Book Title: Agam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi Author(s): Ghasilal Maharaj Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar SamitiPage 15
________________ आचारांगसूत्रे वक्ष्यमाणरीत्या अशनं वा पानं वा खादिम वा स्वादिमं वा चतुर्विधं भक्ष्यम् जानीयात्अवगच्छेत्, यत् अशनादिकं चतुर्विधं भक्ष्यम् प्रागिभिः-द्विन्द्रियै रसजादिभिर्जन्तुभिः वा पनकैः उल्लीजीवैर्वा संसक्तं संयुक्तं वर्तते, अथवा बीजैः-गोधूमशाल्यादि प्रस्फुटै, हरितः दुर्वाकुरादिभिर्वा उन्मिश्रं शबलीभूतं वर्तते, एवं शीतोदकेन-अनुष्णजलेन अवसिक्तम्-आर्दीकृतं वा अस्ति, तथा रजसा सचित्तेन धूलिरूपरेणुना वा परिघर्षितं व्याप्तं वा वर्तते, तथा प्रकारकम् एवं जातीयकम् अशुद्धम् अशनपानादि चतुर्विधमपि आहारं परहस्ते दातुः करे परपात्रे वा स्थितं वर्तमानम् अप्रासुकम् सचित्तम्, अनेषणीयम् आधाकर्मादि दोषदृषितं वर्तते पडियाए', पिण्डपात की प्रतिज्ञा से 'भिक्षालाभ की आशा से' 'अणुपविहे समाणे' अनुप्रविष्ट होकर प्रवेशकर 'से जं पुण जाणेजा' वह साधु या साध्वी यदि जानले कि-'असणं वा पाणं वा, खाइमं वा, साइमं वा' अशन खाने योग्य चावल वगैरह भक्ष्यपदार्थ, या पान-पीने योग्य पानी दूध वगैरह पेय वस्तु, या खादिम-लेहन करने 'चाटने योग्य वस्तु, या स्वादिम-स्वादकर खाने योग्यचोष्य वस्तु इस प्रकार का चतुर्विध आहार 'पाणेहिं वा पणएहिं वा बीएहिं वा हरिएहिं या'दीन्द्रियादि प्राणियों से या पनक-उल्ली जीवों या अङ्कुरित बीजों से या हरित दूर्वा वगैरह हरे भरे अंकुरों से 'संसत्तं उम्मिस्सं' संसक्त-संयुक्त है या उन्मिश्र मिलाजुला है या-'सीओदएण वा ओसितं' शीतोदक-कच्चा ठण्डा पानी से अवसिक्त-सिश्चित है या 'रयसा वा परिघासियं' रज-रेण धूलि से व्यास है तो 'तहप्पगारं असणं या पाणं वा खाइमं वा साइमं वा' इस प्रकार का प्राणी वगैरह से संसक्त अशन-भोजन, पेयजलादि, खादिम या स्वादिम वस्तु को 'परहत्यसिवा, पर पायंसि वा' दूसरे के हाथ में या दूसरे पात्र में 'अफासुयं, अणेसणिज्ज' अप्रासुक-सचित्त तथा अनेषणीय-आधाकर्मादि दोषों से दूषित 'मण्णप्रतिज्ञाथी अर्थात् लक्षामनी माथी 'अणुपविट्ठ समाणे' प्रवेश परीने से जं पुण जाणेज्जा' त साधु मगर स न onqामा मेमाव-'असणं वा, पाणं वा, खाइमं या, साइमं वा, मन भावासाय यामा विगेरे लक्ष्य पहा पान-पावासाय पाणी, दूध, વિગેરે પયપદાર્થ અથવા ખાદિમ-ચાટવા યોગ્ય વસ્તુ અથવા સ્વાદિમ-સ્વાદપૂર્વક ખાદ્ય योध्य यूसपाय तु, म त यतुविध मा २ 'पाणेहिं वा पणएहिं वा बीएहि वा हरिएहि या' बीन्द्रयाति प्रायोथी मया पन3-3eel &alथी 4441 मधुरित पीथी हरित । विगैरे सlan मरोथी 'संसत्तं उम्मिस्सं' संयुटत जय भीश्रभने साय 'सीओदएणवा ओसित्तं' या ४१ पाणीथी छटाये जाय A24t 'रयसा वा परिघासिय २४ पूजयी व्याप्त डाय तो 'तहप्पगारं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं पाता र मन पाच-पान-पेय माहिम अथवा स्वाभि वस्तुने 'परहत्थंसिया, पर पायंसि या' पीनयम 3 मीना पात्रभो 'अफासुयं अणेसणिज्जंति' मासु श्री सागसूत्र :४Page Navigation
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