Book Title: Agam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 14
________________ मर्मप्रकाशिका टीका श्रुतस्कंध २ उ. १ ० १ पिण्डैषणाभ्ययननिरूपणम् तस्मिन् नवब्रह्मचर्याध्ययनात्मके प्रथमे आचारश्रुतस्कन्धे समस्तविवक्षितविषयाणां संक्षेपेणैवाभिहितत्वात तेषां विस्तरेण अभिधानाय द्वितीयश्रुतस्कन्ध आरब्धः, अयश्चाय श्रुतस्कन्धशब्देन व्यवहियते, प्रथमश्रुतस्कन्धे नव ब्रह्मचर्याध्ययनानि एकपञ्चाशदुद्देशकेषु विमज्य वर्णितानि सन्ति, द्वितीयश्रुतस्कन्धे च षोडशाध्ययनानि चतुस्त्रिंशदुद्देशकेषु प्रतिपादितानिसन्ति, तत्र प्रथमं पिण्डैषणारूपमध्ययनं पाख्यातुमारभते-से भिवखू वा, भिक्खुणी वा, गाहावइकुलं पिंडवायपडियाए अणुपविढे समाणे-इत्यादि। स संयमशीलः पञ्चमहाव्रतस्क्षणशील भिक्षुः भिक्षणशीलो भावभिक्षुर्मूलोत्तरगुणधारी साधुः श्रमणो, या अश्या भिक्षुकी साध्वी वा वेदनावैयावृत्यादिषडन्यतमकारणेन आहारार्थी सन् गृहपतिकुलम्, गृहस्थ श्रावकगृहं पिण्डपातप्रतिज्ञया-भिक्षालाभाशया अनुप्रविष्टः सन् गतः सन् स यत्पुनहार करते हैं। यह आचाराङ्ग सूत्र दो श्रुतस्कन्ध में विभक्त किया गया है, उनमें प्रथम श्रुतस्कन्ध का विषय अत्यन्त गूढ और गम्भीर है, उस में नौ प्रकार के ब्रह्मचर्यों का अध्ययनात्मक प्रथम आचारश्रुतस्कन्ध में सारे ही वक्तव्य विषयों का संक्षेप से ही कथन किया गया है, अतएव उनका विस्तार पूर्वक कथन करने के लिये द्वितीय श्रुत स्कन्ध का आरम्भ किया गया है, इस को अग्र श्रुत स्कन्ध भी कहते हैं, प्रथम श्रुत स्कन्ध में नौ ब्रह्मचर्याध्ययनों का इकावन उद्देशों में विभाग कर के वर्णन किया गया है, औद द्वितीय श्रुत स्कन्ध में सोलह अध्ययनों का चौतीश उद्देशों में प्रतिपादन किया गया है, उन में सबसे पहले पिण्डैषणारूप अध्ययन की व्याख्या करते हैं-'से भिक्खू वा, भिक्रयणी या-' इत्यादि । पञ्चमहा व्रत रक्षण शाली भावभिक्ष मूलोत्तर गुणधारी साधु अथवा भिक्षुकी साध्वी वेदना-वैयावृत्ति वगैरह छे कारणों में किसी भी एक कारण से आहार के लिये 'गाहावइकुलं' गृहपति गृहस्थ के कुल में 'घर में 'पिंडयाय આ આચારાંગ સૂત્ર બે શ્રુતસ્કંધમાં વહેંચવામાં આવેલ છે, તેમાં પહેલા કૃતસ્કંધને વિષય અત્યંત ગૂઢ અને ગંભીર છે, તેમાં નવ પ્રકારના બ્રહ્મચર્યોના અધ્યયનાત્મક પહેલા આચાર શ્રુતસ્કંધમાં તમામ કહેવા ગ્ય વિષયનું સંક્ષેપથી જ કથન કરવામાં આવેલ છે. તેથી જ તેનું સવિસ્તર કથન કરવા માટે બીજા શ્રુતસ્કંધનો આરંભ કરવામાં આવે छ, मान मश्रुत: ५ प ७ छ. પહેલા શ્રુતસ્કંધમાં બ્રહ્મચર્યાધ્યયનના એકાવન ઉદ્દેશાઓમાં વિભાગપૂર્વક વર્ણન કરેલ છે. અને બીજા શ્રુતસ્કંધમાં સોળ અધ્યયનના ચોત્રીસ ઉદ્દેશાઓમાં પ્રતિપાદન કરવામાં આવેલ છે. તેમાં સૌથી પહેલાં પિંડેષણારૂપ અધ્યયનની વ્યાખ્યા કરવામાં આવે D-से भिक्खु वा भिक्खुणी वा' पांय महायत २क्षणशादी लक्षु भूसोत्तर सुधारी સાધુ અથવા ભિક્ષુકી સાધી વેદના વૈયાવૃત્તિ વગેરે છ કારણેમાંથી કઈ પણ એક કારણથી माहार मारे 'माहावइकुलं' पति-स्थन। घरमा 'पिडयायपडियाए' (५७पातनी श्री मायारागसूत्र :४

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