Book Title: Agam 14 Jivajivabhigam Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र १४, उपांगसूत्र-३, 'जीवाजीवाभिगम'
प्रतिपत्ति/उद्देश-/सूत्र छत्रातिछत्र हैं-जंबू-सुदर्शना के बारह नाम हैं, यथासूत्र - १९२, १९३
सुदर्शना, अमोहा, सुप्रबुद्धा, यशोधरा, विदेहजंबू, सौमनस्या, नियता, नित्यमंडिता । सुभद्रा, विशाला, सुजाता, सुमना । सुदर्शना जंबू के ये १२ पर्यायवाची नाम हैं। सूत्र-१९४
हे भगवन् ! जंबू-सुदर्शना को जंबू-सुदर्शना क्यों कहा जाता है ? गौतम ! जम्बू-सुदर्शना में जंबूद्वीप का अधिपति अनादृत नाम का महर्द्धिक देव रहता है । यावत् उसकी एक पल्योपम की स्थिति है । वह चार हजार सामानिक देवों यावत् जंबूद्वीप की जंबूसुदर्शना का और अनादृता राजधानी का यावत् आधिपत्य करता हुआ विचरता है । हे भगवन् ! अनादृत देव की अनादृता राजधानी कहाँ है ? गौतम ! पूर्व में कही हुई विजया राजधानी
मान कहना । यावत् वहाँ महर्द्धिक अनादत देव रहता है। हे गौतम ! जम्बूद्वीप में यहाँ वहाँ जम्बूवृक्ष, जंबूवन और जंबूवनखंड हैं जो नित्य कुसुमित रहते हैं यावत् श्री से अतीव अतीव उपशोभित होते विद्यमान हैं । अथवा यह भी कारण है कि जम्बूद्वीप यह शाश्वत नामधेय है । यह पहले नहीं था-ऐसा नहीं, वर्तमान में नहीं है, ऐसा भी नहीं और भविष्य में नहीं होगा ऐसा नहीं, यावत् यह नित्य है। सूत्र - १९५-१९७
हे भगवन् ! जम्बूद्वीप में कितने चन्द्र चमकते थे, चमकते हैं और चमकेंगे ? कितने सूर्य तपते थे, तपते हैं और तपेंगे ? कितने नक्षत्र योग करते थे, करते हैं, करेंगे ? कितने महाग्रह आकाश में चलते थे, चलते हैं और चलेंगे? कितने कोड़ाकोड़ी तारागण शोभित होते थे, शोभित होते हैं और शोभित होंगे ? गौतम ! दो चन्द्रमा उद्योत करते थे, करते हैं और करेंगे । दो सूर्य तपते थे, तपते हैं और तपेंगे । छप्पन नक्षत्र चन्द्रमा से योग करते थे, योग करते हैं और योग करेंगे । १७६ महाग्रह आकाश में विचरण करते थे, करते हैं और विचरण करेंगे । १३३९५० कोड़ाकोड़ी तारागण आकाश में शोभित होते थे, शोभित होते हैं और शोभित होंगे। सूत्र-१९८
गोल और वलय की तरह गोलकार में संस्थित लवणसमुद्र जम्बूद्वीप नामक द्वीप को चारों ओर से घेरे हुए अवस्थित हैं । हे भगवन् ! लवणसमुद्र समचक्रवाल संस्थित हैं या विषमचक्रवाल ? गौतम ! लवणसमुद्र समचक्रवाल-संस्थान से संस्थित हैं । गौतम ! लवणसमुद्र का चक्रवाल-विष्कम्भ दो लाख योजन का है और उसकी परिधि १५८११३९ योजन से कुछ अधिक है । वह लवणसमुद्र एक पद्मवरवेदिका और एक वनखण्ड से सब ओर से परिवेष्टित है । वह पद्मवरवेदिका आधा योजन ऊंची और पाँच सौ धनुष प्रमाण चोड़ी है । वह वनखण्ड कुछ कम दो योजन का है, इत्यादि । गौतम ! लवणसमुद्र के चार द्वार हैं-विजय, वैजयन्त, जयन्त और अपराजित ।
हे भगवन् ! लवणसमुद्र का विजयद्वार कहाँ है ? गौतम ! लवणसमुद्र के पूर्वीय पर्यन्त में और पूर्वार्ध धातकीखण्ड के पश्चिम में शीतोदा महानदी के ऊपर है । वह आठ योजन ऊंचा और चार योजन चौड़ा है, इस विजयदेव की राजधानी पूर्व में असंख्य द्वीप, समुद्र लाँघने के बाद अन्य लवणसमुद्र में है । गौतम ! लवणसमुद्र के दाक्षिणात्य पर्यन्त में धातकीखण्ड द्वीप के दक्षिणार्ध भाग के उत्तर में वैजयन्त नामक द्वार है। इसी प्रकार जय द्वार जानना । विशेषता यह है कि यह शीता महानदी के ऊपर है। इसी प्रकार अपराजितद्वार जानना । विशेषता यह है कि यह लवणसमुद्र के उत्तरी पर्यन्त में और उत्तरार्ध धातकीखण्ड के दक्षिण में स्थित है । इसकी राजधानी अपराजितद्वार के उत्तर में असंख्य द्वीप समुद्र जाने के बाद अन्य लवणसमुद्र में है।
हे भगवन् ! लवणसमुद्र के इन द्वारों का अन्तर कितना है ? सूत्र-१९९
३९५२८० योजन और एक कोस अन्तर है।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् । (जीवाजीवाभिगम) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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