Book Title: Agam 14 Jivajivabhigam Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र १४, उपांगसूत्र-३, 'जीवाजीवाभिगम'
प्रतिपत्ति/उद्देश-/सूत्र भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिकों के शरीर की गन्ध कैसी कही गई है ? गौतम ! जैसे कोई मरा हुआ सर्प हो, इत्यादि पूर्ववत् कथन करना । सप्तमीपृथ्वी तक ऐसा समझना । भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिकों के शरीरों का स्पर्श कैसा है ? गौतम ! उनके शरीर की चमड़ी फटी हुई होने से तथा झुरियाँ होने से कान्ति रहित है, कर्कश है, कठोर है, छेदवाली है और जली हुई वस्तु की तरह खुरदरी है । इसी प्रकार सप्तमपृथ्वी तक कहना। सूत्र-१०४
__ भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिकों के श्वासोच्छ्वास के रूप में कैसे पुद्गल परिणत होते हैं ? गौतम! अनिष्ट यावत् अमणाम पुद्गल परिणत होते हैं । इसी प्रकार सप्तमपृथ्वी तक जानना । इसी प्रकार जो पुद्गल अनिष्ट एवं अमणाम होते हैं, वे नैरयिकी के आहार रूप में परिणत होते हैं । ऐसा ही कथन रत्नप्रभादि सातों नरक पृथ्वीयों में जानना।
हे भगवन् ! रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिकों में कितनी लेश्याएं हैं ? गौतम ! एक कापोतलेश्या है । इसी प्रकार शर्कराप्रभा में भी कापोतलेश्या है । बालुकाप्रभा में दो लेश्याएं हैं-नीललेश्या और कापोतलेश्या । कापोतलेश्या वाले अधिक हैं और नीललेश्या वाले थोड़े हैं । पंकप्रभा में एक नीललेश्या है । धूमप्रभा में दो लेश्याएं हैं-कृष्ण-लेश्या और नीललेश्या । नीललेश्या वाले अधिक हैं और कृष्णलेश्या वाले थोड़े हैं । तमःप्रभा में एक कृष्णलेश्या है। सातवीं पृथ्वी में एक परमकृष्णलेश्या है । हे भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिक क्या सम्यग्दृष्टि हैं, मिथ्यादृष्टि हैं या सम्यग् मिथ्यादृष्टि हैं ? गौतम ! तीनों हैं । इसी प्रकार सप्तमपृथ्वी तक कहना।
हे भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिक ज्ञानी हैं या अज्ञानी ? गौतम ! ज्ञानी भी हैं और अज्ञानी भी हैं । जो ज्ञानी हैं वे निश्चय से तीन ज्ञानवाले हैं-आभिनिबोधिज्ञानी, श्रुतज्ञानी और अवधिज्ञानी। जो अज्ञानी हैं उनमें कोई दो अज्ञान वाले हैं और कोई तीन अज्ञान वाले हैं । जो दो अज्ञानवाले हैं वे नियम से मति-अज्ञानी और श्रुत-अज्ञानी हैं और जो तीन अज्ञानवाले हैं वे नियम से मति-अज्ञानी, श्रुत-अज्ञानी और विभंगज्ञानी हैं । शेष शर्कराप्रभा आदि पृथ्वीयों के नारक ज्ञानी भी हैं और अज्ञानी भी हैं । जो ज्ञानी हैं वे तीनों ज्ञानवाले हैं और जो अज्ञानी हैं वे तीनों अज्ञानवाले हैं । सप्तमपृथ्वी तक के नारकों के लिए ऐसा ही कहना । हे भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिक मनयोगवाले हैं, वचनयोगवाले हैं या काययोगवाले हैं ? गौतम ! तीनों योगवाले हैं । सप्तमपृथ्वी तक ऐसा कहना।
हे भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के नारक साकार उपयोग वाले हैं या अनाकार उपयोग वाले हैं ? गौतम ! दोनों हैं । सप्तमपृथ्वी तक ऐसा ही कहना । हे भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिक अवधि से कितना क्षेत्र जानते हैं, देखते हैं ? गौतम ! जघन्य से साढे तीन कोस, उत्कष्ट से चार कोस क्षेत्र को जानते हैं, देखते हैं। नैरयिक जघन्य तीन कोस, उत्कर्ष से साढे तीन कोस जानते-देखते हैं । इस प्रकार आधा-आधा कोस घटाकर कहना यावत् अधःसप्तमपृथ्वी के नैरयिक जघन्य आधा कोस और उत्कर्ष से एक कोस क्षेत्र जानते-देखते हैं । हे भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिकों के कितने समुद्घात हैं ? गौतम ! चार-वेदनासमुद्घात, कषाय-समुद्घात, मारणान्तिकसमुद्घात और वैक्रियसमुद्घात । ऐसा ही सप्तमपृथ्वी तक कहना। सूत्र - १०५
हे भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिक भूख और प्यास की कैसी वेदना का अनुभव करते हैं ? गौतम! असत् कल्पना के अनुसार यदि किसी एक रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिक के मुख में सब समुद्रों का जल तथा सब खाद्य पुद्गलों को डाल दिया जाय तो भी उस रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिक की भूख तृप्त नहीं हो सकती और न उसकी प्यास ही शान्त हो सकती है । इसी तरह सप्तमपृथ्वी तक के नैरयिकों के सम्बन्ध में भी जानना।
हे भगवन् ! रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिक क्या एक या बहुत से रूप बनाने में समर्थ हैं ? गौतम ! वे एक रूप भी बना सकते हैं और बहुत रूप भी बना सकते हैं । एक रूप बनाते हुए वे एक मुद्गर रूप बनाने में समर्थ हैं, इसी प्रकार एक भुसंडी, करवत, तलवार, शक्ति, हल, गदा, मूसल, चक्र, बाण, भाला, तोमर, शूल, लकुट और भिण्डमाल बनाते हैं और बहुत रूप बनाते हुए बहुत से मुद्गर भुसंढी यावत् भिण्डमाल बनाते हैं । इन बहुत शस्त्र रूपों की
मुनि दीपरत्नसागर कृत् । (जीवाजीवाभिगम) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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