Book Title: Agam 04 Samvao Chauttham Angsuttam Mulam PDF File
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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मोलिकडे, सचित्तपरिण्णाए, आरंभपरिण्णाए, पेसपरिण्णए, उद्दिट्ठभत्तपरिण्णाए, समणभूए, यावि भवइ समणाउसो!
लोगंताओ णं एक्कारस एक्कारे जोयणसए अबाहाए जोइसंते पन्नत्ते, जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स एक्कारस एक्कावीसे जोयणसए अबाहाए जोइसे चारं चरड़, समणस्स णं भगवओ महावीरस्स एक्कारस गणहरा होत्था, तं जहा- इंदभूती अग्गिभूती वायुभूती विअत्ते सुहम्मे मंडिए मोरियपुत्ते अकंपिए अयलभाया मेतज्जे पभासे ।
मूले नक्खत्ते एक्कारसतारे पन्नत्ते ।
समवाओ - ११
हेट्ठिमगेविज्जयाणं देवाणं एक्कारसुत्तरं गेविज्जविमाणसतं भवइत्ति मक्खायं । मंदरे णं पव्वए धरणितलाओ सिहरतले एक्कारसभगपरिहीणे उच्चत्तेणं पन्नत्ते । इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं एक्कारस पलिओवमाइं ठिई पन्नत्ता, पंचमाए पुढवीए अत्थेगयाणं नेरइयाणं एक्कारस सागरोवमाइं ठिई पत्ता । असुरकुमाराणं देवाणं अत्थेगइयाणं एक्कारस पलिओवमाइं ठिई पन्नत्ता ।
सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु अत्थेगयाणं देवाणं एक्कारस पलिओवमाइं ठिई पन्नत्ता, लंतए कप्पे अत्थेगइयाणं देवाणं एक्कारस सागरोवमाइं ठिई पन्नत्ता ।
जे देवा बंभं सुबंभं बंभावत्त बंभप्पमं बंभकतं बंभवण्णं बंभलेसं बंभज्झयं बंभसिंगं बंभसिट्टं बंभकूडं बंभुत्तरवडेसगं विमाणं देवत्ताए उववण्णा तेसि णं देवाणं उक्कोसेणं एक्कारस सागरोवमाई ठि पन्नत्ता, ते णं देवा एक्कारसहं अद्धमा साणं आणमंति वा पाणमंति वा ऊससंति वा नीससंति वा तेसि णं देवाणं एक्कारसहं वासहस्साणं आहारट्ठे समुप्पजाइ ।
संतेगइया भवसिद्धिया जीवा से एक्कारसहिं भवग्गहणेहिं सिज्झिस्संति बुज्झिस्संति मुच्चिस्संति परिनिव्वाइस्संति सव्वदुक्खाणमंतं करिस्सति ।
0 एकारसमो समवाओं समत्तो (
० मुनि दीपरत्नसागरेण संशोधितः सम्पादित्तश्च एक्कारसमो समवाओ समत्तो 0
0 बारसमो - समवाओ 0
[२०] बारस भिक्खुपडिमाओ प० त०- मासिआ भिक्खुपडिमा दोमासिआ भिक्खुपडिमा तेमासिआ भिक्खुपडिमा चाउमासिआ भिक्खुपडिमा पंचमासिआ भिक्खुपडिमा छम्मासिआ भिक्खुपडिमा सत्तमासिआ भिक्खुपडिमा पढमा सत्तराइंदिआ भिक्खुपडिमा दोच्चा सत्तराइंदिआ भिक्खुपडिमा चा सत्तराइंदिआ भिक्खुपडिमा अहोराइया भिक्खुपडिमा एगराइया भिक्खुपडिमा ।
दुवालसविहे संभोगे पन्नत्ते (तं जहा)- ।
य
[२१] उवही सुअ भत्तपाणे अंजलीपग्गहेत्ति दाणे य निका अ अब्भुट्ठाणेत्ति आवरे [२२] कितिकम्मस्स य करणे वेयावच्चकरणे इ अ समोसरणं संनिसेज्जा य कहाए अ पबंधणे
[२३] दुवालसावत्ते कितिकम्मे पन्नत्ते (तं जहा) -
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[दीपरत्नसागर संशोधितः]
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[४- समवाओ]
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