Book Title: Agam 14 Jivajivabhigam Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 114
________________ आगम सूत्र १४, उपांगसूत्र-३, 'जीवाजीवाभिगम' प्रतिपत्ति/उद्देश-/सूत्र प्रतिपत्ति-४-पंचविध सूत्र-३४४ जो आचार्यादि ऐसा प्रतिपादन करते हैं कि संसारसमापन्नक जीव पाँच प्रकार के हैं, वे उनके भेद इस प्रकार कहते हैं, यथा-एकेन्द्रिय यावत् पंचेन्द्रिय । भगवन् ! एकेन्द्रिय जीवों के कितने प्रकार हैं ? गौतम ! दो, पर्याप्त और अपर्याप्त । पंचेन्द्रिय पर्यन्त सबके दो-दो भेद कहना । भगवन् ! एकेन्द्रिय जीवों की कितने काल की स्थिति है ? गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट २२००० वर्ष की । द्वीन्द्रिय की जघन्य अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट १२ वर्ष की, त्रीन्द्रिय की ४९ रात-दिन की, चतुरिन्द्रिय की छह मास की और पंचेन्द्रिय की जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट तेंतीस सागरोपम की स्थिति है। अपर्याप्त एकेन्दिय की स्थिति जघन्य और उत्कष्ट अन्तर्महर्ज की है। इसी प्रकार सब अपर्याप्तों की स्थिति कहना | भगवन् ! पर्याप्त एकेन्द्रिय यावत् पर्याप्त पंचेन्द्रिय जीवों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अन्तर्मुहर्त कम २२००० वर्ष की है। इसी प्रकार सब पर्याप्तों की उत्कष्ट स्थिति उनकी कुलस्थिति से अन्तर्मुहर्त कम कहना | भगवन् ! एकेन्द्रिय, एकेन्द्रियरूप में कितने काल तक रहता है ? गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट वनस्पतिकाल | दीन्द्रियरूप में जघन्य अन्तर्महर्तृ और उत्कृष्ट संख्यातकाल तक रहता है । यावत चतुरिन्द्रिय भी संख्यात काल तक रहता है। पंचेन्द्रिय, पंचेन्द्रियरूप में जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट साधिक हजार सागरोपम रहता है । भगवन् ! अर्याप्त एकेन्द्रिय उसी रूप में कितने समय तक रहता है ? गौतम ! जघन्य से और उत्कृष्ट से भी अन्तर्मुहूर्त्त । इसी प्रकार अपर्याप्त पंचेन्द्रिय तक कहना। पर्याप्त एकेन्द्रिय उसी रूप में जघन्य अन्तर्मुहर्त और उत्कृष्ट संख्यात हजार वर्ष तक रहता है । इसी प्रकार द्वीन्द्रिय का कथन करना, विशेषता यह कि संख्यात वर्ष कहना । त्रीन्द्रिय संख्यात रात-दिन तक, चतुरिन्द्रिय संख्यात मास तक और पर्याप्त पंचेन्द्रिय साधिक सागरोपम शतपृथक्त्व तक रहता है। भगवन् ! एकेन्द्रिय का अन्तर कितना है ? गौतम ! जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट दो हजार सागरोपम और संख्यात वर्ष अधिक । द्वीन्द्रिय का अन्तर गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट वनस्पतिकाल है । इसी प्रकार त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पंचेन्द्रिय का तथा अपर्याप्तक और पर्याप्तक का भी अन्तर कहना। सूत्र-३४५ भगवन् ! इन एकेन्द्रिय यावत् पंचेन्द्रियों में कौन किससे अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक हैं ? गौतम ! सब से थोड़े पंचेन्द्रिय हैं, उन से चतुरिन्द्रिय विशेषाधिक हैं, उन से त्रीन्द्रिय विशेषाधिक हैं, उन से द्वीन्द्रिय विशेषाधिक हैं और उन से एकेन्द्रिय अनन्तगुण हैं । इसी प्रकार अपर्याप्तक एकेन्द्रियादि में सब से थोड़े पंचेन्द्रिय अपर्याप्त, उन से चतुरिन्द्रिय अपर्याप्त विशेषाधिक, उन से त्रीन्द्रिय अपर्याप्त विशेषाधिक, उन से द्वीन्द्रिय अपर्याप्त विशेषाधिक और उन से एकेन्द्रिय अपर्याप्त अनन्तगुण हैं । उन से सेन्द्रिय अपर्याप्त विशेषाधिक हैं । इसी प्रकार पर्याप्तक एकेन्द्रियादि में सब से थोड़े चतुरिन्द्रियादि पर्याप्तक, उन से पंचेन्द्रिय पर्याप्तक विशेषाधिक, उन से द्वीन्द्रिय पर्याप्तक विशेषाधिक, उन से त्रीन्द्रिय पर्याप्तक विशेषाधिक, उन से एकेन्द्रिय पर्याप्तक अनन्तगुण हैं । उन से सेन्द्रिय पर्याप्तक विशेषाधिक हैं। भगवन् ! इन सेन्द्रिय पर्याप्त-अपर्याप्त में कौन किससे अल्प, बहत, तुल्य या विशेषाधिक हैं ? गौतम ! सबसे थोड़े सेन्द्रिय अपर्याप्त, उनसे सेन्द्रिय पर्याप्त संख्येयगुण हैं। इसी प्रकार एकेन्द्रिय पर्याप्त-अपर्याप्त का अल्पबहुत्व जानना । भगवन् ! इन द्वीन्द्रिय पर्याप्त-अपर्याप्त में? गौतम ! सब से थोड़े द्वीन्द्रिय पर्याप्त, उन से द्वीन्द्रिय अपर्याप्त असंख्येयगुण हैं । इसी प्रकार त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पंचेन्द्रियों का अल्पबहुत्व जानना । भगवन् ! इन एकेन्द्रिय, यावत् पंचेन्द्रिय पर्याप्त और अपर्याप्तों में ? गौतम ! सब से थोड़े चतुरिन्द्रिय पर्याप्त, उनसे पंचेन्द्रिय पर्याप्त विशेषाधिक, उन से द्वीन्द्रिय पर्याप्त विशेषाधिक, उन से मुनि दीपरत्नसागर कृत् । (जीवाजीवाभिगम) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 114

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