Book Title: Agam 14 Jivajivabhigam Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 85
________________ आगम सूत्र १४, उपांगसूत्र-३, 'जीवाजीवाभिगम' प्रतिपत्ति/उद्देश-/सूत्र से प्रबल शक्ति वाले वायुकाय उत्पन्न नहीं होते यावत् तब वह पानी नहीं उछलता है | अहोरात्र में दो बार और चतुर्दशी आदि तिथियों में वह विशेष रूप से उछलता है । अहोरात्र में दो बार और चतुर्दशी आदि तिथियों में वह विशेष रूप से उछलता है । इसलिए हे गौतम ! लवणसमुद्र का जल चतुर्दशी, अष्टमी, अमावस्या और पूर्णिमा तिथियों में विशेष रूप से बढ़ता है और घटता है। सूत्र-२०३ हे भगवन् ! लवणसमुद्र (का जल) तीस मुहूर्तों में कितनी बार विशेषरूप से बढ़ता है या घटता है ? हे गौतम ! दो बार विशेष रूप से उछलता और घटता है । हे गौतम ! नीचले और मध्य के विभागों में जब वायु के संक्षोभ से पातालकलशों में से पानी ऊंचा उछलता है तब समुद्र में पानी बढ़ता है और वायु के स्थिर होता है, तब पानी घटता है । इसलिए हे गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि लवणसमुद्र तीस मुहूर्तों में दो बार विशेष रूप से उछलता है और घटता है। सूत्र-२०४ हे भगवन् ! लवणसमुद्र की शिखा चक्रवालविष्कम्भ से कितनी चौड़ी है और वह कितनी बढ़ती और घटती है ? हे गौतम ! लवणसमुद्र की शिखा चक्रवालविष्कम्भ की अपेक्षा दस हजार योजन चौड़ी है और कुछ कम आधे योजन तक वह बढ़ती है और घटती है । हे भगवन ! लवणसमुद्र की आभ्यन्तर और बाह्य वेला को कितने हजार नागकुमार देव धारण करते हैं ? कितने हजार नागकुमार देव अग्रोदक को धारण करते हैं ? गौतम आभ्यन्तर वेला को ४२००० और बाह्य वेला को ७२००० नागकुमार देव धारण करते हैं । ६०००० नागकुमार देव अग्रोदक को धारण करते हैं। सूत्र - २०५ हे भगवन् ! वेलंधर नागराज कितने हैं ? गौतम ! चार-गोस्तूप, शिवक, शंख और मनःशिलाक । हे भगवन ! इन चार वेलंधर नागराजों के कितने आवासपर्वत कहे गये हैं ? गौतम ! चार-गोस्तप, उदकभास, शंख और दकसीम । हे भगवन् ! गोस्तूप वेलंधर नागराज का गोस्तूप नामक आवासपर्वत कहाँ है ? हे गौतम ! जम्बू-द्वीप के मेरुपर्वत के पूर्वमें लवणसमुद्र में ४२००० योजन जाने पर है । वह १७२१ योजन ऊंचा, ४३० योजन एक कोस पानी में गहरा, मूल में १०२२ योजन लम्बा-चौड़ा, बीच में ७२३ योजन लम्बा-चौड़ा, ऊपर ४२४ योजन लम्बा-चौड़ा है। उसकी परिधि मूलमें ३२३२ योजन से कुछ कम, मध्यमें २२८४ योजन से कुछ अधिक और ऊपर १३४१ योजन से कुछ कम हैं । यावत् प्रतिरूप हैं । वह एक पद्मवरवेदिका और एक वनखण्ड से चारों ओर से परिवेष्टित है । गोस्तूप आवासपर्वत के ऊपर बहुसमरमणीय भूमिभाग है, यावत् वहाँ बहुत से नागकुमार देव और देवियाँ स्थित हैं। उसमें एक बड़ा प्रासादावतंसक है जो साढ़े बासठ योजन ऊंचा है, सवा इकतीस योजन का लम्बा-चौड़ा है। हे भगवन् ! गोस्तूप आवासपर्वत, गोस्तूप आवासपर्वत क्यों कहा जाता है ? हे गौतम ! गोस्तूप आवासपर्वत पर बहुत-सी छोटी-छोटी बावड़ियाँ आदि हैं, जिनमें गोस्तूप वर्ण के बहुत सारे उत्पल कमल आदि हैं यावत् वहाँ गोस्तूप नामक महर्द्धिक और एक पल्योपम की स्थितिवाला देव रहता है । वह गोस्तूप देव ४००० सामानिक देवों यावत् गोस्तूपा राजधानी का आधिपत्य करता हुआ विचरता है । यावत् वह गोस्तूपा आवासपर्वत नित्य है । हे भगवन् ! गोस्तूप देव की गोस्तूपा राजधानी कहाँ है ? हे गौतम ! गोस्तूप आवासपर्वत के पूर्व में तिर्यदिशा में असंख्यात द्वीप-समुद्र पार करने के बाद अन्य लवणसमुद्र में है। हे भगवन् ! शिवक वेलंधर नागराज का दकाभास नामक आवासपर्वत कहाँ है ? गौतम ! जम्बूद्वीप के मेरुपर्वत के दक्षिण में लवणसमुद्र में ४२००० योजन आगे जाने पर है । गोस्तूप आवासपर्वत समान इसका प्रमाण है । विशेषता यह है कि यह सर्वात्मना अंकरत्नमय है, यावत् प्रतिरूप है । यावत् यह दकाभास क्यों कहा जाता है? गौतम ! लवणसमुद्र में दकाभास नामक आवासपर्वत आठ योजन के क्षेत्र में पानी को सब ओर अति विशुद्ध अंकरत्नमय होने से अपनी प्रभा से अवभासित, उद्योतित और तापित करता है, चमकाता है तथा शिवक नाम का मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (जीवाजीवाभिगम) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 85

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