Book Title: Agam 14 Jivajivabhigam Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 49
________________ आगम सूत्र १४, उपांगसूत्र-३, 'जीवाजीवाभिगम' प्रतिपत्ति/उद्देश-/सूत्र चतुर तथा योग्य उपचार-व्यवहार में कुशल होती हैं । उनके स्तन, जघन, मुख, हाथ, पाँव और नेत्र बहुत सुन्दर होते हैं । वे सुन्दर वर्ण वाली, लावण्य वाली, यौवन वाली और विलासयुक्त होती है। नंदनवन में विचरण करने वाली अप्सराओं की तरह वे आश्चर्य से दर्शनीय हैं । वे दर्शनीय हैं, अभिरूप हैं और प्रतिरूप हैं। हे भगवन् ! उन स्त्रियों को कितने काल के अन्तर से आहार की अभिलाषा होती है ? गौतम ! एक दिन छोड़कर । हे भगवन् ! वे मनुष्य कैसा आहार करते हैं ? हे आयुष्मन् श्रमण ! वे मनुष्य पृथ्वी, पुष्प और फलों का आहार करते हैं । उस पृथ्वी का स्वाद जैसे गुड, खांड, शक्कर, मिश्री, कमलकन्द पर्पटमोदक, पुष्पविशेष से बनी शक्कर, कमलविशेष से बनी शक्कर, अकोशिता, विजया, महाविजया, आदर्शोपमा अनोपमा का स्वाद होता है वैसा उस मिट्टी का स्वाद है । अथवा चार बार परिणत एवं चतुःस्थान परिणत गाय का दूध जो गुड, शक्कर, मिश्री मिलाया हुआ, मंदाग्नि पर पकाया गया तथा शुभवर्ण, शुभगंध, शुभरस और शुभस्पर्श से युक्त हो, ऐसे गोक्षीर जैसा वह स्वाद होता है, उस पृथ्वी का स्वाद इससे भी अधिक इष्टतर यावत् मनोज्ञतर होता है। वहाँ के पुष्पों और फलों का स्वाद, जैसे चातुरंतचक्रवर्ती का भोजन, जो लाख गायों से निष्पन्न होता है, जो श्रेष्ठ वर्ण से, गंध से, रस से और स्पर्श से युक्त है, आस्वादन के योग्य है, पुनः पुनः आस्वादन योग्य है, जो दीपनीय है, बृहणीय है, दर्पणीय है, मदनीय है और जो समस्त इन्द्रियों को और शरीर को आनन्ददायक होता है, उन पुष्पफलों का स्वाद उससे भी अधिक इष्टतर, कान्ततर, प्रियतर, मनोज्ञतर और मनामतर होता है। हे भगवन् ! उक्त प्रकार के आहार का उपभोग करके वे कैसे निवासों में रहते हैं ? आयुष्मन् गौतम ! वे गेहाकार परिणत वृक्षों में रहते हैं । भगवन् ! उन वृक्षों का आकार कैसा होता है ? गौतम ! वे पर्वत के शिखर, नाट्यशाला, छत्र, ध्वजा, स्तूप, तोरण, गोपुर, वेदिका, चोप्याल, अट्टालिका, राजमहल, हवेली, गवाक्ष, जल-प्रासाद, वल्लभी इन सबके आकारवाले हैं । तथा हे आयुष्मन् श्रमण ! और भी वहाँ वृक्ष हैं जो विविध भवनों, शयनों, आसनों आदि के विशिष्ट आकारवाले और सुखरूप शीतल छाया वाले हैं । हे भगवन् ! एकोरुक द्वीप में घर और मार्ग हैं क्या ? हे गौतम ! यह अर्थ समर्थित नहीं है । हे आयुष्मन् श्रमण ! वे मनुष्य गृहाकार बने हुए वृक्षों पर रहते हैं । भगवन् ! एकोरुक द्वीप में ग्राम, नगर यावत् सन्निवेश हैं ? हे आयुष्मन् श्रमण ! वहाँ ग्राम आदि नहीं हैं । वे मनुष्य ईच्छानुसार गमन करने वाले हैं । भगवन् ! एकोरुक द्वीप में असि, मषि, कृषि, पण्य और वाणिज्य-व्यापार हैं ? आयुष्मन् श्रमण ! वे वहाँ नहीं हैं । भगवन् ! एकोरुक द्वीप में हिरण्य, स्वर्ण, कांसी, वस्त्र, मणि, मोती तथा विपुल धनसोना रत्न मणि, मोती शख, शिला प्रवाल आदि प्रधान द्रव्य हैं? हाँ, गौतम ! हैं परन्त उन मनुष्यों को उनमें तीव्र ममत्वभाव नहीं होता है । भगवन् ! एकोरुक द्वीप में राजा, युवराज, ईश्वर, तलवर, मांडविक, कौटुम्बिक, इभ्य, सेठ, सेनापति, सार्थवाह आदि हैं क्या? आयुष्मन श्रमण ! ये सब वहाँ नहीं है। हे भगवन् ! एकोरुक द्वीप में दास, प्रेष्य, शिष्य, वेतनभोगी भृत्य, भागीदार, कर्मचारी हैं क्या ? हे आयुष्मन् श्रमण ! ये सब वहाँ नहीं हैं । हे भगवन् ! एकोरुक द्वीप में माता, पिता, भाई, बहिन, भार्या, पुत्र, पुत्री और पुत्रवधू हैं क्या ? हाँ, गौतम ! हैं परन्तु उनका माता-पितादि में तीव्र प्रेमबन्धन नहीं होता है । हे भगवन् ! एकोरुक द्वीप में अरि, वैरी, घातक, वधक, प्रत्यनीक, प्रत्यमित्र हैं क्या ? हे आयुष्मन् श्रमण ! ये सब वहाँ नहीं हैं । वे मनुष्य वैरभाव से रहित होते हैं । हे भगवन् ! एकोरुक द्वीप में मित्र, वयस्य, प्रेमी, सखा, सुहृद, महाभाग और सांगतिक हैं क्या? हे आयुष्मन् श्रमण ! नहीं हैं । वे मनुष्य प्रेमानुबन्ध रहित हैं । हे भगवन् ! एकोरुक द्वीप में आबाह, विवाह, यज्ञ, श्राद्ध, स्थालीपाक, चोलोपनयन, सीमन्तोपनयन, पितरों को पिण्डदान आदि संस्कार है क्या? हे आयुष्मन् श्रमण ! ये संस्कार वहाँ नहीं हैं। हे भगवन् ! एकोरुक द्वीप में इन्द्रमहोत्सव, स्कंद महोत्सव, रुद्र महोत्सव, शिव महोत्सव, वेश्रमण महोत्सव, मुकुन्द महोत्सव, नाग, यक्ष, भूत, कूप, तालाब, नदी, द्रह, पर्वत, वृक्षारोपण, चैत्य और स्तूप महोत्सव होते हैं क्या ? हे आयुष्मन् श्रमण ! वहाँ ये महोत्सव नहीं होते । हे भगवन् ! एकोरुक द्वीप में नटों का खेल होता आयोजन होता है, डोरी पर खेलने वालों का खेल होता है, कुश्तियाँ होती हैं, मुष्टिप्रहारादि का प्रदर्शन होता है, मुनि दीपरत्नसागर कृत्- (जीवाजीवाभिगम) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 49

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