दुःख प्रभावित होते हैं। सूत्र-२६८
सर्वबाह्यमण्डल से आभ्यन्तरमण्डल में प्रवेश करते हुए सूर्य और चन्द्रमा का तापक्षेत्र प्रतिदिन क्रमशः नियम से आयाम की अपेक्षा बढ़ता जाता है और जिस क्रम से वह बढ़ता है उसी क्रम से सर्वाभ्यन्तरमण्डल से बाहर नीकलने वाले सूर्य और चन्द्रमा का तापक्षेत्र प्रतिदिन क्रमशः घटता जाता है। सूत्र - २६९
उन चन्द्र-सूर्यों के तापक्षेत्र का मार्ग कदंबपुष्प के आकार जैसा है । यह मेरु की दिशा में संकुचित है और लवणसमुद्र की दिशा में विस्तृत है । सूत्र- २७०-२७४
___ भगवन् ! चन्द्रमा शुक्लपक्ष में क्यों बढ़ता है और कृष्णपक्ष में क्यों घटता है ? किस कारण से कृष्णपक्ष और शुक्लपक्ष होते हैं ? कृष्ण राहु-विमान चन्द्रमा से सदा चार अंगुल दूर रहकर चन्द्रविमान के नीचे चलता है । वह मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (जीवाजीवाभिगम)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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