Book Title: Agam 14 Jivajivabhigam Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 38
________________ आगम सूत्र १४, उपांगसूत्र-३, 'जीवाजीवाभिगम' प्रतिपत्ति/उद्देश-/सूत्र उत्कृष्ट अवस्थानकाल है। सूत्र-१२० जो पुद्गल निश्चित रूप से अनिष्ट होते हैं, उन्हीं का नैरयिक आहार करते हैं। उनके शरीर की आकृति अति निकृष्ट और हुंडसंस्थान वाली होती है । सूत्र-१२१ सब नैरयिकों की उत्तरविक्रिया भी अशुभ ही होती है। उनका वैक्रियशरीर असंहननवाला और हंडसंस्थान वाला होता है। सूत्र - १२२ सर्व नरक पृथ्वीओं में और कोई भी स्थितिवाले नैरयिक का जन्म असातावाला होता है, उनका सारा नारकीय जीवन दुःख में ही बीतता है। सूत्र - १२३ नैरयिक जीवों में से कोई जीव उपपात के समय, पूर्व सांगतिक देव के निमित्त से कोई नैरयिक, कोई नैरयिक शुभ अध्यवसायों के कारण अथवा कर्मानुभाव से साता का वेदन करते हैं। सूत्र- १२४ सैकड़ों वेदनाओं से अवगाढ़ होने के कारण दुःखों से सर्वात्मना व्याप्त नैरयिक उत्कृष्ट पाँच सौ योजन तक ऊपर उछलते हैं। सूत्र - १२५ रात-दिन दुःखों से पचते हुए नैरयिकों को नरक में पलक पूँदने मात्र काल के लिए भी सुख नहीं है किन्तु दुःख ही दुःख सदा उनके साथ लगा हुआ है । सूत्र-१२६ तैजस-कार्मण शरीर, सूक्ष्मशरीर और अपर्याप्त जीवों के शरीर जीव के द्वारा छोड़े जाते ही तत्काल हजारों खण्डों में खण्डित होकर बिखर जाते हैं। सूत्र-१२७ नरक में नैरयिकों को अत्यन्त शीत, अत्यन्त उष्णता, अत्यन्त भूख, अत्यन्त प्यास और अत्यन्त भय और सैकड़ों दुःख निरन्तर बने रहते हैं। सूत्र - १२८ इन गाथाओं में विकुर्वणा का अवस्थानकाल, अनिष्ट पुद्गलों का परिणमन, अशुभ विकुर्वणा, नित्य असाता, उपपात काल में क्षणिक साता, ऊपर छटपटाते हुए उछलना, अक्षिनिमेष के लिए भी साता न होना, वैक्रियशरीर का बिखरना तथा नारकों को होनेवाली सैकड़ों प्रकार की वेदनाओं का उल्लेख किया गया है। सूत्र-१२९ नैरयिकों का वर्णन समाप्त हुआ। प्रतिपत्ति-३-'नैरयिक उद्देशक' का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण मुनि दीपरत्नसागर कृत् । (जीवाजीवाभिगम)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 38

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