Book Title: Agam 04 Samvao Chauttham Angsuttam Mulam PDF File
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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समवायस्स णं परित्ता वायणा जाव से णं अंगट्ठाए चउत्थे अंगे एगे अज्झयणे एगे सयक्खंधे एगे उद्देसणकाले एगे समद्देसणकाले एगे चोयाले पदसयसहस्से पदग्गेणं संखेज्जाणि अक्खराणि जाव चरणकरण परूवणया आधविज्जति0, सेत्तं समवाए |
[२२१] से किं तं वियाहे?
(५)-वियाहे णं ससमया वियाहिज्जति परसमया वियाहिज्जति ससमयपरसमया वियाहिज्जति जीवा वियाहिज्जति अजीवा वियाहिज्जति जीवाजीवा वियाहिज्जंति लोगे वियाहिज्जइ पइण्णग समवाओ
अलोगे वियाहिज्जइ लोगालोगे वियाहिज्जइ, वियाणे णं नाणाविह-सुर-नरिंद-रायरिसि-विविहसंसइयपुच्छियाणं जिणेणं वित्थरेण भासियाणं दव्व-गुण-खेत्त-काल-पज्जव-पदेस-परिमाण-जहत्थिभाव-अनगमनिक्खेव-नवप्पमाण-सनिउ-णोवक्कम-विविहप्पगार-पागड-पयंसियाणं लोगालोग-पगासियाणं संसारसमद्द-रूंदउत्तरण-समत्थाणं सुरपति-संपूजियाणं भविय-जणपय-हिययाभिनदयाणं तमरय-विद्धंसनाणं सुदिटुं-दीवभूयईहा-मतिबुद्धि-वद्धनाणं छत्तीससहस्समणूणायणं वागरणाणं दंसणा सुयत्थ बहुविहप्पागारा सीसहियत्थाय गुणहत्था,
वियाहस्स णं परित्ता वायणा संखेज्जा अनओगदारा संखेज्जाओ पडिवत्तीओ संखेज्जा वेढा संखेज्जा सिलोगा संखेजओ निज्जुत्तीओ संखेज्जाओ संगहणीओ, से णं अट्ठयाए पंचमे अंगे एगे सुयक्खंधे एगे साइरेगे अज्झयणसते दस उद्देसगसहस्साई दस समुद्देसगसह-स्साइं छत्तीसं वागरणसहस्साई चउरासीई पयसहस्साई पयग्गेणं संखेज्जाइं अक्खराइं अनंता गमा अनंता पज्जवा
तसा अनंता थावरा सासया कडा निबद्धा निकाइया जिणपन्नत्ता भावा आघविज्जंति सेत्तं वियाहे ।
[२२२] से किं तं नायाधम्मकहाओ?
(६) नायाधम्मकहास् णं नायाणं नगराई उज्जाणाई चेइआई वणसंडाइं रायाणो अम्मापियरो समोसरणाई धम्मायरिया धम्मकहाओ इहलोइयपरलोइया इढिविसेसा भोगपरिच्चाया पवज्जाओ सयपरिग्गहा तवोववहाणाइं परियागा संलेहणाओ भत्तपच्चक्खाइं पाओवगमणाई देवलोगगमणाई सकुल पच्चायती पण बोहिलाभे अंतकिरियाओ आघविज्जति जाव उवदंसिज्जंति नायाधम्मकहास् णं पव्वइयाणं विणयकरण-जिणासामिसासणवरे संजम पईण्ण-पालण-धिइ-मइ-ववसायदुल्लभाणं, तव-नियम-तवोव-हाण-रण-दुद्धरभर-भग्गा-निसहा-निसट्ठाणं, धोरपरीसह-पराजियाणेऽसह-पारद्धरूद्ध-सिद्धलय-मग्ग-निग्गयाणं, विसयसुह-तुच्छ-आसावस-दोस-मच्छियाणं, विराहिय-चरित्त-नाण-दंसणजइगुण-विविह-प्पगार-निस्सार-सुण्णयाणं, संसार-अपार-दुक्ख-दुग्गइ-भव-विविह-परंपरा-पवंचा, धीराण य जिय-परिसह-कसाय-सेण्ण-धिइ-धणिय-संजम-उच्छाह-निच्छियाणं, आराहिय-नाण-दंसण-चरित्त-जोगनिस्सल्ल-सुद्ध-सिद्धलय मग्गमभिमुहाणं सुरभवण-विमाण-सुक्खाइं अणोवमाइं भुत्तूण चिरं च भोगभोगाणि ताणि दिव्वाणि महरिहाणि ततो य कालक्कमच्च्याणं जह य पुणो लद्धसिद्धिमग्गाणं अंतकिरिया चलियाण य सदेव-माणुस्सधीरकरण-कारणाणि बोधण-अणुसासणाणि गुणदोस-दरिसणाणि दिहते पच्चए य सोऊण लोगमण्णो जह य ठिया सासणंमि जर-मरण नासणकरे आराहिय-संजमा य सुरलोगपडिनियत्ता ओवेंति जह सासयं सिवं सव्वदक्खमोक्खं ।
[दीपरत्नसागर संशोधितः]
[60]
[४-समवाओ]
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