Book Title: Agam 14 Jivajivabhigam Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र १४, उपांगसूत्र-३, 'जीवाजीवाभिगम'
प्रतिपत्ति/उद्देश-/सूत्र उन तृणों और मणियों में जो नीली मणियौँ और नीले तृण हैं, उनका वर्ण इस प्रकार का है-जैसे नीला भंग हो, नीले भंग का पंख हो, चास हो, चास का पंख हो, नीले वर्ण का शुक हो, शुक का पंख हो, नील हो, नीलखण्ड हो, नील की गुटिका हो, श्यामाक हो, नीला दंतराग हो, नीलीवनराजि हो, बलभद्र का नीला वस्हो, मयूर की ग्रीवा हो, कबूतर की ग्रीवा हो, अलसी का फूल हो, अञ्जनकेशिका वनस्पति का फूल हो, नीलकमल हो, नीला अशोक
रहो, नीला बन्धुजीवक हो, भगवन् ! क्या ऐसा नीला उनका वर्ण होता है ? गौतम ! यह बात नहीं है। इनसे भी अधिक इष्ट, प्रिय, मनोज्ञ और मनोहर उन नीले तृण-मणियों का वर्ण होता है।
उन तृणों और मणियों में जो लाल वर्ण के तृण और मणियाँ हैं, उनका वर्ण इस प्रकार है-जैसे खरगोश का रुधिर हो, भेड़ का खून हो, मनुष्य का रक्त हो, सुअर का रुधिर हो, भैंस का रुधिर हो, सद्यःजात इन्द्रगोप हो, उदीयमान सूर्य हो, सन्ध्याराग हो, गुंजा का अर्धभाग हो, उत्तम जाति का हिंगुलु हो, शिलाप्रवाल हो, प्रवालांकुर हो, लोहिताक्ष मणि हो, लाख का रस हो, कृमिराग हो, लाल कंबल हो, चीन धान्य का पीसा हुआ आटा हो, जपा का फूल हो, किंशुक का फूल हो, पारिजात का फूल हो, लाल कमल हो, लाल अशोक हो, लाल कनेर हो, लाल बन्धुजीवक हो, भगवन् ! क्या ऐसा उन तृणों, मणियों का वर्ण है ? गौतम ! यह यथार्थ नहीं है । उन लाल तृणों और मणियों का वर्ण इनसे भी अधिक इष्ट, कान्त, प्रिय, मनोज्ञ और मनोहर कहा गया है।
उन तृणों और मणियों में जो पीले वर्ण के तृण और मणियाँ हैं उनका वर्ण इस प्रकार का कहा गया है। जैसे सुवर्णचम्पक का वृक्ष हो, सुवर्णचम्पक की छाल हो, सुवर्णचम्पक का खण्ड हो, हल्दी, हल्दी का टुकड़ा हो, हल्दी के सार की गुटिका हो, हरिताल हो, हरिताल का टुकड़ा हो, हरिताल की गुटिका हो, चिकुर हो, चिकुर से बना हुआ वस्त्रादि पर रंग हो, श्रेष्ठ स्वर्ण हो, कसौटी पर घिसे हुए स्वर्ण की रेखा हो, वासुदेव का वस्त्र हो, सल्लकी का फूल हो, स्वर्णचम्पक का फूल हो, कूष्माण्ड का फूल हो, कोरन्टपुष्प की माला हो, तडवडा का फूल हो, घोषातकी का फूल हो, सुवर्णयूथिका का फूल हो, सुहरण्यिका का फूल हो, बीजकवृक्ष का फूल हो, पीला अशोक हो, पीला कनेर हो, पीला बन्धुजीवक हो । भगवन् ! उन पीले तृणों और मणियों का ऐसा वर्ण है क्या ? गौतम ! ऐसा नहीं है। वे पीले तृण और मणियाँ इनसे भी अधिक इष्ट, कान्त, प्रिय, मनोज्ञ और मनोहर वर्ण वाली हैं।
उन तृणों और मणियों में जो सफेद वर्ण वाले तृण और मणियाँ हैं उनका वर्ण इस प्रकार का है-जैसे अंक रत्न हो, शंख हो, चन्द्र हो, कुंद का फूल हो, कुमुद हो, पानी का बिन्द हो, हंसों की पंक्ति हो, क्रौंचपक्षियों की पंक्ति हो, मुक्ताहारों की पंक्ति हो, चाँदी से बने कंकणों की पंक्ति हो, सरोवर की तरंगों में प्रतिबिम्बित चन्द्रों की पंक्ति हो, शरदऋतु के बादल हों, अग्नि में तपाकर धोया हुआ चाँदी का पाट हो, चावलों का पिसा हुआ आटा हो, कुन्द के फूलों का समुदाय हो, कुमुदों का समुदाय हो, सूखी हुई सेम की फली हो, मयूरपिच्छ की मध्यवर्ती मिंजा हो, मृणाल हो, मृणालिका हो, हाथी का दांत हो, लवंग का पत्ता हो, पुण्डरीक की पंखुडियाँ हों, सिन्दुवार के फूलों की माला हो, सफेद अशोक हो, सफेद कनेर हो, सफेद बंधुजीवक हो, भगवन् ! उन सफेद तृणों और मणियों का ऐसा वर्ण है क्या ? गौतम ! यह यथार्थ नहीं है । इनसे भी अधिक इष्ट, कान्त, प्रिय, मनोज्ञ और मनोहर उन तृणों और मणियों का वर्ण कहा गया है।
हे भगवन् ! उन तृणों और मणियों की गंध कैसी कही गई है ? जैसे कोष्ट पुटों, पत्रपुटों, पोयपुटों, तगरपुटों, इलायचीपुटों, चंदनपुटों, कुंकुमपुटों, उशीरपुटों, चंपकपुटों, मरवापुटों, दमनकपुटों, जातिपुटों, जहीपुटों, मल्लिकापुटों, नवमल्लिकापुटों, वासन्तीलतापुटों, केवडा के पुटों और कपूर के पुटों को अनुकूल वायु होने पर उघाड़े जाने पर, भेदे जाने पर, कूटे जाने पर, छोटे-छोटे खण्ड किये जाने पर, बिखेरे जाने पर, ऊपर उछाले जाने पर, इनका उपभोग-परिभोग किये जाने पर और एक बर्तन से दूसरे बर्तन में डाले जाने पर जैसी व्यापक और मनोज्ञ तथा नाक और मन को तृप्त करने वाली गंध नीकलकर चारों तरफ फैली जाती है, हे भगवन् ! क्या वैसी गंध उन तृणों और मणियों की है ? गौतम ! यह बात यथार्थ नहीं है । इससे भी इष्टतर, कान्ततर, प्रियतर, मनोज्ञतर और मनामतर गंध उन तृणों और मणियों की कही गई है । हे भगवन् ! उन तृणों और मणियों का स्पर्श कैसा है ? जैसे
मुनि दीपरत्नसागर कृत्- (जीवाजीवाभिगम) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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