Book Title: Agam 14 Jivajivabhigam Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र १४, उपांगसूत्र-३, 'जीवाजीवाभिगम'
प्रतिपत्ति/उद्देश-/सूत्र सब वर्णन पूर्ववत् । विशेषता यह है कि यहाँ सुमनस और सौमनसभद्र नामक दो महर्द्धिक देव रहते हैं। सूत्र-२९६
नंदीश्वर समुद्र को चारों ओर से घेरे हुए अरुणद्वीप है जो गोल है और वलयाकार रूप से संस्थित है । वह समचक्रवाल विष्कम्भ वाला है । उसका चक्रवाल विष्कम्भ संख्यात लाख योजन है और वही उसकी परिधि है । पद्मवरवेदिका, वनखण्ड, द्वार, द्वारान्तर भी संख्यात लाख योजन प्रमाण है । इसी द्वीप का ऐसा नाम इस कारण है कि यहाँ पर वावड़ियाँ इक्षुरस जैसे पानी से भरी हुई हैं । इसमें उत्पातपर्वत है जो सर्ववज्रमय है और स्वच्छ है । यहाँ अशोक और वीतशोक नाम के दो महर्द्धिक देव रहते हैं । यहाँ सब ज्योतिष्कों की संख्या संख्यात जानना । सूत्र-२९७
अरुणद्वीप को चारों ओर से घेरकर अरुणोद समुद्र अवस्थित है । उसका विष्कम्भ, परिधि, अर्थ, उसका इक्षुरस जैसा पानी आदि सब पूर्ववत् । विशेषता यह है कि इसमें सुभद्र और सुमनभद्र नामक दो महर्द्धिक देव रहते हैं । उस अरुणोदक समुद्र को अरुणवर द्वीप चारों ओर से घेरकर स्थित है । वह गोल और वलयाकार संस्थान वाला है। उसी तरह संख्यात लाख योजन का विष्कम्भ, परिधि आदि जानना । अर्थ के कथन में इक्षुरस जैसे जल से भरी वावड़ियाँ, सर्ववज्रमय एवं स्वच्छ, उत्पातपर्वत और अरुणवरभद्र एवं अरुणवरमहाभद्र नाम के दो महर्द्धिक देव वहाँ निवास करते हैं आदि । इसी प्रकार अरुणवरोद नामक समुद्र का वर्णन भी जानना यावत् वहाँ अरुणवर और अरुणमहावर नाम के दो महर्द्धिक देव रहते हैं। अरुणवरोदसमुद्र को अरुणवरावभास नाम का द्वीप चारों ओर से घेर कर स्थित है । वह गोल है यावत् वहाँ अरुणवराभासभद्र एवं अरुणवराभासमहाभद्र नाम के दो महर्द्धिक देव रहते हैं । इसी तरह अरुणवरावभाससमुद्र में अरुणवरावभासवर एवं अरुणवरावभासमहावर नाम के दो महर्द्धिक देव वहाँ रहते हैं। सूत्र - २९८
कुण्डलद्वीप में कुण्डलभद्र एवं कुण्डलमहाभद्र नाम के दो देव रहते हैं और कुण्डलोदसमुद्र में चक्षुशुभ और चक्षुकांत नाम के दो महर्द्धिक देव रहते हैं । शेष पूर्ववत् । कुण्डलवरद्वीप में कुण्डलवरभद्र और कुण्डलवर-महाभद्र नामक दो महर्द्धिक देव रहते हैं । कुण्डलवरोदसमुद्र में कुण्डलवर और कुण्डलमहावर नाम के दो महर्द्धिक देव रहते हैं । कुण्डलवरावभासद्वीपमें कुण्डलवरावभासभद्र और कुण्डलवरावभासमहाभद्र नाम के दो महर्द्धिक देव रहते हैं। कुण्डलवरावभासोदकसमुद्रमें कुण्डलवरोभासवर एवं कुण्डलवरोभासमहावर नाम के दो महर्द्धिक देव रहते हैं। सूत्र-२९९
कुण्डलवराभाससमुद्र को चारों ओर से घेरकर रुचक द्वीप अवस्थित है, जो गोल और वलयाकार है । वह समचक्रवाल विष्कम्भ वाला है । इत्यादि सब वर्णन पूर्ववत् यावत् वहाँ सर्वार्थ और मनोरम नाम के दो महर्द्धिक देव रहते हैं । रुचकोदक नामक समुद्र क्षोदोद समुद्र की तरह संख्यात लाख योजन चक्रवाल विष्कम्भ वाला, संख्यात लाख योजन परिधि वाला और द्वार, द्वारान्तर भी संख्यात लाख योजन वाले हैं । वहाँ ज्योतिष्कों की संख्या भी संख्यात कहना । यहाँ सुमन और सौमनस नामक दो महर्द्धिक देव रहते हैं । शेष पूर्ववत् । रुचकद्वीप समुद्र से आगे के सब द्वीपसमुद्रों का विष्कम्भ, परिधि, द्वार, द्वारान्तर, ज्योतिष्कों का प्रमाण-ये सब असंख्यात कहने चाहिए।
रुचकोदसमुद्र को सब ओर से घेरकर रुचकवर नाम का द्वीप अवस्थित है, जो गोल है आदि कथन करना चाहिए यावत् रुचकवरभद्र और रुचकवरमहाभद्र नाम के दो महर्द्धिक देव रहते हैं । रुचकवरोदसमुद्र में रुचकवर
और रुचकवरमहावर नाम के दो देव रहते हैं, जो महर्द्धिक हैं । रुचकवरावभासद्वीप में रुचकवरावभासभद्र और रुचकवरावभासमहाभद्र नाम के दो महर्द्धिक देव रहते हैं । रुचकवरावभाससमुद्र में रुचकवरावभासवर और रुचकवरावभासमहावर नाम के दो महर्द्धिक देव हैं।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (जीवाजीवाभिगम)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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