Book Title: Agam 14 Jivajivabhigam Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र १४, उपांगसूत्र-३, 'जीवाजीवाभिगम'
प्रतिपत्ति/उद्देश-/सूत्र जलचर ति० यो० नपुंसक संख्यातगुण हैं, उनसे चतुरिन्द्रिय नपुंसक विशेषाधिक हैं, उनसे त्रीन्द्रिय नपुंसक विशेषाधिक हैं, उनसे द्वीन्द्रिय नपुंसक विशेषाधिक हैं, उनसे तेजस्कायिक एकेन्द्रिय नपुंसक असंख्यातगुण हैं, उनसे पृथ्वीकायिक एकेन्द्रिय नपुंसक विशेषाधिक हैं, उनसे अप्कायिक एकेन्द्रिय नपुंसक विशेषाधिक हैं, उनसे वायुकायिक एकेन्द्रिय नपुंसक विशेषाधिक हैं, उनसे वनस्पतिकायिक एकेन्द्रिय नपुंसक अनन्तगुण हैं। सूत्र - ७१
भगवन् ! स्त्रियों की कितने काल की स्थिति है ? गौतम ! 'एक अपेक्षा से' इत्यादि कथन जो स्त्री-प्रकरण में किया गया है, वही यहाँ कहना । इसी प्रकार पुरुष और नपुंसक की भी स्थिति आदि का कथन पूर्ववत् समझना। तीनों की संचिटणा और तीनों का अन्तर भी जो अपने-अपने प्रकरण में कहा गया है, वही यहाँ कहना । सूत्र - ७२
तिर्यक्योनि स्त्रियाँ तिर्यक्योनि के पुरुषों से तीन गुनी और त्रिरूप अधिक हैं । मनुष्यस्त्रियाँ मनुष्य-पुरुषों से सत्तावीसगुनी और सत्तावीसरूप अधिक हैं । देवस्त्रियाँ देवपुरुषों से बत्तीसगुनी और बत्तीसरूप अधिक हैं सूत्र-७३
तीन वेदरूप दूसरी प्रतिपत्ति में प्रथम अधिकार भेदविषयक है, इसके बाद स्थिति, संचिट्ठणा, अन्तर और अल्पबहुत्व का अधिकार है । तत्पश्चात् वेदों की बंधस्थिति तथा वेदों का अनुभव किस प्रकार का है, यह वर्णन किया गया है।
प्रतिपत्ति-२-का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत् । (जीवाजीवाभिगम)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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