Book Title: Agam 14 Jivajivabhigam Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 39
________________ आगम सूत्र १४, उपांगसूत्र-३, 'जीवाजीवाभिगम' प्रतिपत्ति/उद्देश-/सूत्र प्रतिपत्ति-३ - तिर्यंच उद्देशक-१ सूत्र-१३० __ तिर्यक्योनिक जीवों का क्या स्वरूप है ? तिर्यक्योनिक जीव पाँच प्रकार के हैं, यथा-एकेन्द्रिय तिर्यक्योनिक, यावत् पंचेन्द्रिय तिर्यक्योनिक । एकेन्द्रिय तिर्यक्योनिक का क्या स्वरूप है ? एकेन्द्रिय तिर्यक्योनिक पाँच प्रकार के हैं, यथा-पृथ्वीकायिक यावत् वनस्पतिकायिक तिर्यक्योनिक । पृथ्वीकायिक एकेन्द्रिय तिर्यंच का क्या स्वरूप है ? वे दो प्रकार के हैं, यथा-सूक्ष्म पृथ्वीकायिक और बादर पृथ्वीकायिक एकेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक । सूक्ष्म पृथ्वीकायिक एकेन्द्रिय तिर्यक्योनिक क्या हैं? वे दो प्रकार के हैं, यथा-पर्याप्त और अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक तिर्यंचयोनिक । बादर पृथ्वीकायिक क्या है ? वे दो प्रकार के हैं-पर्याप्त और अपर्याप्त बादर पृथ्वीकायिक । अप्कायिक एकेन्द्रिय तिर्यक्योनिक क्या है ? वे दो प्रकार के हैं, इस प्रकार पृथ्वीकायिक की तरह चार भेद कहना । वनस्पतिकायिक एकेन्द्रिय तिर्यक्योनिक पर्यन्त ऐसे ही भेद कहना । द्वीन्द्रिय तिर्यक्योनिक जीवों का स्वरूप क्या है ? वे दो प्रकार के हैं, यथा-पर्याप्त द्वीन्द्रिय और अपर्याप्त द्वीन्द्रिय । इसी प्रकार चतुरिन्द्रियों तक कहना । पंचेन्द्रिय तिर्यक्योनिक क्या हैं? वे तीन प्रकार के हैं, यथा-जलचर, स्थलचर और खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यक्योनिक । जलचर पंचेन्द्रिय तिर्यक्योनिक क्या हैं ? वे दो प्रकार के हैं, यथा-सम्मूर्छिम० और गर्भव्युत्क्रान्तिक जलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच । सम्मूर्छिम जलचर पंचे० क्या हैं ? वे दो प्रकार के हैं, यथा-पर्याप्त० और अपर्याप्त सम्मूर्छिम जलचर पंचेन्द्रिय तिर्यक्योनिक । गर्भव्युत्क्रान्तिक जलचर पंचेन्द्रिय० क्या हैं ? वे दो प्रकार के हैं, यथा-पर्याप्त और अपर्याप्त गर्भव्युत्क्रान्तिक जलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच | स्थलचरपंचेन्द्रिय दो प्रकार के हैं, यथा-चतुष्पद० और परिसर्पस्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यक्योनिक | चतुष्पद स्थलचर पंचेन्द्रिय दो प्रकार के हैं, यथा-सम्मूर्छिम० और गर्भव्युत्क्रान्तिक चतुष्पदस्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच । जलचरों के समान चार भेद इनके भी जानना । परिसर्प-स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच दो प्रकार के हैं, यथा-उरगपरिसर्प० और भुजगपरिसर्प स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच । उरगपरिसर्पस्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिक दो प्रकार के हैं, जलचरों के चार भेद समान यहाँ भी कहना । इसी तरह भुजगपरिसों के भी चार भेद कहना । खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यक्योनिक क्या हैं ? वे दो प्रकार के हैं, यथा-सम्मूर्छिम० और गर्भव्युत्क्रान्तिक खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यक्योनिक । सम्मूर्छिम खेचर पं० ति० दो प्रकार के हैं, यथा-पर्याप्त० और अपर्याप्त सम्मूर्छिम खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यक्योनिक । इसी प्रकार गर्भव्युत्क्रान्तिकों के सम्बन्ध में भी कहना । हे भगवन् ! खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यक् योनिकों का योनिसंग्रह कितने प्रकार का कहा गया है ? गौतम ! तीन प्रकार का-अण्डज, पोतज और सम्मूर्छिम | अण्डज तीन प्रकार के हैं-स्त्री, पुरुष और नपुंसक । पोतज तीन प्रकार के हैं, स्त्री, पुरुष और नपुंसक। सम्मूर्छिम सब नपुंसक होते हैं। सूत्र - १३१ हे भगवन् ! इन जीवों के कितनी लेश्याएं हैं ? गौतम ! छह-कृष्णलेश्या यावत् शुक्ललेश्या । हे भगवन् ! ये जीव सम्यग्दृष्टि हैं, मिथ्यादृष्टि हैं या सम्यग् मिथ्यादृष्टि हैं । गौतम ! तीनों । भगवन् ! वे जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी हैं ? गौतम ! ज्ञानी भी हैं और अज्ञानी भी हैं । जो ज्ञानी हैं वे दो या तीन ज्ञानवाले हैं और जो अज्ञानी हैं वे दो या तीन अज्ञान वाले हैं । भगवन् ! वे जीव क्या मनयोगी हैं, वचनयोगी हैं, काययोगी हैं ? गौतम ! तीनों हैं । भगवन् ! वे जीव साकार-उपयोग वाले हैं या अनाकार-उपयोग वाले हैं ? गौतम ! दोनों हैं। भगवन् ! वे जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! असंख्यात वर्ष की आयु वालों, अकर्मभूमिकों और अन्तर्दीपकों को छोड़कर सब जगह से उत्पन्न होते हैं । हे भगवन् ! उन जीवों की स्थिति कितने काल की है ? गौतम ! जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट पल्योपम का असंख्यातवाँ भाग-प्रमाण । उन जीवों के पाँच समुद्घात हैं, यथा-वेदनासमुद्घात यावत् तैजससमुद्घात । वे जीव मारणान्तिकसमुद्घात से समवहत होकर भी मरते हैं और मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (जीवाजीवाभिगम)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 39

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