Book Title: Agam 14 Jivajivabhigam Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र १४, उपांगसूत्र-३, 'जीवाजीवाभिगम'
प्रतिपत्ति/उद्देश-/सूत्र अनुत्तरोपपातिक विमान परम-शुक्ल वर्ण के हैं।
भगवन् ! सौधर्म-ईशानकल्प में विमानों की प्रभा कैसी है ? गौतम ! वे विमान नित्य स्वयं की प्रभा से प्रकाशमान और नित्य उद्योत वाले हैं यावत् अनुत्तरोपपातिक विमान तक ऐसा ही जानना । भगवन् ! सौधर्मईशानकल्प में विमानों की गंध कैसी है ? गौतम ! कोष्ठपुटादि सुगंधित पदार्थों की गंध से भी इष्टतर उनकी गंध है, अनुत्तरविमान पर्यन्त ऐसा ही कहना । भगवन् ! सौधर्म-ईशानकल्प में विमानों का स्पर्श कैसा है ? गौतम ! अजिन चर्म, रूई आदि का मृदुल स्पर्श से भी इष्टतर कहना । अनुत्तरोपपातिक विमान पर्यन्त ऐसा ही कहना | भगवन् ! सौधर्म-ईशानकल्प में विमान कितने बड़े हैं ? गौतम ! कोई देव जो चुटकी बजाते ही इस एक लाख योजन के लम्बेचौड़े और तीन लाख योजन से अधिक की परिधि वाले जम्बूद्वीप की २१ बार प्रदक्षिणा कर आवे, ऐसी शीघ्रतादि विशेषणों वाली गति से निरन्तर छह मास चलता रहे, तब वह कितनेक विमानों के पास पहुँच सकता है, उन्हें लांघ सकता है और कितनेक उन विमानों को नहीं लांघ सकता है । इसी प्रकार का कथन अनुत्तरोपपातिक विमानों तक के लिए समझना । सौधर्म-ईशानकल्प के विमान सर्वरत्नमय हैं । उनमें बहुत से जीव और पुद्गल पैदा होते हैं, च्यवित होते हैं, इकट्टे होते हैं और वृद्धि को प्राप्त करते हैं । वे विमान द्रव्यार्थिकनय की अपेक्षा से शाश्वत हैं और स्पर्श आदि पर्यायों की अपेक्षा अशाश्वत हैं । ऐसा ही अनुत्तरोपपातिक विमानों तक समझना।
सम्मूर्छिम जीवों को छोड़कर शेष पंचेन्द्रिय तिर्यंचों और मनुष्यों में से आकर जीव सौधर्म और ईशान में देवरूप से उत्पन्न होते हैं । प्रज्ञापना के छठे व्युत्क्रान्तिपद समान उत्पाद कहना । भगवन् ! सौधर्म-ईशानकल्प में एक समय में कितने देव उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! जघन्य एक, दो, तीन और उत्कृष्ट संख्यात और असंख्यात । यह कथन सहस्रार देवलोक तक कहना । आनत आदि चार कल्पों में, नवग्रैवेयकों में और अनुत्तरविमानों में यावत् उत्कृष्ट संख्यात जीव उत्पन्न होते हैं।
भगवन् ! सौधर्म-ईशानकल्प के देवों में से यदि प्रत्येक समय में एक-एक का अपहार किया जाए तो कितने काल में वे खाली होंगे? गौतम ! वे देव असंख्यात हैं अतः यदि एक समय में एक देव का अपहार किया जाए तो असंख्यात उत्सर्पिणियों अवसर्पिणियों तक अपहार तो भी वे खाली नहीं होते । उक्त कथन सहस्रार देवलोक तक करना । आगे के आनतादि चार कल्पों में, ग्रैवेयकों मे तथा अनुत्तर विमानों के देवों को समय-समय में एक-एक का अपहार करने का क्रम पल्योपम के असंख्यातवें भाग तक चलता रहे तो उनका अपहार हो सकता है । लेकिन ये कल्पनामात्र है। भगवन् ! सौधर्म और ईशान कल्प में देवों के शरीर की अवगाहना कितनी है ? गौतम ! उनके दो प्रकार के शरीर हैं-भवधारणीय और उत्तरवैक्रिय, उनमें भवधारणीय शरीर की अवगाहना जघन्य से अंगुल का असंख्यातवाँ भाग और उत्कृष्ट से सात हाथ है । उत्तरवैक्रिय शरीर की अपेक्षा से उत्कृष्ट एक लाख योजन है । इस प्रकार आगे-आगे के कल्पों में एक-एक हाथ कम करते जाना, यावत् अनुत्तरोपपातिक देवों की एक हाथ की अवगाहना रह जाती है । ग्रैवेयकों और अनुत्तर विमानों में केवल भवधार-णीय शरीर होता है । वे देव उत्तरविक्रिया नहीं करते। सूत्र-३३१
भगवन् ! सौधर्म-ईशानकल्प में देवों के शरीर का संहनन कौन सा है ? गौतम ! एक भी नहीं; क्योंकि उनके शरीर में न हड्डी होती है, न शिराएं होती हैं और न नसें ही होती हैं । जो पुद्गल इष्ट, कान्त यावत् मनोज्ञ-मनाम होते हैं, वे उनके शरीर रूप में एकत्रित होकर तथारूप में परिणत होते हैं । यही कथन अनुत्तरोपपातिक देवों तक कहना भगवन् ! सौधर्म-ईशानकल्प में देवों के शरीर का संस्थान कैसा है ? गौतम ! उनके शरीर दो प्रकार के हैंभवधारणीय और उत्तरवैक्रिय । जो भवधारणीय शरीर है, उसका समचतुरस्र संस्था है और जो उत्तरवैक्रिय शरी है, उनका संस्थान नाना प्रकार का होता है । यह कथन अच्युत देवलोक तक कहना । ग्रैवेयक और अनुत्तर विमानों के देव उत्तर-विकुर्वणा नहीं करते । उनका भवधारणीय शरीर समचतुरस्र संस्थान वाला है।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (जीवाजीवाभिगम)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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