Book Title: Agam 14 Jivajivabhigam Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र १४, उपांगसूत्र-३, 'जीवाजीवाभिगम'
प्रतिपत्ति/उद्देश- सूत्र इनसे भी अधिक इष्टतर, कान्ततर, प्रियतर, मनोज्ञतर और मनस्तुष्टि करनेवाला है। इसलिए वह वरुणोद समुद्र कहा जाता है। वहाँ वारुणि और वारुणकांत नाम के दो महर्द्धिक देव हैं। हे गौतम ! वरुणोदसमुद्र नित्य है।
भगवन् ! वरुणोदसमुद्र में कितने चन्द्र प्रभासित होते थे, होते हैं-इत्यादि प्रश्न । गौतम ! चन्द्र, सूर्य, नक्षत्र, तारा आदि सब संख्यात-संख्यात कहना। सूत्र - २९२
वर्तुल और वलयाकार क्षीरवर द्वीप वरुणवरसमुद्र को सब ओर से घेर कर है । उसका विष्कम्भ और परिधि संख्यात लाख योजन की है आदि यावत् क्षीरवर नामक द्वीप में बहुत-सी छोटी-छोटी बावड़ियाँ यावत् सरसरपंक्तियाँ
और बिलपंक्तियाँ हैं जो क्षीरोदक से परिपूर्ण हैं यावत् प्रतिरूप हैं । पुण्डरीक और पुष्करदन्त नाम के दो महर्द्धिक देव वहाँ रहते हैं यावत् वह शाश्वत हैं । उस क्षीरवर नामक द्वीप में सब ज्योतिष्कों की संख्या संख्यात-संख्यात कहनी चाहिए।
उक्त क्षीरवर नामक द्वीप को क्षीरोद नामका समुद्र सब ओर से घेरे हुए स्थित है । वह वर्तुल और वलयाकार है । वह समचक्रवाल संस्थान से संस्थित है । संख्यात लाख योजन उसका विष्कम्भ और परिधि है आदि यावत् गौतम ! क्षीरोदसमुद्र का पानी चक्रवर्ती राजा के लिये तैयार किये गये गोक्षीर जो चतुःस्थान-परिणाम परिणत हैं, शक्कर, गुड़, मिश्री आदि से अति स्वादिष्ट बताई गई है, जो मंदअग्नि पर पकायी गई है, जो आस्वाद-नीय, यावत् सर्व इन्द्रियों और शरीर को आह्लादित करने वाली है, जो वर्ण से सुन्दर है यावत् स्पर्श से मनोज्ञ है । इससे भी अधिक इष्टतर यावत् मन को तृप्ति देने वाला है । विमल और विमलप्रभ नाम के दो महर्द्धिक देव वहाँ निवास करते हैं । इस कारण क्षीरोदसमुद्र, क्षीरोदसमुद्र कहलाता है । उस समुद्र में सब ज्योतिष्क चन्द्र से लेकर तारागण तक संख्यात-संख्यात हैं।
सूत्र - २९३
वर्तुल और वलयाकार संस्थान-संस्थित घृतवर नामक द्वीप क्षीरोदसमुद्र को सब ओर से घेर कर स्थित है। वह समचक्रवाल संस्थान वाला है । उसका विस्तार और परिधि संख्यात लाख योजन की है । उसके प्रदेशों की स्पर्शना आदि से लेकर यह घृतवरद्वीप क्यों कहलाता है, यहाँ तक का वर्णन पूर्ववत् । गौतम ! घृतवरद्वीप में स्थानस्थान पर बहुत-सी छोटी-छोटी बावड़ियाँ आदि हैं जो घृतोदक से भरी हुई हैं । वहाँ उत्पात पर्वत यावत् खडहड आदि पर्वत हैं, वे सर्वकंचनमय स्वच्छ यावत् प्रतिरूप हैं । वहाँ कनक और कनकप्रभ नाम के दो महर्द्धिक देव रहते हैं। उसके ज्योतिष्कों की संख्या संख्यात-संख्यात है।
उक्त घृतवरद्वीप को घृतोद नामक समुद्र चारों ओर से घेरकर स्थित है । वह गोल और वलय की आकृति से संस्थित है । वह समचक्रवाल संस्थान वाला है । पूर्ववत् द्वार, प्रदेशस्पर्शना, जीवोत्पत्ति और नाम का प्रयोजन जानना । यावत्-घृतोदसमुद्र का पानी गोघृत के मंड के जैसा श्रेष्ठ है । यह गोघृतमंड फूले हुए सल्लकी, कनेर के फूल, सरसों के फूल, कोरण्ट की माला की तरह पीले वर्ण का होता है, स्निग्धता के गुण से युक्त होता है, अग्निसंयोग से चमकवाला होता है, यह निरुपहत और विशिष्ट सुन्दरता से युक्त होता है, अच्छी तरह जमाये हुए दहीं को अच्छी तरह मथित करने पर प्राप्त मक्खन को उसी समय तपाये जाने पर, अच्छी तरह उकाले जाने पर उसे अन्यत्र न ले जाते हुए उसी स्थान पर तत्काल छानकर कचरे आदि के उपशान्त होने पर उस पर जो थर जम जाती, वह जैसे अधिक सुगन्ध से सुगन्धित, मनोहर, मधुर-परिणाम वाली और दर्शनीय होती है, वह पथ्यरूप, निर्मल और सुखोपभोग्य होती है, वह घृतोद का पानी इससे भी अधिक इष्टतर यावत् मन को तृप्त करने वाला है । वहाँ कान्त और सुकान्त नाम के दो महर्द्धिक देव रहते हैं । शेष पूर्ववत् यावत् वहाँ संख्यात तारागण-कोटीकोटी शोभित होती थी, शोभित होती हैं और शोभित होंगी । गोल और वलयाकार क्षोदवर नाम का द्वीप घृतोदसमुद्र को सब ओर से घेरे हुए स्थित है, आदि पूर्ववत् । क्षोदवरद्वीप में जगह-जगह छोटी-छोटी बावड़ियाँ आदि हैं जो क्षोदोदग से परिपूर्ण हैं | वहाँ उत्पात पर्वत आदि हैं जो सर्ववैडूर्यरत्नमय यावत् प्रतिरूप हैं । वहाँ सुप्रभ और महाप्रभ नाम के दो महर्द्धिक देव
मुनि दीपरत्नसागर कृत् । (जीवाजीवाभिगम) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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