Book Title: Agam 14 Jivajivabhigam Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 31
________________ आगम सूत्र १४, उपांगसूत्र-३, 'जीवाजीवाभिगम' प्रतिपत्ति/उद्देश-/सूत्र चरमान्त से उसके घनोदधि के चरमान्त तक एक लाख चवालीस हजार का अन्तर है । धूमप्रभा के ऊपरी चरमान्त के उसके घनोदधि के चरमान्त तक एक लाख अड़तालीस हजार योजन का अन्तर है । तमःप्रभा में एक लाख छत्तीस हजार योजन का अन्तर तथा अधःसप्तम पृथ्वी के ऊपर के चरमान्त से उसके घनोदधि का चरमान्त एक लाख अट्ठावीस हजार योजन है । इसी प्रकार घनवात के अधस्तन चरमान्त की पृच्छा में तनुवात और अवकाशान्तर के उपरितन और अधस्तन की पृच्छा में असंख्यात लाख योजन का अन्तर कहना। सूत्र-९४ हे भगवन् ! यह रत्नप्रभापृथ्वी दूसरी नरकपृथ्वी की अपेक्षा मोटाई में क्या तुल्य है, विशेषाधिक है या संख्येयगुण है ? और विस्तार की अपेक्षा क्या तुल्य है, विशेषहीन है या संख्येयहीन है ? गौतम ! यह रत्नप्रभापृथ्वी दूसरी नरकपृथ्वी की अपेक्षा मोटाई में तुल्य नहीं है, विशेषाधिक है, संख्यातगुणहीन है । विस्तार की अपेक्षा तुल्य नहीं है, विशेषहीन है, संख्यातगुणहीन नहीं है । इसी प्रकार यावत् सातवीं नरक पृथ्वी में समझना । __ प्रतिपत्ति-३ - नैरयिक उद्देशक-२ सूत्र-९५ हे भगवन् ! पृथ्वीयाँ कितनी कही गई हैं ? गौतम ! सात पृथ्वीयाँ कही गई हैं जैसे कि रत्नप्रभा यावत् अधःसप्तम पृथ्वी । भगवन् ! एक लाख अस्सी हजार योजन प्रमाण बाहल्य वाली इस रत्नप्रभा पृथ्वी के ऊपर से कितनी दूर जाने पर और नीचे के कितने भाग को छोड़कर मध्य के कितने भाग में कितने लाख नरकावास कहे गये हैं ? गौतम ! रत्नप्रभापृथ्वी के ऊपरी और नीचे का एक-एक हजार योजन का भाग छोड़कर मध्य में एक लाख अठहतर हजार योजनप्रमाण क्षेत्र में तीस लाख नरकावास हैं, ये नरकावास अन्दर से मध्य भाग में गोल हैं बाहर से चौकोन है यावत् इन नरकावासों में अशुभ वेदना है । इसी अभिलाष के अनुसार प्रज्ञापना के स्थानपद के मुताबिक सब वक्तव्यता कहना । जहाँ जितना बाहल्य है और जहाँ जितने नरकावास हैं, उन्हें विशेषण के रूप में जोड़कर सप्तम पृथ्वी पर्यन्त कहना, यथा-अधःसप्तमपृथ्वी के मध्यवर्ती कितने क्षेत्र में अनुत्तर, बड़े से बड़े महा नरक कहे गये हैं, ऐसा प्रश्न करके उसका उत्तर भी पूर्ववत् कहना । सूत्र-९६ हे भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के नरकावासों का आकार कैसा है ? गौतम ! ये नरकावास दो तरह के हैंआवलिकाप्रविष्ट और आवलिकाबाह्य । इनमें जो आवलिकाप्रविष्ट हैं वे तीन प्रकार के हैं-गोल, त्रिकोण और चतुष्कोण । जो आवलिका से बाहर हैं वे नाना प्रकार के आकारों के हैं, जैसे कोई लोहे की कोठी के आकार के हैं, कोई मदिरा बनाने हेतु पिष्ट आदि पकाने के बर्तन के आकार के हैं, कोई कंदू-हलवाई के पाकपात्र जैसे हैं, कोई तवा के आकार के हैं, कोई कडाही के आकार के हैं, कोई थाली-ओदन पकाने के बर्तन जैसे हैं, कोई पिठरक के आकार के हैं, कोई कृमिक के आकार के हैं, कोई कीर्णपुटक जैसे हैं, कोई तापस के आश्रम जैसे, कोई मुरज जैसे, कोई मृदंग के आकार के, कोई नन्दिमृदंग के आकार के, कोई आलिंगक के जैसे, कोई सुघोषा घंट के समान, कोई दर्दर के समान, कोई पणव जैसे, कोई पटह जैसे, भेरी जैसे, झल्लरी जैसे, कोई कुस्तुम्बक जैसे और कोई नाडी-घटिका जैसे हैं । इस प्रकार छठी नरक पृथ्वी तक कहना । भगवन् ! सातवीं पृथ्वी के नरकावासों का संस्थान कैसा है ? गौतम वे दो प्रकार के हैं-वत्त और त्रिकोण । सूत्र-९७ हे भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के नरकावासों की मोटाई कितनी है ? गौतम ! ३००० योजन की । वे नीचे १००० योजन तक घन हैं, मध्य में एक हजार योजन तक झुषिर हैं और ऊपर एक हजार योजन तक संकुचित हैं। इसी प्रकार सप्तम पृथ्वी तक कहना । भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के नरकावासों की लम्बाई-चौड़ाई तथा परिक्षेप कितना है ? गौतम ! वे नरकावास दो प्रकार के हैं । यथा-संख्यात योजन के विस्तार वाले और असंख्यात योजन के मुनि दीपरत्नसागर कृत् । (जीवाजीवाभिगम) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 31

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