Book Title: Agam 14 Jivajivabhigam Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

View full book text
Previous | Next

Page 33
________________ आगम सूत्र १४, उपांगसूत्र-३, 'जीवाजीवाभिगम' प्रतिपत्ति/उद्देश-/सूत्र सूत्र- ९९ हे भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के नरकावास किसके बने हुए हैं ? गौतम ! वे नरकावास सम्पूर्ण रूप से वज्र के बने हुए हैं । उन नरकावासों में बहुत से (खरबादर पृथ्वीकायिक) जीव और पुद्गल च्यवते हैं और उत्पन्न होते हैं, पुराने नीकलते हैं और नये आते हैं । द्रव्यार्थिकनय से वे नरकावास शाश्वत हैं परन्तु वर्ण, गंध, रस और स्पर्श पर्यायों से वे अशाश्वत हैं । ऐसा अधःसप्तमपृथ्वी तक कहना। सूत्र-१०० भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिक कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? क्या असंज्ञी जीवों से आकर उत्पन्न होते हैं, सरीसृपों से आकर उत्पन्न होते हैं, पक्षियों से आकर उत्पन्न होते हैं, चौपदों से आकर उत्पन्न होते हैं, उरगों से आकर उत्पन्न होते हैं, स्त्रियों से आकर उत्पन्न होते हैं या मत्स्यों और मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! असंज्ञी जीवों से आकर भी उत्पन्न होते हैं और यावत् मत्स्य और मनुष्यों से आकर भी उत्पन्न होते हैं। सूत्र-१०१ असंज्ञी जीव प्रथम नरक तक, सरीसृप दूसरी नरक तक, पक्षी तीसरी नरक तक, सिंह चौथी नरक तक, उरग पाँचवी नरक तक, स्त्रियाँ छठी नरक तक और मत्स्य एवं मनुष्य सातवी नरक तक जाते हैं। सूत्र-१०२ हे भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी में नारकजीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! जघन्य से एक, दो, तीन, उत्कृष्ट से संख्यात या असंख्यात । इसी प्रकार सप्तमपृथ्वी तक कहना । हे भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिकों का प्रतिसमय एक-एक का अपहार करने पर कितने काल में यह रत्नप्रभापृथ्वी खाली हो सकती है ? गौतम ! नैरयिक जीव असंख्यात हैं । प्रतिसमय एक-एक नैरयिक का अपहार किया जाय तो असंख्यात उत्सर्पिणियाँ-अवसर्पिणियाँ बीत जाने पर भी यह खाली नहीं होते । इसी प्रकार सातवी पृथ्वी तक कहना।। हे भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिकों की शरीर-अवगाहना कितनी है ? गौतम ! दो प्रकार की-भव धारणीय और उत्तरवैक्रिय । भवधारणीय अवगाहना जघन्य से अंगुल का असंख्यातवाँ भाग और उत्कृष्ट से सात धनुष, तीन हाथ और छह अंगुल है । उत्तरवैक्रिय अवगाहना जघन्य से अंगुल का संख्यातवाँ भाग, उत्कृष्ट से पन्द्रह धनुष, अढ़ाई हाथ हैं । दूसरी शर्कराप्रभा के नैरयिकों की भवधारणीय अवगाहना जघन्य से अंगुल का असंख्यातवाँ भाग, उत्कृष्ट पन्द्रह धनुष अढ़ाई हाथ है । उत्तरवैक्रिय जघन्य से अंगुल का संख्यातवाँ भाग, उत्कृष्ट से इकतीस धनुष एक हाथ है । तीसरी नरक में भवधारणीय इकतीस धनुष, एक हाथ और उत्तरवैक्रिय बासठ धनुष दो हाथ है। चौथी नरक में भवधारणीय बासठ धनुष दो हाथ है और उत्तरवैक्रिय एक सौ पचीस धनुष है । पाँचवी नरक में भवधारणीय एक सौ पचीस धनुष और उत्तरवैक्रिय अढ़ाई सौ धनुष है । छठी नरक में भवधारणीय अढ़ाई सौ धनुष और उत्तरवैक्रिय पाँच सौ धनुष है । सातवीं नरक में भवधारणीय पाँच सौ धनुष है और उत्तरवैक्रिय एक हजार धनुष सूत्र - १०३ हे भगवन् ! रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिकों के शरीरों का संहनन क्या है ? गौतम ! कोई संहनन नहीं है, क्योंकि उनके शरीर में हड्डियाँ नहीं है, शिराएं नहीं हैं, स्नायु नहीं हैं । जो पुद्गल अनिष्ट और अमणाम होते हैं वे उनके शरीर रूप में एकत्रित हो जाते हैं । इसी प्रकार सप्तम पृथ्वी तक कहना । हे भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिकों के शरीरों का संस्थान कैसा है ? गौतम ! उनके संस्थान दो प्रकार के हैं-भवधारणीय और उत्तरवैक्रिय । दोनों हंडकसंस्थान ही हैं । इसी प्रकार सप्तमपृथ्वी तक के नैरयिकों के संस्थान हैं । भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिकों के शरीर वर्ण की अपेक्षा कैसे हैं ? गौतम ! काले, काली छाया वाले यावत् अत्यन्त काले कहे गये हैं । इसी प्रकार सप्तमपृथ्वी तक के नैरयिकों का वर्ण जानना । मुनि दीपरत्नसागर कृत् । (जीवाजीवाभिगम)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 33

Loading...

Page Navigation
1 ... 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136