Book Title: Agam 14 Jivajivabhigam Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
View full book text
________________
आगम सूत्र १४, उपांगसूत्र-३, 'जीवाजीवाभिगम'
प्रतिपत्ति/उद्देश-/सूत्र प्रतिपत्ति-३-चतुर्विध सूत्र-७४
जो आचार्य इस प्रकार कहते हैं कि संसारसमापन्नक जीव चार प्रकार के हैं, वे ऐसा प्रतिपादन करते हैं, यथा-नैरयिक, तिर्यंचयोनिक, मनुष्य और देव ।
प्रतिपत्ति-३ - नैरयिक उद्देशक-१ सूत्र - ७५
नैरयिकों का स्वरूप क्या है ? नैरयिक सात प्रकार के हैं, प्रथमपृथ्वी नैरयिक, यावत् सप्तमपृथ्वी नैरयिक । सूत्र - ७६-७८
हे भगवन् ! प्रथम पृथ्वी का क्या नाम और क्या गोत्र है ? गौतम ! प्रथम पृथ्वी का नाम 'धम्मा' है और उसका गोत्र रत्नप्रभा है । गौतम ! दूसरी पृथ्वी का नाम वंशा है और गोत्र शर्कराप्रभा है । तीसरी पृथ्वी का नाम शैला, चौथी का अंजना, पाँचवी का रिष्ठा है, छठी का मघा और सातवीं पृथ्वी का नाम माघवती है । इस प्रकार तीसरी पृथ्वी का गोत्र वालुकाप्रभा, चोथी का पंकप्रभा, पाँचवी का धूमप्रभा, छठी का तमःप्रभा और सातवीं का गोत्र तमस्तमःप्रभा है।
सात पृथ्वीओं के क्रमशः सात नाम इस प्रकार हैं-धर्मा, वंशा, शैला, अंजना, रिष्टा, मघा और माघवती ।
सात पृथ्वीओं के क्रमशः सात गोत्र इस प्रकार हैं-रत्ना, शर्करा, वालुका, पंका, घूमा, तमा और तमस्तमा । सूत्र- ७९.८०
भगवन् ! यह रत्नप्रभापृथ्वी कितनी मोटी कही गई है ? गौतम ! यह रत्नप्रभापृथ्वी एक लाख अस्सी हजार योजन मोटी है।
'प्रथम पृथ्वी की मोटाई एक लाख अस्सी हजार योजन की है । दूसरी एक लाख बत्तीस हजार योजन की, तीसरी एक लाख अट्ठाईस हजार योजन की, चौथी एक लाख बीस हजार योजन की, पाँचवी एक लाख अठारह हजार योजन की, छठी एक लाख सोलह हजार योजन की और सातवी एक लाख आठ हजार योजन की है। सूत्र-८१
भगवन् ! यह रत्नप्रभापृथ्वी कितने प्रकार की है ? गौतम ! तीन प्रकार की-खरकाण्ड, पंकबहुलकांड और अपबहुल कांड | भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी का खरकाण्ड कितने प्रकार का है ? गौतम ! सोलह प्रकार का - रत्नकांड, वज्रकांड, वैडूर्य, लोहिताक्ष, मसारगल्ल, हंसगर्भ, पुलक, सौगंधिक, ज्योतिरस, अंजन, अंजनपुलक, रजत, जातरूप, अंक, स्फटिक और रिष्ठकांड | भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी का रत्नकाण्ड कितने प्रकार का है ? गौतम ! एक ही प्रकार का है। इसी प्रकार रिष्टकाण्ड तक एकाकार कहना । यावत् पंकबहुलकांड अपूबहुलकांड भी एकाकार ही हैं । इसी तरह शर्कराप्रभा यावत् अधःसप्तमा पृथ्वी भी एकाकार कहना। सूत्र-८२-८४
भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी में कितने लाख नरकवास हैं ? गौतम ! तीस लाख ।
प्रथम पृथ्वी में तीस लाख, दूसरी में पच्चीस लाख, तीसरी में पन्द्रह लाख, चौथी में दस लाख, पाँचवी में तीन लाख, छठी में पाँच कम एक लाख और सातवी पृथ्वी में पाँच अनुत्तर महानरकावास हैं । अधःसप्तमपृथ्वी में महानरकावास पाँच हैं, यथा-काल, महाकाल, रौरव, महारौरव और अप्रतिष्ठान । सूत्र-८५
हे भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के नीचे घनोदधि है, घनवात है, तनुवात है और शुद्ध आकाश है क्या ? हाँ, गौतम ! है। इसी प्रकार सातों पृथ्वीयों में जानना ।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (जीवाजीवाभिगम)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
Page 27