Book Title: Agam 14 Jivajivabhigam Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र १४, उपांगसूत्र-३, 'जीवाजीवाभिगम'
प्रतिपत्ति/उद्देश-/सूत्र परिणाम तथा सुस्पर्शपरिणाम एवं दुःस्पर्शपरिणाम ।
भगवन् ! उत्तम-अधम शब्दपरिणामों में, उत्तम-अधम रूपपरिणामों में, इसी तरह गंधपरिणामों में, रसपरिणामों में और स्पर्शपरिणामों में परिणत होते हुए पुद्गल परिणत होते हैं-बदलते हैं-ऐसा कहा जा सकता है क्या ? हाँ, गौतम ! ऐसा कहा जा सकता है । भगवन् ! क्या उत्तम शब्द अधम शब्द के रूप में बदलते हैं ? अधम शब्द उत्तम शब्द के रूप में बदलते हैं क्या ? हाँ, गौतम ! बदलते हैं । भगवन् ! क्या शुभ रूप वाले पुद्गल अशुभ रूप में और अशुभ रूप के पुद्गल शुभ रूप में बदलते हैं ? हाँ, गौतम ! बदलते हैं । इसी प्रकार सुरभिगंध के पुद्गल दुरभिगंध के रूप में और दुरभिगंध के पुद्गल सुरभिगंध के रूप में बदलते हैं । इसी प्रकार शुभस्पर्श के पुद्गल अशुभस्पर्श के रूप में तथा शुभरस के पुद्गल अशुभरस के रूप० यावत् परिणत हो सकते हैं ।
प्रतिपत्ति-३-' इन्द्रियविषयाधिकार' का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
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प्रतिपत्ति-३-देवशक्ति सूत्र - ३०७
भगवन् ! कोई महर्द्धिक यावत् महाप्रभावशाली देव पहले किसी वस्तु को फेंके और फिर वह गति करता हुआ उस वस्तु को बीच में ही पकड़ना चाहे तो वह ऐसा करने में समर्थ है ? हाँ, गौतम ! है । भगवन् ! ऐसा किस कारण से कहा जाता है ? गौतम ! फेंकी गई वस्तु पहले शीघ्रगतिवाली होती है और बाद में उसकी गति मन्द हो जाती है, जब कि उस देव की गति पहले भी शीघ्र होती है और बाद में भी शीघ्र होती है, इसलिए ऐसा कहा जाता है कि वह देव उस वस्त को पकड़ने में समर्थ है । भगवन ! कोई महर्दिक यावत महाप्रभावशाली देव बाहा पदगलों को ग्रहण किये बिना और किसी बालक को पहले छेदे-भेदे बिना उसके शरीर को सांधने में समर्थ है क्या ? नहीं, गौतम ! ऐसा नहीं है । भगवन् ! कोई महर्द्धिक यावत् महाप्रभावशाली देव बाह्य पुद्गलों को ग्रहण करके परन्तु बालक के शरीर को पहले छेदे-भेदे बिना उसे सांधने में समर्थ है क्या ? नहीं, गौतम ! नहीं है । भगवन् ! कोई महर्द्धिक एवं महाप्रभावशाली देव बाह्य पुद्गलों को ग्रहण कर और बालक के शरीर को पहले छेद-भेद कर फिर उसे सांधने में समर्थ है क्या ? हाँ, गौतम ! है । वह ऐसी कुशलता से उसे सांधता है कि उस संधिग्रन्थि को छद्मस्थ न देख सकता है
और न जान सकता है । ऐसी सूक्ष्म ग्रन्थि वह होती है । भगवन् ! कोई महर्द्धिक देव पहले बालक को छेदे-भेदे बिना बड़ा या छोटा करने में समर्थ है क्या ? गौतम ! ऐसा नहीं हो सकता । इस प्रकार चारों भंग कहना । प्रथम द्वितीय भंगों में बाह्य पुद्गलों का ग्रहण नहीं है और प्रथम भंग में बाल-शरीर का छेदन-भेदन भी नहीं है । द्वितीय भंग में छेदन-भेदन है । तृतीय भंग में बाह्य पुद्गलों का ग्रहण करना और बाल-शरीर का छेदन-भेदन नहीं है । चौथे भंग में बाह्य पुद्गलों का ग्रहण भी है और पूर्व में बाल-शरीर का छेदन-भेदन भी है । इस छोटे-बड़े करने की सिद्धि को छद्मस्थ नहीं जान सकता और नहीं देख सकता । यह विधि बहुत सूक्ष्म होती है। प्रतिपत्ति-३-' देवशक्ति अधिकार' का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
प्रतिपत्ति-३-ज्योतिष्क सूत्र-३०८
भगवन् ! चन्द्र और सूर्यों के क्षेत्र की अपेक्षा नीचे रहे हुए जो तारा रूप देव हैं, वे क्या हीन भी हैं और बराबर भी हैं ? चन्द्र-सूर्यों के क्षेत्र की समश्रेणी में रहे हुए तारा रूप देव, चन्द्र-सूर्यों से द्युति आदि में हीन भी हैं और बराबर भी हैं ? तथा जो तारा रूप देव चन्द्र और सूर्यों के ऊपर अवस्थित हैं, वे द्युति आदि की अपेक्षा हीन भी हैं
और बराबर भी हैं ? हाँ, गौतम ! हैं। भगवन् ! ऐसा किस कारण से कहा जाता है ? गौतम ! जैसे-जैसे उन तारा रूप देवों के पूर्वभव में किये हुए नियम और ब्रह्मचर्यादि में उत्कृष्टता या अनुत्कृष्टता होती है, उसी अनुपात में उनमें
मुनि दीपरत्नसागर कृत् । (जीवाजीवाभिगम) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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