Book Title: Agam 14 Jivajivabhigam Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 99
________________ आगम सूत्र १४, उपांगसूत्र-३, 'जीवाजीवाभिगम' प्रतिपत्ति/उद्देश-/सूत्र प्रतिमा पर्यन्त वर्णन करना । चारों दिशाओं में चैत्यवृक्ष हैं । उनका प्रमाण विजया राजधानी के चैत्यवृक्षों समान है। विशेषता यह है कि मणिपीठिका सोलह योजन प्रमाण है। उन चैत्यवृक्षों की चारों दिशाओं में चार मणिपीठिकाएं हैं जो आठ योजन चौड़ी, चार योजन मोटी हैं । उन पर चौसठ योजन ऊंची, एक योजन गहरी, एक योजन चौड़ी महेन्द्रध्वजा है । शेष पूर्ववत् । इसी तरह चारों दिशाओं में चार नंदा पुष्करिणियाँ हैं । विशेषता यह है कि वे इक्षुरस से भरी हुई हैं । उनकी लम्बाई सौ योजन, चौड़ाई पचास योजन और गहराई पचास योजन है । उन सिद्धायतनों में पूर्व और पश्चिम में १६-१६ हजार तथा दक्षिण में और उत्तर में ८-८ हजार मनोगुलिकाएं हैं और इतनी ही गोमानुषी हैं । उसी तरह उल्लोक और भूमिभाग को जानना । उन मणिपीठिकाओं के ऊपर देवच्छंदक हैं जो सोलह योजन लम्बे-चौड़े, कुछ अधिक सोलह योजन ऊंचे हैं, सर्वरत्नमय हैं । इन देवच्छंदकों में १०८ जिन (अरिहंत) प्रतिमाएं हैं । जिनका सब वर्णन वैमानिक की विजया राजधानी के सिद्धायतनों के समान है। उनमें जो पूर्वदिशा का अंजनपर्वत है, उसकी चारों दिशाओं में चार नंदा पुष्करिणियाँ हैं । नंदुत्तरा, नंदा, आनंदा और नंदिवर्धना । ये एक लाख योजन की लम्बी-चौड़ी हैं, इनकी गहराई दस योजन की है। ये स्वच्छ हैं, श्लक्ष्ण हैं । प्रत्येक के आसपास चारों ओर पद्मवरवेदिका और वनखण्ड । इनमें त्रिसोपान-पंक्तियाँ और तोरण हैं | उन प्रत्येक पुष्करिणियों के मध्यभागमें दधिमुखपर्वत हैं जो ६४००० योजन ऊंचे, १००० योजन जमीनमें गहरे और सब जगह समान हैं। ये पल्यंक आकार के हैं। १०००० योजन की इनकी चौड़ाई है। ३१६२३ योजन इनकी परिधि है । ये सर्वरत्नमय यावत् प्रतिरूप हैं । उनमें बहुसमरमणीय भूमिभाग है यावत् वहाँ बहुत वानव्यन्तर देव-देवियाँ बैठते हैं यावत् पुण्यफल का अनुभव करते हैं । सिद्धायतनों का प्रमाण अंजनपर्वत के सिद्धायतनों के समान है। उनमें जो दक्षिणदिशा का अंजनपर्वत है, उसकी चारों दिशाओं में चार नंदा पुष्करिणियाँ हैं । भद्रा, विशाला, कुमुदा और पुंडरीकिणी । उसी तरह दधिमुख पर्वतों का वर्णन आदि सिद्धायतन पर्यन्त कहना । दक्षिण दिशा के अंजनपर्वत की चारों दिशाओं में चार नंदा पुष्करिणियाँ हैं । नंदिसेना, अमोघा, गोस्तूपा और सुदर्शना । सिद्धायतन पर्यन्त सब कथन पूर्ववत् । उत्तरदिशा के अंजनपर्वत की चारों दिशाओं में चार नंदा पुष्करिणियाँ हैं । विजया, वैजयन्ती, जयन्ती और अपराजिता । शेष सब वर्णन सिद्धायतन पर्यन्त पूर्ववत् । उन सिदायतनों में बहत से भवनपति. वानव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देव चातर्मासिक प्रतिपदा आदि पर्व दिनों में, सांवत्सरिक उत्सव के दिनों में तथा अन्य बहुत से जिनेश्वर देव के जन्म, दीक्षा, ज्ञानोत्पत्ति और निर्वाण कल्याणकों के अवसर पर देवकार्यो में, देव-मेलों में, देवगोष्ठियों में, देवसम्मेलनों में और देवों के जीत-व्यवहार सम्बन्धी प्रयोजनों के लिए एकत्रित होते हैं, सम्मिलित होते हैं और आनन्द-विभोर होकर महामहिमाशाली अष्टाह्निका पर्व मनाते हुए सुखपूर्वक विचरते हैं । नन्दीश्वरद्वीप में ठीक मध्य भाग में चारों विदिशा में चार रतिकर पर्वत स्थित है । यह चारों रतिकर पर्वत की ऊंचाई दश-दश हजार योजन है । उसका उद्वेध एक-एक हजार योजन है वह झालर संस्थान वाले हैं | चौड़ाई दस योजन है परिक्षेप ३१६६२ योजन है । वे सब रत्नमय यावत् प्रतिरूप हैं । ईशान कोने में स्थित रतिकर पर्वत की चारों दिशाओं में एक-एक राजधानी है-नंदोत्तरा, नंदा, उत्तरकुश और देवकुश यह राजधानी या देवराज ईशानेन्द्र की अग्रमहिषियों की हैं । ईसी तरह अग्नि-नैऋत्य-तथा वायव्यकोण के रतिकर पर्वतों की चारों दिशाओं में भी एक-एक राजधानी है । ऐसे कुल १६-राजधानीयाँ हैं । उनमें अग्नि और नैऋत्य की राजधानी शक्रेन्द्र की अग्रमहिषी की है और ईशान और वायव्य कोने में ईशानेन्द्र की अग्रहमिषीओं की राजयग्नी है। कैलाश और हरिवाहन नाम के दो महर्द्धिक यावत् पल्योपम की स्थिति वाले देव वहाँ रहते हैं । इस कारण हे गौतम ! इस द्वीप का नाम नंदीश्वरद्वीप है । अथवा द्रव्यापेक्षया शाश्वत होने से यह नाम शाश्वत और नित्य है । यहाँ सब ज्योतिष्कदेव-संख्यात-संख्यात हैं। सूत्र - २९५ उक्त नंदीश्वरद्वीप को चारों ओर से घेरे हुए नंदीश्वर समुद्र है, जो गोल है एवं वलयाकार संस्थित है इत्यादि मुनि दीपरत्नसागर कृत्- (जीवाजीवाभिगम) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 99

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